( पूर्व जनम) पूरब लिखिया कमावणा कोई न मेटणहार
ऋषि राज नागर एडवोकेट
संत कबीर –
बाम्हन गुरु जगत का, साधु का गुरु नाहि।
उरझि – उरझि कर मारि रहा, चारिउँ वेदा माहि॥
किया जप किया तप सजमो, किया बरत इसनान ।
जब लग जुगति न जानीऐ, भाउ भगति भगवान॥
गुरु नानक देव –
जप तप करि करि संजम थाकी हठ निग्रहि पाईए ।
नानक सहज मिले जग जीवन सतिगुर बूझ बुझाईऐ ।।
जप तप संजम करत करे पूजा मनमुख रोग न जाई।
अंतरि रोग महा अभिमाना दूजै भाई खुआई ।।
पढ़ि पढ़ि पंडित जोतकी, वाद करहि वीचार ।
मति बुद्धि भवी न बुझहो अंतर लोभ विकार ।।
लख चौरासी भरमते भ्रम भ्रम होइ, खुआर।।
(पूर्व जनम) पूरब लिखिया कमावणा कोई न मेटणहार॥
पंडित पडदे जोतकी ना बझाहि विचारा॥
सभ किछ तेरा खेल है, सजसिरजणहारा ॥
पढ़ि पंडित अवरा समझात॥ घर जलते को खबर न पाए !!
बिन सति गुरु सेवे नाम न पाईऐ पढ़ि थाके साँति न आई है।
जोगी होना जगि, भवा घर घर भीखिया लेड।।
( मालिक की दरगाह) दरगह लेखा मंगीऐ किस किस उतरू देउ ।
सन्त महात्माओं और ऋषि मुनियों ने हम लोगों को काफी चेताया है, और हम को अनेक आडम्बर व सामाजिक कुरीतियों से सावधान करने के लिए काफी कुछ समझाया व वाणी लिखी है।” हमको आज भी सत्संग अथवा प्रवचन के द्वारा सावधान किया जाता है, लेकिन हम अपनी मानसिकता व सोच से बाहर नहीं निकले हैं।
हम लोग छोटे-छोटे कार्य जैसे कि मकान का महूरत, नाम करण संस्कार तथा छोटे धार्मिक अनुष्ठान, बच्चों के जन्म तथा शादी ब्याह की तिथि तय करने से लेकर यदि कोई मनुष्य मत्यु को प्राप्त होता है, तो उसकी मृत्यु उपरान्त गायत्री जाप, हवन आदि के लिए उन्ही कर्मकाण्डी पंडितो को तलाशते हैं। चाहे आप कितने ही पढे लिखे विद्वान हो, तो भी आप उन कम पढ़े लिखे कर्म काण्डी पंडितों पर निर्भर रहते हैं।
आजकल काफी देखने में आता है कि मनुष्य की मृत्यु उपरान्त से पंडित लोग गायत्री के नाम पर कई कई हजारों रुपया वसूलते है, तथा खूब सोदे बाजी भी करते हैं जब ये लोग ज्यादा व्यस्त रहते है तो कहते, कि हमने काफी जाप – पाठ लाखों में पहले ही किया हुआ है। हमको जाप करने की जरूरत नहीं है वह जाप हम जीव, (मृतक) के लिए हस्तान्तरित (ट्रांसफर). कर देगें । आप हमें 20,30 हजार आदि – आदि रुपया दान कर दें। हमें सोचना चाहिए, कि क्या ऐसा सम्भव कि भजन या जाप कोई ओर करे और उसका फल हमें या मृतक को प्राप्त हो जाय ?, ऐसा सम्भव नहीं है।, ऐसे मनमुखी लोगों के लिए कबीर साहिब कहते हैं –
फक कारन सेवा करै, तजै न मन से काम ।
कहै कबीर सेवक नहीं, चहै चौगुना दाम ॥
गुरु बिन माला फेरता, गुरु बिन करता दान ।
गुरु बिनु सब निष्फल गया, बूझो वेद पुरान ॥
गुरु हमारे अज्ञान को दूर करता है। हमारे जीवन में प्रकाश लाता है । इसलिए उसका हमारे जीवन में विशेष स्थान है। गुरु में भी सबसे पहला स्थान माता का है ।।उसके बाद दूसरा स्थान पिता का है और तीसरा आचार्य का है। इन तीनों के महत्व और अस्तित्व को हम नकार नहीं सकते । जिसने इन तीनों के महत्व और अस्तित्व को स्वीकार कर लिया उसका जीवन सुंदर से सुंदर बन जाता है। वही सत्यम शिवम सुंदरम का उपासक होता है।