मध्यप्रदेश: भारत का सांस्कृतिक तिलक
मध्यप्रदेश: भारत का सांस्कृतिक तिलक
मध्यप्रदेश वस्तूतः केवल भौगोलिक ह्रदयस्थली नही बल्कि भारत का मानसस्थल है। यहीं से संपूर्ण भारत में जागरण, चैतन्यता व सांस्कृतिक तेज का भाव संचारित होता है। यह प्रदेश एक तरफ़ से उत्तरप्रदेश, दूसरी तरफ़ से झारखण्ड, तीसरी तरफ़ से महाराष्ट्र, चौथी तरफ़ से राजस्थान, पाँचवी तरफ़ से गुजरात और छठवीं तरफ़ से छत्तीसगढ़ की सीमाओं से घिरा हुआ है।
भारत की संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान है, जिसके प्रकाश की सर्वथा अलग प्रभा और प्रभाव है। विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता का जैसे आकर्षक गुलदस्ता है, मध्यप्रदेश, जिसे प्रकृती ने राष्ट्र की वेदी पर जैसे अपने हाथों से सजाकर रख दिया है, जिसका सतरंगी सौन्दर्य और मनमोहक सुगन्ध चारों ओर फैल रहे हैं। यहाँ के वातावरण में कला, साहित्य और संस्कृति की मधुमयी सुवास तैरती रहती है। यहाँ के लोक समूहों और जनजाति समूहों में प्रतिदिन नृत्य, संगीत, गीत की रसधारा सहज रुप से फूटती रहती है। यहाँ का हर दिन पर्व की तरह आता है और जीवन में आनन्द रस घोलकर स्मृति के रुप में चला जाता है। इस प्रदेश के तुंग-उतुंग शैल शिखर विन्ध्य-सतपुड़ा, मैकल-कैमूर की उपत्यिकाओं के अन्तर से गूँजते अनेक पौराणिक आख्यान और नर्मदा, सोन, सिन्ध, चम्बल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती आदि सर-सरिताओं के उद्गम और मिलन की मिथकथाओं से फूटती सहस्त्र धाराएँ यहाँ के जीवन को आप्लावित ही नहीं करतीं, बल्कि परितृप्त भी करती हैं। यहां के गीत, नृत्य, नाट्यकला, वाद्ययंत्र, घुमंतू जातियां, जनजातीय कलाएं, नदियों का संसार मानव हेतु सदा सदा से एक प्रेरणास्त्रोत रहा है। कविवर भवानी प्रसाद मिश्र की कविता “सतपुड़ा के घने जंगल ” पढ़ लीजिए आपको मध्यप्रदेश की सरलता, गहनता, गुह्यता, व बौद्धिकता का अद्भुत आभास करा देगी।
मध्यप्रदेश कालीदास, भृतुहरि, भवभूति, बाणभट्ट, जगनिक, केशवदास, सिंगाजी, भूषण, पद्माकर, घाघ, माखनलाल चतुर्वेदी, इसुरी, मुल्ला रमुजी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, सुभद्राकुमारी चौहान, भवानी प्रसाद मिश्र, गजानन माधव मुक्तिबोध, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, आचार्य नंददुलारे बाजपई, शिवमंगल सिंह सुमन आदि जैसे महान साहित्यकारों की जन्मस्थली व रचनास्थली रही है। इन साहित्यकारों के लेखन ने संपूर्ण भारत के रचनासंसार में चार चांद लगा दिए हैं।
जहां एक ओर मध्यप्रदेश कलाकारों, साहित्यकारों, कवियों, चित्रकारों की भूमि रही है वहीं दूसरी ओर यह महान क्रांतिकारियों की भी जननी भूमि रही है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्लासी के युद्ध से लेकर 1947 तक मध्यप्रदेश का अपना विशाल योगदान रहा है। चंद्रशेखर आजाद, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, रानी अवंती बाई, टंट्या भील (टंट्या मामा), झलकारी बाई, भीमा नायक, कुंवर चैनसिंह, रानी दुर्गावती, बख्तावर सिंह, राजा शंकर शाह, रानी कमलापति, महादेव तेली, पद्मधर सिंह, उदया चंद, बिरसा मुंडा, रणमतसिंह, गुलाब सिंह आदि वीरों ने अपने अपने समय में विदेशी आक्रमणकारियों के दांत खट्टे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी व आत्मोसर्ग किया।
दतिया, भोजपाल, साँची, नर्मदा, खजुराहो, ओरछा, भीमबैठका, भोजपुर, मैहर, अमरकंटक, चित्रकूट, राम वन गमन के स्थान, ताप्ती, गोंडवाना, सतपुड़ा के घने जंगल, मांडू, उज्जैन, महेश्वर, ओंकारेश्वर, उज्जैन, विदिशा आदि आदि ऐतिहासिक स्थलों से भरापूरा यह प्रदेश संपूर्ण देश को पल प्रतिपल एक नया संदेश देता है। अधिकतर पठारी हिस्से में बसे मध्यप्रदेश में विन्ध्य और सतपुड़ा की पर्वत श्रृखंलाएं इस प्रदेश को रमणीय बनाती हैं। ये पर्वत श्रृखंलाएं कई नदियों के उद्गम स्थलों को जन्म देती हैं, ताप्ती, नर्मदा,चम्बल, सोन,बेतवा, महानदी जो यहां से निकल भारत के कई प्रदेशों में बहती हैं। इस वैविध्यपूर्ण प्राकृतिक देन की वजह से मध्य प्रदेश एक बेहद खूबसूरत हराभरा प्रदेश बनकर उभरता है।
मध्यप्रदेश में पांच लोक संस्कृतियों का सर्व समावेशी, सर्वस्पर्शी संसार है। ये पांच सांस्कृतिक क्षेत्र है-
(क) निमाड़
(ख) मालवा
(ग) बुन्देलखण्ड
(घ) बघेलखण्ड
(च) ग्वालियर
प्रत्येक सांस्कृतिक क्षेत्र या भू-भाग का एक अलग जीवंत लोकजीवन, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, कला, बोली और परिवेश है। मध्यप्रदेश लोक-संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान श्री वसन्त निरगुणे लिखते हैं- “संस्कृति किसी एक अकेले का दाय नहीं होती, उसमें पूरे समूह का सक्रिय सामूहिक दायित्व होता है। जीवन शैली, कला, साहित्य और वाचिक परम्परा मिलकर किसी अंचल की सांस्कृतिक पहचान बनाती है।”
मध्यप्रदेश की संस्कृति विविधवर्णी है। गुजरात, महाराष्ट्र अथवा उड़ीसा की तरह इस प्रदेश को किसी भाषाई संस्कृति में नहीं पहचाना जाता। मध्यप्रदेश विभिन्न लोक और जनजातीय संस्कृतियों का समागम है। यहाँ कोई एक लोक संस्कृति नहीं है। यहाँ एक तरफ़ पांच लोक संस्कृतियों का समावेशी संसार है, तो दूसरी ओर अनेक जनजातियों की आदिम संस्कृति का विस्तृत फलक पसरा है। यह भारत के सभी प्रमुख धर्मों को मानने वाले लोगों का घर है, जो पूर्ण सद्भाव और सौहार्द में रहते हैं। मध्य प्रदेश की संस्कृति हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, ईसाई और सिखों का सामंजस्यपूर्ण समामेलन है। इसके अलावा, राज्य के आदिवासी समुदायों में भील, गोंड, उरांव, कोल, भिलाला, मुरिया और कोर्केंस जैसी विभिन्न जनजातियां शामिल हैं। कई धर्मों और जातीय पृष्ठभूमि से संबंधित ये लोग भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को दर्शाते हैं और राज्य की जीवंत सांस्कृतिक चमक में योगदान करते हैं।
वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश एक भारतीय राज्य के रूप में उभरा। उस अवधि के दौरान, यह राज्य भारत के सबसे बड़े राज्य के रूप में भी प्रमुखता से उभरा। हालाँकि, 2000 में छत्तीसगढ़ के विभाजन के साथ, आधुनिक मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया।
मध्य प्रदेश न केवल भारत का भौगोलिक हृदय है, बल्कि इसे देश का सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र भी कहा जा सकता है। ‘विविधता’ शब्द को इसी स्थान पर सर्वोत्तम अभिव्यक्ति मिलती है। दरअसल, राज्य के लोग इसकी बहुआयामी संस्कृति की पहली झलक देते हैं। यह विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोगों को जोड़ता है।
मध्यप्रदेश को भारत का सांस्कृतिक संग्रहालय कहा जा सकता है। यह स्थान न केवल कई धर्मों को अपनी गोद में समेटता है, बल्कि देश के कुछ सबसे प्रमुख आदिवासी समुदायों का भी घर है। मध्य प्रदेश के जनजातीय समाज ने इस प्रदेश की साजसज्जा में अपना अद्भुत योगदान दिया है।
इतना ही विहंगम है मध्य प्रदेश जहाँ, पर्यटन की अपार संभावनायें हैं। यहांँ की संस्कृति प्राचीन और ऐतिहासिक है। असंख्य ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरें विशेषत: उत्कृष्ट शिल्प और मूर्तिकला से सजे मंदिर, स्तूप और स्थापत्य के अनूठे उदाहरण यहाँ के महल और किले हमें यहाँ उत्पन्न हुए महान राजाओं और उनके वैभवशाली काल तथा महान योद्धाओं, शिल्पकारों, कवियों, संगीतज्ञों के साथ-साथ हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म के साधकों का स्मरण दिलाते हैं। भारत के अमर कवि, नाटककार कालिदास और प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन ने इस उर्वर धरा पर जन्म ले इसका गौरव बढाया है। मध्यप्रदेश का एक तिहाई हिस्सा वन संपदा के रूप में संरक्षित है। जहां पर्यटक वन्यजीवन को पास से जानने का अदभुत अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। कान्हा नेशनल पार्क,बांधवगढ़, शिवपुरी आदि ऐसे स्थान हैं जहां आप बाघ, जंगली भैंसे, हिरणों, बारहसिंघों को स्वछंद विचरते देख पाने का दुर्लभ अवसर प्राप्त कर सकते हैं। मध्यप्रदेश के हर भाग की अपनी संस्कृति है और अपनी धार्मिक परम्पराएं हैं जो उनके उत्सवों और मेलों के द्वारा जनजीवन में अपना रंग भरती हैं। खजुराहो का वार्षिक नृत्यउत्सव पर्यटकों को बहुत लुभाता है। ओरछा और पचमढ़ी के उत्सव यहाँ की समृद्ध लोक और जनजातीय संस्कृति को सजीव बनाते हैं।
सबसे बड़ी बात इन सभी विशेषताओं के बाद भी मध्यप्रदेश अब भी भारत का सबसे भोलाभाला, सहृदय किंतु सर्वाधिक उत्पादक प्रदेश है। संपूर्ण राष्ट्र में सर्वाधिक गेंहू उत्पादन कर अपने साथी
राज्यों के नागरिकों का उदर पोषण का कार्य भी यह प्रदेश भलीभांति करता चला आ रहा है।
मध्यप्रदेश का यह आधिकारिक भी मध्यप्रदेश का व्यवस्थित परिचय दे देता है –
सुख का दाता सब का साथी शुभ का यह संदेश है, माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है। विंध्याचल सा भाल नर्मदा का जल जिसके पास है, यहां ज्ञान विज्ञान कला का लिखा गया इतिहास है। उर्वर भूमि, सघन वन, रत्न, सम्पदा जहां अशेष है, स्वर-सौरभ-सुषमा से मंडित मेरा मध्यप्रदेश है। सुख का दाता सब का साथी शुभ का यह संदेश है, माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है। चंबल की कल-कल से गुंजित कथा तान, बलिदान की, खजुराहो में कथा कला की, चित्रकूट में राम की। भीमबैठका आदिकला का पत्थर पर अभिषेक है, अमृत कुंड अमरकंटक में, ऐसा मध्यप्रदेश है। क्षिप्रा में अमृत घट छलका मिला कृष्ण को ज्ञान यहां, महाकाल को तिलक लगाने मिला हमें वरदान यहां, कविता, न्याय, वीरता, गायन, सब कुछ यहां विषेश है, ह्रदय देश का है यह, मैं इसका, मेरा मध्यप्रदेश है। सुख का दाता सब का साथी शुभ का यह संदेश है, माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है।
प्रवीण गुगनानी, [email protected] 9425002270
लेखक विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में राजभाषा सलाहकार हैं