क्या राजा पोरस ने सिकंदर को हराया था ?
लव त्रिपाठी
हमारे इतिहास में राजा पोरस को वह स्थान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे।
राजा पोरस कौन थे इसके बारे में भी अधिक जानकारी इतिहास में नहीं मिलती है।
जबकि हमारे इतिहास में मुगल आक्रमणकारियों के बखान भरे पड़े हैं।
जबकि सच यह है की भारत का इतिहास आज राजा पोरस के कारण ही सिकंदर से बचा हुआ था।
हमारे इतिहास में लिखा गया है की सिकंदर ने पोरस को हराया जबकि पोरस ने सिकंदर को हराकर उसको जीवन दान दिया था।
अगर सिकंदर पोरस से जीता होता तो वह पोरस के बाद मगध साम्राज्य पर हमला करता जो की उस वक्त भारत का सबसे बड़ा और शक्तिशाली साम्राज्य था।
इतिहास में कहीं भी मगध साम्राज्य और सिकंदर के बीच में टकराव का वर्णन नहीं है।
क्योंकि सिकंदर राजा पोरस से हारकर झेलम के तट से ही वापस लौट गया था।
इसके साथ ही सिकंदर के हारे हुए सेनापति सेल्युकस को अपनी बेटी हेलेना से चंद्रगुप्त की शादी करवानी पड़ी थी।
क्या कभी कोई जीता हुआ राजा अपनी बेटी की शादी अपने शत्रु से करवाएगा।
राजा पोरस कौन थे
राजा पोरस का असली नाम राजा पुरूषोत्तम था जिनको राजा पुरु भी कहा जाता था।
चूंकि भारतीय इतिहास को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था इसलिए राजा पुरु के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
जो भी जानकारियां उपलब्ध हैं वो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही सूचना और मंदिरों, कहावतों, खंडहर की दीवारों में मिली हैं।
बाकी का उल्लेख यूनानी इतिहास में है और यूनानी इतिहास में राजा पुरु को राजा पोरस लिखा गया है।
इसीलिए राजा पुरु को राजा पोरस कहा जाता है।
ज्ञात तथ्यों के आधार पर मिली जानकारी के अनुसार राजा पोरस ने 340 ईसा पूर्व से 315 ईसा पूर्व तक शाशन किया था।
राजा पुरूषोत्तम पुरू वंश के राजा था और इनका साम्राज्य झेलम और चिनाब नदियों के बीच में और आसपास तक फैला हुआ था।
राजा पुरू ने जब सिकंदर से लड़ाई की तब राजा पुरू की उम्र 50 वर्ष के करीब थी। वह काफी लंबे और तगड़े मांशपेशियों से भरे शरीर के थे।
सिकंदर को विश्व विजेता बनने का विचार कैसे आया
सिकंदर के दिमाग में विश्व विजेता बनने का विचार उस वक्त के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने डाला था।
सिकंदर ने राजा बनने के लिए पहले अपने चचेरे और सौतले भाइयों को मार डाला और फिर वो मकदूनिया (प्राचीन यूनान का एक प्रांत) का राजा बन गया।
उसके बाद सिकंदर के गुरु अरस्तू ने सिकंदर को विश्व विजेता बनने का विचार दिया और सिकंदर ने उसे बहुत ही गंभीरता से लिया।
किस बात ने सिकंदर को भारत पर आक्रमण करने पर प्रोत्साहित किया
सिकंदर अपने विश्व विजेता बनने के अभियान पर था। उसे कई लोगों ने भारत की समृद्धि के बारे में बताया था। सिकंदर ने जब भारत पर हमला किया (336 ईसा पूर्व) तो उसने तक्षशिला के राजा अंबी को हराया।
राजा अंबी ने उसे इतनी सारी दौलत दी की सिकंदर विस्मित हो गया।
उसने सोचा कि जब एक छोटे से राज्य में इतना धन है तो पूरे भारत में कितना धन होगा।
उसने अंबी के साथ संधि करके भारत के अनेक छोटे छोटे राज्यों पर हमला करने की तैयारी शुरू कर दी।
राजा अंबी ने सिकंदर को पोरस (राजा पुरु जिन्हे राजा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है) के ऊपर हमला करने को कहा।
राजा पोरस और तक्षशिला के राजा अंबी के बीच दुश्मनी थी।
सिकंदर ने राजा पोरस को आत्मसमर्पण करने का संदेश भिजवाया लेकिन राजा पोरस ने मना कर दिया और युद्व का न्यौता भेज दिया।
सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध की तैयारियां शुरू हो गईं।
राजा पुरू और सिकंदर के बीच का युद्व
राजा पोरस और सिकंदर के बीच का युद्व 326 ईसा पूर्व में झेलम नदी के तट पर लड़ा गया था। इस युद्व को “बैटल ऑफ हाईडास्पेस” भी कहा जाता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि झेलम नदी को ग्रीक भाषा में हाईडास्पेस कहा गया है।
झेलम नदी के दोनों तरफ सिकंदर और पोरस की सेना खड़ी थी।
सिकंदर के पास 50 हजार पैदल सैनिक, 7 हजार घुड़सवार थे। पोरस की सेना में 20 हजार पैदल सैनिक, 4 हजार घुड़सवार, 4 हजार रथ और करीब 150 हाथी थे।
सिकंदर की सेना ने राजा अंबी की सहायता से रात में झेलम को पार किया और युद्व के मैदान में राजा पोरस के सामने आ गया।
सिकंदर के 11 हजार सैनिकों ने झेलम पार किया और बाकी के सैनिक झेलम की उत्तर की दिशा की तरफ से आने लगे जहां पर राजा पोरस के पुत्र ने मोर्चा संभाला हुआ था।
सिकंदर और पोरस की सेना की बीच भयानक युद्व शुरू हुआ। राजा पोरस की सेना के हाथियों ने सिकंदर की सेना का बुरा हाल कर दिया।
हजारों सैनिक मारे गए और साथ में भयंकर बारिश भी हो रही थी। राजा पोरस के हाथियों और कुशल घुड़सवार सेना ने सिकंदर की सेना का लगभग सफाया ही कर दिया था।
सिकंदर अपनी सेना का यह हाल देखकर बहुत ही घबरा गया और उसने राजा पोरस के पास संधि प्रस्ताव भेजा।
जिसे राजा पोरस ने स्वीकार कर लिया।
इस तरह झेलम के किनारे हुए युद्व में राजा पोरस की विजय हुई।
राजा पोरस और सिकंदर के बीच हुई संधि में लिखा था की सिकंदर अब यहां से वापस लौट जायेगा।
सिकंदर की मजबूरी थी राजा पोरस से संधि करना क्योंकि अगर वो संधि ना करता तो राजा पुरू उसे मार डालते और अगर किसी तरह सिकंदर जीत भी जाता तो आगे का रास्ता उसका बहुत मुश्किल होता।
क्योंकि आगे मगध साम्राज्य था जो उस वक्त भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। घनानद उस वक्त मगध का राजा था।
इसी घनानंद ने ही चाणक्य को भरी सभा में अपमानित किया था।
इसी अपमान से आहत होकर चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर नंद साम्राज्य के अंतिम शासक घनानंद का अंत किया था।
अगर सिकंदर पोरस से जीत भी जाता तो घनानंद के 5 लाख सैनिक के आगे सिकंदर के 50 हजार थके हुए सैनिक एक दिन नहीं ठहर पाते।
सिकंदर की सेना का मनोबल भी इस युद्ध के बाद टूट गया था और उसने नए अभियान के लिए आगे बढ़ने से इंकार कर दिया था।
सेना में विद्रोह की स्थिति पैदा हो रही थी इसलिए सिकंदर ने वापस जाने का फैसला किया।
सैनिक विद्रोह ओर खराब स्वास्थ्य के कारण वो यूनान के लिए वापस चल पड़ा ओर मार्ग मे ही उसकी मृत्यु हो गई थी।
इस तरह झेलम नदी के किनारे इस युद्ध में पोरस ने सिकंदर को हराया था।
लेकिन हमारे इतिहास में यह कहीं नहीं लिखा क्योंकि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने पूरे इतिहास को ही नष्ट कर दिया।
हालंकि ईरानी और चीनी इतिहासकारों ने लिखा है की पोरस ने किस तरह सिकंदर को हराया और सिकंदर को मजबूरी में समझौता करके वापस लौटना पड़ा।
सिकंदर की मृत्यु के बाद उसके सेनापति सेल्यूकस ने अपने स्वामी की इच्छा पूरी करने के लिए भारत पर फिर से आक्रमण किया था जिसमें वो हारा था।
चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को हराया था ओर बाद में संधि में उसकी बेटी हेलेना से शादी कर ली थी ।
सिकंदर मगध साम्राज्य तक पहुंचा ही नहीं था।
पोरस की मृत्यु कैसे हुई
पोरस की मृत्यु के बारे में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। हां इतना जरूर पता है की पोरस की हत्या की गई थी।
बहुत से इतिहासकार ये मानते हैं की पोरस की हत्या घनानंद ने करवाई थी क्योंकि उस वक्त पोरस ने चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाने का प्रयत्न कर रहा था।
जबकि बहुत से इतिहासकार ये मानते हैं की राजा पोरस की हत्या चाणक्य ने करवाई थी ताकि चंद्रगुप्त मौर्य को आगे चलकर कोई दिक्कत ना हो।
तो जो कहावत हमनें सुनी है जो जीता वही सिकंदर ये कहावत गलत है और यह यूनानी लोग कहते हैं ताकि सिकंदर को महान बना सकें।
जबकि सही कहावत तो यह है की “जो जीता वही पोरस”