जीटी रोड का महत्व और इतिहास
जीटी रोड किसने बनवाया था और जीटी रोड का पुराना नाम क्या है
लव त्रिपाठी
जिन शहरों से जीटी रोड होकर गुजरती है उनमें रहने वाले लोगों के मन में ये विचार जरुर आया होगा की जीटी रोड का निर्माण किसने करवाया और जीटी रोड का पुराना नाम क्या है?
आईए जानते हैं जीटी रोड के इतिहास को
जीटी रोड का निर्माण किसने करवाया
जीटी रोड हमारे देश की सबसे बडी रोड है और यह दिल्ली से लेकर कलकत्ता तक जाती है।
हमनें इतिहास की किताबों में पढ़ा है की शेरशाह सूरी ने 16 शताब्दी में जीटी रोड का निर्माण करवाया लेकिन ये पूरी जानकारी नहीं है।
शेरशाह सूरी ने सिर्फ जीटी रोड की मरम्मद करवाई थी, जीटी रोड का इतिहास तो महाभारत काल का है।
जीटी रोड का निर्माण महाभारत काल में हुआ था।
यह सड़क पुरुषपुर (पेशावर), तक्षशिला (रावलपिंडी), हस्तिनापुर (मेरठ), कान्यकुब्ज (कन्नौज), प्रयागराज, पाटलिपुत्र (पटना), ताम्रलिप्ता (कोलकता के पास) शहरों को जोड़ती थी।
तब इसको उत्तरीपथ कहा जाता था। इसके साथ दक्षिणी पथ का भी निर्माण करवाया गया था यह मार्ग कंबोजा (कंबोडिया) तक गया था।
महाभारत काल के बाद इस रोड का पुनर्निर्माण मौर्य साम्राज्य के चंद्रगुप्त मौर्य (322 ईसापूर्व से 279 ईसापूर्व ) ने करवाया और उत्तरीपथ को अपना राजमार्ग बनाया।
इसका उल्लेख यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने भी किया है। चंद्रगुप्त मौर्य ने इस सड़क के रखरखाव के लिए एक सेना तैनात कर रखी थी और इस सड़क को चौड़ी और इसके किनारे पेड़ और कुएं भी खुदवाए थे।
मौर्य साम्राज्य के समय दुनियां के कई देशों से उत्तरपथ के माध्यम से व्यापार होता था।
चंद्रगुप्त मौर्य के बाद सम्राट अशोक (268 ईसापूर्व से 232 ईसापूर्व) ने इस रोड का ध्यान रखा और इस रोड के किनारे किनारे रुकने की व्यवस्था करवाई और इस मार्ग का सुंदरीकरण करवाया।
अशोक के बाद राजा कनिष्क (127 ईस्वी से 150 ईस्वी ) ने इस रोड का ध्यान रखा और इसकी मरम्मद करवाई।
बाबर के सैनिक के रूप में कार्य करने वाले और फिर अपनी प्रतिभा के दम पर सेनापति बनने वाले शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराकर उत्तरी भारत में राज किया।
शेरशाह सूरी ने उत्तरापथ को ठीक करवाया और इस मार्ग को सुगम बनाया। शेरशाह सूरी ने इस मार्ग को कई अन्य स्थानों से भी जोड़ा।
शेरशाह सूरी के बाद अंग्रेजों ने इस मार्ग का फिर से निर्माण करवाया और इसका नाम बदलकर ग्रांड ट्रंक रोड (जीटी रोड) कर दिया।
हावड़ा से कानपुर तक इस रोड को राजमार्ग संख्या 2 के नाम से जाना जाता है और कानपुर से गाजियाबाद तक इस रोड को राष्ट्रीय राजमार्ग 91 के नाम से जाना जाता है।
यह रोड बाघा बार्डर तक जाती है और फिर उसके आगे पाकिस्तान में पेशावर से होते हुए काबुल पर खत्म होती है।