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कांग्रेस के वह कद्दावर नेता जिन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही दे दी थी चुनौती

संजय दुबे

गुजरात चुनाव पर पूरे देश की नजर है। 2024 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसमें गुजरात और हिमाचल प्रदेश का चुनाव भी शामिल है। हिमाचल प्रदेश के चुनाव की तिथियां घोषित हो चुकी हैं। मतदान अगले महीने नवंबर में होंगे। गुजरात का चुनाव भी इसी महीने में हो सकते हैं। दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है और दोनों राज्यों में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है। ऐसे में दोनों ही दलों के लिए ये महत्वपूर्ण है।

गुजरात में लंबे समय से भाजपा सत्ता में है। इसके पहले कांग्रेस पार्टी का दौर था। कांग्रेस पार्टी के अलग-अलग कई नेताओं ने राज्य का नेतृत्व किया। इनमें एक नेता थे चिमनभाई पटेल, जिन्होंने राज्य विधानसभा में पार्टी का नेता कौन होगा और मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी से ही विवाद कर लिया था।

दरअसल जून 1973 चिमन भाई पटेल के समर्थन में महज़ 70 विधायक थे। राज्य विधानसभा में168 सीट थी। ऐसे में सरकार बनाने के लिए उनके पास जरूरत भर के विधायक नहीं थे। यानी खुद मुख्यमंत्री के दौड़ में होने के बावजूद समर्थक विधायकों की संख्या कम होने से वे परेशान थे। उनके सामने दो ही रास्ते थे, या तो वे पार्टी से अलग हो जाएं या फिर इंदिरा गांधी जिसे सीएम बनाना चाहें उसका समर्थन करें।

वह दोनों के पक्ष में नहीं थे। वह उस समय बंबई के राजभवन में अपनी दावेदारी पेश करने के लिए इंदिरा गांधी से मिलने पहुंचे। लेकिन बात बिगड़ने पर उन्होंने इंदिरा गांधी से साफ तौर पर कहा, “आप यह तय नहीं कर सकती कि गुजरात में विधायक दल का नेता कौन होगा। यह चीज वहां के विधायक ही तय करेंगे।”

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इसके बाद इंदिरा गांधी ने उनका विरोध नहीं किया और उन्हें तत्कालीन विदेश मंत्री और गुजरात प्रभारी सरदार स्वर्ण सिंह से मुलाकात करने को कहा। स्वर्ण सिंह ने इस समस्या के समाधान के लिए गुप्त मतदान का सुझाव दिया। हालांकि इसके पहले यह कभी नहीं हुआ था। स्वर्ण सिंह खुद गुजरात गये और सभी विधायकों को बुलाकर चिमनभाई पटेल और कांतिलाल घिया के लिए गुप्त मतदान कराया। इसकी गिनती दिल्ली में कराई गई। इस मतदान में चिमनभाई पटेल सात वोटों से जीत गये।

इंदिरा गांधी से टकराव का नतीजा भी भुगतना पड़ा

चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री जरूर बन गये, लेकिन वह लंबे दौर तक अपने पद पर नहीं रहे। इंदिरा गांधी से टकराव लेने का नतीजा भी उन्हें पाना ही था। लिहाजा कुल दो सौ दिन तक सत्ता में रहने के बाद बढ़ती महंगाई और छात्रों के असंतोष के चलते शुरू हुए गुजरात नवनिर्माण आंदोलन के दौरान इंदिरा गांधी के निर्देश पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद वहां पर बाबूभाई पटेल के नेतृत्व में गैरकांग्रेसी सरकार बनी। इसी आंदोलन के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी आंदोलन शुरू कर दिया था।

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