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राम मंदिर की रक्षा के लिए दिए गए थे लाखों बलिदान : डॉ. राकेश कुमार आर्य

महरौनी (ललितपुर)। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से वैदिक धर्म के मर्म को युवा पीढ़ी को परिचित कराने के उद्देश्य से प्रतिदिन मंत्री शिक्षक आर्य रत्न लखनलाल आर्य द्वारा आयोजित आर्यों के महाकुंभ में दिनांक 02 नवंबर को “भारतीय इतिहास के कुछ अनछुए पृष्ठ” विषय पर बोलते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि भारत के लोगों ने राम मंदिर को अपनी संस्कृति का प्रतीक मानकर उसके लिए प्रारंभिक अवस्था में ही पौने दो लाख लोगों का बलिदान दिया था।
डॉक्टर आर्य ने इतिहास के तथ्यों की पड़ताल करते हुए सप्रमाण बताया कि सत्यदेव परिव्राजक जी ने स्वतंत्रता पूर्व 1924 में ही उस शाही फरमान को एक महत्वपूर्ण शोध पत्र के आधार पर लोगों के सामने ला दिया था जिसमें राम मंदिर को ढहाए जाने की राजाज्ञा बाबर की ओर से दी गई थी। बाबर ने भी तुजुक ए बाबरी के भीतर इस बात को स्वीकार किया है कि मंदिर को भूमिसात करके वहां पर मस्जिद बनाई गई थी।
उन्होंने कहा कि हमारे सारे योद्धा उस समय राष्ट्रीय ज्ञ की समिधा बन गए थे। 80 वर्ष के भीटी रियासत के राजा मेहताब सिंह ने उस समय हुंकार भरी थी और सेना का गठन करके 80000 सैनिकों को साथ लेकर विदेशी हमलावरों से युद्ध किया था। मीर बाकी खान नाम के बाबर के सेनापति ने राम मंदिर तो तोड़ दिया था पर उस समय घर घर से वीर हिंदू निकल कर जब एक बड़े सैलाब के रूप में परिवर्तित हुए और सब का उद्देश्य केवल एक था कि मीर बाकी खान को ढूंढा जाए और उसको खत्म किया जाए तो वह प्राण बचाने के लिए व्याकुल हो उठा था।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ आर्य ने कहा कि देवीदीन पांडे नाम का एक नौजवान उस समय 70000 युवाओं की एक बड़ी सेना को लेकर मुस्लिम सेना से जा भिड़ा था। 9 जून 1528 को उस वीर योद्धा ने मुस्लिम सेना के 700 सैनिकों को मारकर अंतिम सांस ली थी। बाबर ने उसके बारे में लिखा है कि उसने केवल 3 घंटे में ही गोलियों की बौछार के बीच शाही फौज के 700 व्यक्तियों का वध कर दिया था। एक सिपाही की ईंट से उसकी खोपड़ी घायल हो जाने के उपरांत भी वह अपनी पगड़ी के कपड़े से सिर बांधकर इस कदर लड़ा मानो किसी बारूद की थैली में जैसे पलीता लगा दिया गया हो।
डॉक्टर आर्य ने कहा कि जिस देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के अंतिम संस्कार में शामिल होने से उस समय के प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों, सचिवों ,अधिकारियों को यह कहकर रोका हो कि किसी कैबिनेट मंत्री के अंतिम संस्कार में सब के सम्मिलित होने से एक गलत परंपरा पड़ जाएगी, उस देश में देशभक्तों के साथ पूर्व से कितना अन्याय होता रहा होगा ? यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि राम मंदिर के तोड़े जाने के समय सारे वीर योद्धा देश के धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पण कर रहे थे ।ऐसे वीर योद्धाओं के गौरवशाली इतिहास को कूड़ेदान में फेंक कर जिन लोगों ने राष्ट्रघाती कार्य किया है उनका यह अपराध अक्षम्य है। डॉक्टर आर्य ने कहा कि देश के महापुरुष हमारे लिए ज्योतिपुंज होते हैं। जिनके जीवन आदर्शो को अपनाकर युवा पीढ़ी प्रेरणा लेती है और राष्ट्र का निर्माण करती है। लुटेरे और चरित्रहीन लोगों के इतिहास को पढ़ा कर किसी भी देश की युवा पीढ़ी का निर्माण नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि राष्ट्र का निर्माण चरित्रवान, देशभक्त, वीर, साहसी पुरुषों के व्यक्तित्व और कृतित्व को पढ़ाने से ही होता है। इसलिए आज अपने देश के वीर महापुरुषों, योद्धाओं के वास्तविक इतिहास को तथ्यात्मक आधार पर युवा पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में अन्य विद्वानों में प्रो. डॉ. व्यास नन्दन शास्त्री , प्रो.डा. वेंद प्रकाश शर्मा , अनिल कुमार नरूला दिल्ली, प्रधान प्रेम सचदेवा दिल्ली,आर्या चन्द्रकान्ता ” क्रांति हरियाणा, युद्धवीर सिंह हरियाणा,चन्द्रशेखर शर्मा , देवी सिंह आर्य दुबई, अनुपमा सिंह शिक्षिका, सुमनलता सेन आर्या शिक्षिका, आराधना सिंह शिक्षिका, अवधेश प्रताप सिंह बैंस,परमानंद सोनी भोपाल, अवध बिहारी तिवारी शिक्षक, सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्यजन सम्मिलित थे ।संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया। श्री लखन लाल आर्य द्वारा इस अवसर पर देवीदीन पांडे मेहताब सिंह और उनके सभी बलिदानी साथियों की स्मृति में अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के प्रांगण में एक स्मारक बनाने की मांग योगी सरकार से की। उन्होंने कहा कि अपने वीर योद्धाओं को राष्ट्र मंदिर के रूप में निर्मित हो रहे राम मंदिर के प्रांगण में स्मारक के रूप में स्थान देकर सारा देश उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित कर सकेगा।

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