भारत से सहयोग की अपेक्षा करते पुतिन
हर्ष वी. पंत
पिछले दिनों मॉस्को में रूस की सबसे बड़ी पॉलिटिकल कॉन्फ्रेंस वल्दाई फोरम में व्लादिमीर पुतिन ने काफी समय बाद अलग-अलग मुद्दों पर अपने विचार रखे। उन्होंने रूस की मौजूदा हालत से दुनिया को वाकिफ कराया और संकेत दिया कि आने वाले दिनों में रूस की विदेश नीति और रक्षा नीति किस तरफ जाएगी। उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया इस समय सबसे खतरनाक दौर से गुजर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी देश रूस को न्यूक्लियर ब्लैकमेल कर रहे हैं और वे सब चाहते हैं कि रूस के साझेदार देश उससे दूर हो जाएं।
डर्टी बम की पॉलिटिक्स
रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग अब अपने नौवें महीने में पहुंच चुकी है। अगर युद्धक्षेत्र पर गौर करें तो वहां रूस की स्थिति कमजोर दिख रही है। यूक्रेन का जवाबी हमला काफी आगे चल रहा है। रूस ने यूक्रेन के जो महत्वपूर्ण क्षेत्र कब्जा लिए थे, वहां पर अब यूक्रेन की पकड़ मजबूत होती जा रही है।
इन्हीं बातों की प्रतिक्रिया हमें रूस में देखने को मिल रही है। इन्हीं वजहों से उसने पिछले कुछ हफ्तों से परमाणु हथियारों की बात बहुत ज्यादा उठानी शुरू कर दी है।
रूस यह भी इल्जाम लगा रहा है कि यूक्रेन उसके खिलाफ डर्टी बम का प्रयोग कर सकता है। डर्टी बम में जो भी बारूद होता है, उसमें रेडियो एक्टिव पदार्थ लगाकर उसे ब्लास्ट करते हैं। एक तरह से यह मिनी न्यूक्लियर बम हो जाता है।
इस पर यूक्रेन ने कहा कि रूस इस तरह की बातें इसलिए कर रहा है क्योंकि वह खुद ऐसी हरकत करके उसका इल्जाम हमारे ऊपर थोपना चाहता है। यूक्रेन की इस बात की पुष्टि नैटो ने भी की और कहा कि इस तरह की बात नहीं होनी चाहिए।
साफ है कि रूस और पुतिन थोड़े दबाव में हैं। इसी दबाव को कम करने के लिए उन्होंने परमाणु हथियारों का सहारा लेने की कोशिश की है। पिछले दिनों रूस में एक न्यूक्लियर एक्सरसाइज भी हुई। इसमें उन्होंने देखा कि अगर रूस पर परमाणु हमला होता है तो वह उससे कैसे निपटेगा।
प्रेशर में पुतिन
पुतिन ने सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया कि रूस ने यूक्रेन में जो किया, वह पूरी तरह सही है और उससे रूस की संप्रभुता को बल मिला है। कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि वह अपनी रणनीति पर पुनर्विचार कर रहे हैं। यह जरूर है कि वह थोड़ा प्रेशर में नजर आ रहे हैं। उन्होंने यूक्रेन में चले स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन में हुए नुकसान का जिक्र तो किया, पर इसे फायदों से जोड़ा और यह नहीं कहा कि युद्ध की कीमत बढ़ती जा रही है तो इस पर वह पुनर्विचार करेंगे। लेकिन जिस तरह से काफी युवा रूसी देश छोड़कर चले गए और जंग के मैदान में रूस कमजोर नजर आ रहा है, उसे देखते हुए वह सब कुछ खराब करने की कोशिश में परमाणु हथियारों की बात कर रहा है।
मेक इन इंडिया
इसमें गौर करने वाली बात यह रही कि भारत का जिक्र करते हुए पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को एक बड़ा देशभक्त बताया। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत ने बड़ी तरक्की की है। खासतौर पर उन्होंने मेक इन इंडिया का जिक्र किया कि यह बड़ा महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी ग्रोथ रेट पर गर्व होना चाहिए और भारत-रूस संबंधों को आगे बढ़ाने की कोशिश होनी चाहिए। यह भी कहा कि किस तरह से भारत ने रूस से फर्टिलाइजर सप्लाई 7.6 गुने तक बढ़वाई। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी अपने देश के हित में इंडिपेंडेंट फॉरेन पॉलिसी आगे बढ़ा रहे हैं। यह एक बड़ा महत्वपूर्ण संदेश था यह बताने का कि भारत और रूस एक साथ खड़े हैं। भारत की फॉरेन पॉलिसी को लेकर भी उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि पश्चिमी देश जो चाहते हैं, भारत वह नहीं करेगा।
पिछली बार जब एससीओ समिट में पीएम मोदी और पुतिन की मुलाकात हुई थी, तब पीएम मोदी ने कहा था कि यह समय युद्ध का समय नहीं है। यह बयान काफी चर्चा में रहा और पश्चिमी देशों ने भी इस बारे में भारत की तारीफ की। तो कहीं न कहीं पुतिन को लग रहा है कि वह अपने करीबी मित्र देश, जिसमें भारत काफी खास है, उसका समर्थन खोना नहीं चाहते। इसीलिए उन्होंने भारत की बात की और दुनिया को विश्वास दिलाया कि रूस और भारत साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
लेकिन सचाई यह है कि भारत की प्राथमिकताएं काफी अलग हैं। आइए समझते हैं कि भारत इसे कैसे देखता है।
कुछ दिन पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ किया कि परमाणु युद्ध की बात नहीं करनी चाहिए। ऐसी बातें सब कुछ खराब कर देती हैं।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी यूएन में कहा कि भारत इस बात का पक्षधर है कि जल्द से जल्द शांति की बहाली हो और किसी तरह बातचीत से हल निकालने का कोई पॉलिटिकल मैकेनिज्म बने। युद्ध से कोई भी अपने लक्ष्य नहीं हासिल कर सकता। नवंबर में विदेश मंत्री मॉस्को जाने वाले भी हैं।
ऐसे में चीजों को ठीक करने में भारत का रोल बढ़ता दिख रहा है। अगर दोनों पक्षों को साथ लाकर किसी तरह के पॉलिटिकल सेटलमेंट की बात होती है तो इस समय भारत ही निष्पक्ष तरीके से निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
बाकी जो बड़ी शक्तियां हैं वे किसी न किसी पक्ष से जुड़ी हैं। चीन रूस का बहुत करीबी पार्टनर है और पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को संभाला हुआ है।
इसीलिए रूस की ओर से जिस तरह के बयान आ रहे हैं, वे इस बात को रेखांकित करते हैं कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन जिस जटिल स्थिति में फंस चुके हैं, उससे निकलने में उन्हें भारत के साथ की जरूरत है।