गैर मुस्लिमों के त्योहारों पर गाना बजाना रसूल की सुन्नत है !
गैर मुस्लिमों के त्योहारों पर गाना बजाना रसूल की सुन्नत है !
हम देखते हैं कि जब भी हिन्दू कोई उत्सव या पर्व मनाते हैं तो उसमे भजन ,आरती आदि में संगीत और गायन का आयोजन अवश्य होता है ,और ऐसे आयोजनों में कई बार मुस्लिम युवक और लड़कियां भी शामिल हो जाती हैं , लेकिन कट्टर मौलवी ऐसे लोगों को मुशरिक या काफिर हो जाने का फतवा दे देते हैं ,और कहते हैं कि गैर मुस्लिमों के त्योहारों में जाना या वहां होने वाले गानों और संगीत सुनना इस्लाम के खिलाफ है , यानि गैर मुस्लिमों के त्योहारों में शामिल होना हराम है ,लेकिन यह मौलवी इस बात को छुपा देते है कि खुद मुहम्मद ने मदीना में अपनी बनवायी मस्जिद में नाच गान कराया था , और अपनी पत्नी आयशा के साथ नृत्य संगीत का आनंद उठाया था जिसका पूरा विवरण हदीसों में मौजूद है , जो इस लेख में दिया जा रहा है
1-मक्का से पलायन \
मुहम्मद की पहली पत्नी का नाम “खदीजा बिन्त ख़ुवैलिद -: خَدِيجَة بِنْت خُوَيْلِد, ” था , लेकिन मुहम्मद खदीजा के तीसरे पति थे ,क्योंकि खदीजा दो बार विधवा हो चुकी थी, शादी के समय मुहम्मद की आयु 25 साल और खदीजा की आयु 40 साल थी , खदीजा एक शिक्षित और सफल व्यापारी थी ,मक्का के लोग उसका बहुत सम्मान करते थे ,इसलिए जब मुहम्मद ने सन 610 में खुद को अल्लाह का रसूल बता कर मक्का के लोगों को इस्लाम कबूल करने और अपने देवी देवताओं को छोड़ देने और उनके धर्म की बुराई करना शुरू कर दिया तो मक्का के लोग खदीजा का लिहाज करके मुहमम्मद को जान से मारने से डरते रहते थे ,लेकिन जब सन 619 ईस्वी यानि हिजरी से तीन से पहले खदीजा की मौत हो गयी तो मक्का के लोग मुहम्मद को क़त्ल करने की तैयारी करने लगे , उस समय मुहम्मद की आयु 50 साल हो चुकी थी .उस समय मक्का के लोगों ने मुहम्मद और उसके साथियों का बहिष्कार कर दिया था ,यहाँ तक कि मुहम्मद के चाचा और ताऊ मुहमम्मद के दुश्मन हो गए थे , तभी मुहम्मद को सूचना मिली कि मक्का के लोग तुम्हारी हत्या करने वाले हैं , इसलिए अगर अपनी जान बचाना हो तो मक्का छोड़ कर कहीं और जगह चले जाओ , चूँकि मुहम्मद का ससुर अबू बकर भी व्यापारी था ,और उसका व्यापर मदीना में भी था ,इसलिए उसकी सलाह पर मुहम्मद अपने परिवार और कुछ लोगों के साथ मदीना भाग गए .यह घटना 21 जून सन 622 ईसवी की है ,
2-रसूल की मस्जिद
जब मुहम्मद मक्का से भाग कर मदीना (यसरिब ) आये तो उनके साथ आये हुए लोगों का मदीना के लोगों ने अधिक विरोध नहीं किया ,क्योंकि उनको मुहम्मद की असलियत का पता नहीं था , और जब मुहम्मद को लगा की यहाँ कोई खतरा नहीं है ,तो उन्होंने और लोगों को मक्का से मदीना बुलवा लिया।, और जब मदीना में मुहम्मद के साथियों की संख्या बढ़ गयी तो मुहम्मद ने एक मस्जिद बनवाने की योजना बनायीं , ताकि वहां से लोगों नमाज के साथ जिहाद की ट्रेनिंग दी जा सके , मुहम्मद ने इसके लिए वही जगह चुनी जहाँ मदीना आते समय उनकी ऊंटनी थक कर बैठ गयी थी , मुहम्मद की ऊंटनी का नाम ” कसवा – ٱلْقَصْوَاء,लेकिन वह जमीन “सहल और सुहैल – سهل وسهيل ” ” नामके दो भाइयों की थी .पहले तो दौनों भाइयों ने अपनी जमीन बेचने से साफ मना कर दिया लेकिन अबूबकर के दवाब से उन्होंने जमीन वक्फ यानि दान कर दी , तब मुहम्मद ने वहां जो मस्जिद बनवाई उसका नाम “मस्जिदे कुबा- : مَسْجِد قُبَاء, ” है ,यह दुनियां की पहली मस्जिद या जिहाद प्रशिक्षण केंद्र ( Jihad Training Center था ,इस मस्जिद का आकार 30.5 m × 35.62 m (100.1 ft × 116.9 ftऔर ऊंचाई 3.60 m (11.8 ft). थी .यह कच्ची ईंटों से बानी थी ,जिस पर खजूर के पत्तों की छत लगी थी , यह मस्जिद तीनों तरफ से खुली थी जिसको तीन द्वार या अरबी में बाब कहा जाता है , इन तीन द्वारों के नाम इस प्रकार हैं ,
1-पूर्व में” बाबे रहमत – (باب الرحمة Bab ar-Rahmah
2-दक्षिण में बाबे जिब्राइल ” (باب جبريل Bab Jibril
3-पश्चिम में बाबुल निसा ” (باب النساء Bab an-Nisa(Gate for women )
इसका मतलब मुहम्मद ने महिलाओं को मस्जिद में जाने की अनुमति दी थी .
यह मस्जिद मुहम्मद और अबूबकर के घरों के पास थी ,आज इसे ” मस्जिदे नबवी – : ٱلْـمَـسْـجِـدُ ٱلـنَّـبَـوِيّ, ” कहा जाता है , इसमें अब तक कई सुधार हो चेके है , अगली हदीसें इसी से सम्बंधित हैं
1-रसूल ने गाना गाने और बांसुरी बजाने की अनुमति दी
यह पहली प्रामाणिक हदीस है , ” आयशा ने कहा कि एक बार अबूबकर मेरे घर आये .उस समय दो अंसार लड़कियां बुआथ का दिन मनाने के लिए गीत गाते हुए बांसुरी बजा रही थीं , यह देख कर अबूबकर नाराज होकर बोले ‘ रसूल के घर में ही शैतान की बांसुरी ? हम सभी सहम गए . उस दिन ईदुल्फित्र का दिन भी था , तब रसूल बोले , अय अबूबकर हरेक समुदाय का त्यौहार होता है , जैसे यह ईद हमारा त्यौहार है ‘
अरबी में है ” या अबाबकर इन्न लि कुल्लि कौमि इदन व हाज़ा ईदना ”
(يَا أَبَا بَكْرٍ إِنَّ لِكُلِّ قَوْمٍ عِيدًا وَهَذَا عِيدُنَا )
It was narrated that ‘Aishah said:
“Abu Bakr entered upon me, and there were two girls from the Ansar with me, singing about the Day of Bu’ath.” She said: “And they were not really singers. Abu Bakr said: ‘The wind instruments of Satan in the house of the Prophet ?’ That was on the day of ‘Eid(Al-Fitr). But the Prophet said: ‘O Abu Bakr, every people has its festival and this is our festival.’
“، عَنْ عَائِشَةَ، قَالَتْ دَخَلَ عَلَىَّ أَبُو بَكْرٍ وَعِنْدِي جَارِيَتَانِ مِنْ جَوَارِي الأَنْصَارِ تُغَنِّيَانِ بِمَا تَقَاوَلَتْ بِهِ الأَنْصَارُ فِي يَوْمِ بُعَاثٍ . قَالَتْ وَلَيْسَتَا بِمُغَنِّيَتَيْنِ . فَقَالَ أَبُو بَكْرٍ أَبِمَزْمُورِ الشَّيْطَانِ فِي بَيْتِ النَّبِيِّ ـ صلى الله عليه وسلم ـ وَذَلِكَ فِي يَوْمِ عِيدِ الْفِطْرِ فَقَالَ النَّبِيُّ ـ صلى الله عليه وسلم ـ “ يَا أَبَا بَكْرٍ إِنَّ لِكُلِّ قَوْمٍ عِيدًا وَهَذَا عِيدُنَا ” .
Sunan Ibn Majah » The Chapters on Marriage – كتاب النكاح
English reference : Vol. 3, Book 9, Hadith 1898
Arabic reference : Book 9, Hadith 1973
2-रसूल ने नृत्य और संगीत की तारीफ की
यह दूसरी हदीस है जिसमे पहली घटना को विस्तार से बताया गया है
आयशा ने बताया कि एक बार जब रसूल घरआये तो उस समय दो अंसार लड़कियां बुआथ के युद्ध का गीत गा रही थीं ,और बांसुरी बजा रही थीं तभी अबूबकर आगये उन्हों ने डांट कर उन लड़कियों से कहा कि रसूल के घर में शैतान के वाद्यों का क्या काम है ?तब रसूल ने अबूबकर को सम्बोधित करके कहा कि इन लड़कियों को अपना काम करने दो . और यह बात सुन कर जब अबूबकर घर से बाहर निकल गए तो मैंने उन लड़कियों को इशारा किया जहाँ बाहर हबशी लोग ईद का त्यौहार मनाने लिए भाले और ढाल लेकर नाच रहे थे , तब मैंने रसूल से पूछा कि क्या आप भी मेरे साथ नाच देखना पसंद करेंगे ? और जब रसूल राजी हो गए तो मेरे साथ इस तरह सट कर खड़े हो गए , जिस से उनके गाल मेरे गालों से सट गए .रसूल नाचने वालों को कह रहे थे “लगे रहो अय अफरीद के वंशजो आगे बढ़ो ” जब नाच देख कर मेरा मन भर गया तो रसूल ने पूछा कि अब तो तुम खुश हो ? तो मैंने कहा हाँ मैं संतुष्ट हूँ . तब हम घर आगये .
Aisha reported: The Messenger of Allah, peace and blessings be upon him, came to my house when two girls were beside me singing songs of Bu’ath. The Prophet laid down and turned his face to the other side. Then, Abu Bakr came in and spoke to me harshly, saying, “Musical instruments of Satan near the Prophet?” The Prophet turned his face toward him and he said, “Leave them alone.” When Abu Bakr became inattentive, I signaled to the girls and they left. It was the day of Eid and the Abyssinians were playing with shields and spears. Either I asked the Prophet or he asked me whether I would like to watch and I said yes. Then the Prophet made me stand behind him while my cheek was touching his cheek and the Prophet was saying, “Carry on, O tribe of Arfida.” I became tired and the Prophet asked me, “Are you satisfied?” I said yes, so I left.
يَلْعَبُ السُّودَانُ بِالدَّرَقِ وَالْحِرَابِ
عَنْ عَائِشَةَ، قَالَتْ دَخَلَ عَلَىَّ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم وَعِنْدِي جَارِيَتَانِ تُغَنِّيَانِ بِغِنَاءِ بُعَاثَ، فَاضْطَجَعَ عَلَى الْفِرَاشِ وَحَوَّلَ وَجْهَهُ، وَدَخَلَ أَبُو بَكْرٍ فَانْتَهَرَنِي وَقَالَ مِزْمَارَةُ الشَّيْطَانِ عِنْدَ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم فَأَقْبَلَ عَلَيْهِ رَسُولُ اللَّهِ ـ عَلَيْهِ السَّلاَمُ ـ فَقَالَ ” دَعْهُمَا ” فَلَمَّا غَفَلَ غَمَزْتُهُمَا فَخَرَجَتَا. وَكَانَ يَوْمَ عِيدٍ يَلْعَبُ السُّودَانُ بِالدَّرَقِ وَالْحِرَابِ، فَإِمَّا سَأَلْتُ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم وَإِمَّا قَالَ ” تَشْتَهِينَ تَنْظُرِينَ ”. فَقُلْتُ نَعَمْ. فَأَقَامَنِي وَرَاءَهُ خَدِّي عَلَى خَدِّهِ، وَهُوَ يَقُولُ ” دُونَكُمْ يَا بَنِي أَرْفِدَةَ ”. حَتَّى إِذَا مَلِلْتُ قَالَ ” حَسْبُكِ ”. قُلْتُ نَعَمْ. قَالَ ” فَاذْهَبِي ”
Reference : Sahih al-Bukhari 949, 950
In-book reference : Book 13, Hadith 2
USC-MSA web (English) reference : Vol. 2, Book 15, Hadith 70
नोट -इन हदीसों में वाद्य का नाम अरबी में “मिजामारः – مِزْمَارَةُ ” ” दिया गया है ,जिसका अर्थ बांसुरी या (Flute ) है .
3-निष्कर्ष – इन दौनों हदीसों का अध्यन करने पर मुस्लिम विद्वानों ने गैर मुस्लिनों के त्योहारों में शामिल होने और नृत्य और संगीत के बारे में जो सात नतीजे निकाले हैं। वह अंगरेजी और हिंदी में दिए जा रहे हैं
First-the Abyssinians were in the habit of dancing and playing.
1-नाचना हब्शियों का रिवाज है
. Second-, it is permissible to do this in the mosque
2-मस्जिद में ऐसा करने की अनुमति है
. Third,- the Prophet’s saying to Arfidah was a command and a request that they should play, so how then can playing be considered unlawful?
3-रसूल ने कह कर हब्शियों को आदेश दिया था ,और उन से गुजारिश की थी कि वह नाच करें , तो उनका नाचना शरीयत के विरद्ध कैसे माना जा सकता है ?
Fourth, the Prophet prevented Abu Bakr and Umar from interrupting and scolding the players and singers, and he told Abu Bakr that this festival was a joyous occasion and that singing was a means on enjoyment.
4-रसूल ने अबूबकर और उमर को रोका जब वह हब्शियों के नाच में दखल दे रहे थे , रसूल ने अबूबकर से कहा यह उत्सव का दिन है और गाने का मतलब ख़ुशी मनाना है
Fifth-, on both occasions he stayed for a long time with Aisha, letting her watch the show of the Abyssinians and listening with her to the girls singing
5-इन दौनों अवसरों में रसूल देर तक आयशा को हब्शियों का नाच दिखते रहे ,और लड़कियों द्वारा गाये जाने वाले गीत सुनाते रहे
Sixth-, the Prophet encouraged Aisha by asking her if she would like to watch.
6-रसूल ने आयशा का हौसला बढ़ाने लिए ,पूछा की क्या तुम्हें नाच पसंद है ?
Seventh-, singing and playing with the drum is permissible.”
7-नाचना ,गाना और ढोल बजाना जायज हैं
4-हदीसों की पृष्ठभूमि
इन दौनों हदीसों में बताया गया है कि अंसार की लडकिया रसूल के घर में और रसूल की मस्जिद में “बुआथ की लड़ाई का गीत गा रही थीं ,और बांसुरी बजा रही थी , वास्तव में यह लड़ाई एक ऐतिहासिक घटना है ,जिसे अरबी में “मुआरकत बुआथ – :معرکة بُعاث ” यह घटना सन 617 ई ० में हुई थी ,यह लड़ाई अरब के कबीले “औस -: اوس ” और “अखेरज़ – : خزرج), ” के बिच हुई थी , इस लड़ाई में मदीना के लोग जीत गए थे , उन दिनों अरब के लोग युद्ध में जीतने वालों की तारीफ में कविता और गीत बना कर लोगों को सुनाया करते थे ,ताकि लोग उस घटना को हमेशा याद रखें ,ऐसी परंपरा हरेक देश के लोगों में पायी जाती है .
हम इस लेख के माध्यम से उन इस्लाम के ठेकेदारों से पूछना चाहते हैं ,जो किसी मुस्लिम को किसी हिन्दू उत्सव में शामिल होने पर काफिर घोषित कर देते हैं इस्लाम से बाहर कर देते हैं , यह हदीस पढ़ कई ऐसा लगता है कि अगर मुहमद साहब भारत आये होते तो हिन्दुओं के त्योहारों की भव्यता देख वह भी उत्सव में सम्मिलित हो गए होते , इस से यह भी साबित होता है कि मुल्ले रसूल की सुन्नत नहीं बल्कि अबूबकर की सुन्नत का पालन करते हैं ,क्योंकि अबूबकर को गैर मुस्लिमों त्यौहार और उसमे होने वाला गाना ,बांसुरी। ढोल आदि बजाना और नाचने से नफ़रत थी
(465)
ब्रजनंदन शर्मा