भारत वर्ष के इतिहास के प्रति हमारी अपनी नीरसता और उदासीनता का परिणाम यह है कि कोई भी व्यक्ति हमारे महान पूर्वजों के महान पुरुषार्थ और पराक्रम के विषय में कुछ भी कह जाने के लिए स्वतंत्र है। अपने इतिहास के प्रति बरती गई लापरवाही का परिणाम यह है कि हमें अपने ही पूर्वजों पर नित्य प्रति कोई न कोई ऐसा बेतुका आरोप झेलना पड़ रहा है जिसका कोई आधार नहीं है। अभी संभल में आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने कार्यकर्ता सम्मेलन में मर्यादा की सीमा पार कर दी हैं। उन्होंने हिंदुओं के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लिए बिना अमर्यादित टिप्पणी की। जनसभा को संबोधित करते हुए शौकत अली ने कहा कि मुस्लिमों ने 832 साल हिंदुस्तान पर शासन किया और हिंदू लोग हमारे बादशाह के सामने हाथ जोड़ कर जी-हुजूरी किया करते थे।
इसी प्रकार के अनर्गल भाषण और अपमानजनक टिप्पणियां एआईएमआईएम के अन्य नेताओं की ओर से भी समय-समय पर हमें सुनने को मिली है। हिंदू समाज की उदारता और सहिष्णुता का अनुचित लाभ उठाते हुए उसे इतिहास के प्रति पूर्णतया उदासीन बनाने का षड्यंत्र आजादी के पहले दिन से आरंभ हुआ। जब यह मिथक गढ़ा गया कि भारत की आजादी में हिंदू मुस्लिम दोनों ने बराबर की सहभागिता की थी और इसके लिए दोनों ने बराबर बलिदान दिए थे। इस सच को भी हिंदू समाज ने अपने आप ही दबा और छुपा लिया कि आजादी के लिए हिंदुओं ने 712 ईसवी से अपने बलिदान देने आरंभ किए थे, जब मोहम्मद बिन कासिम भारत की स्वतंत्रता का हनन करने का उद्देश्य लेकर भारत पर आक्रमणकारी के रूप में चढ़कर आया था। उसके पश्चात जितने भर भी मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पर चढ़कर आए उन सब का भी हिंदुओं ने जबरदस्त प्रतिरोध और प्रतिशोध किया।
अब पहली बात तो यह है कि हिंदुस्तान पर किसी भी विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी का पहला राज्य 1206 ईस्वी में गुलाम वंश के रूप में स्थापित हुआ। जिसका प्रमुख कुतुबुद्दीन ऐबक बना। चाहे मुस्लिम इतिहासकार हों चाहे अंग्रेज इतिहासकार हों और चाहे आज के कम्युनिस्ट और कांग्रेसी इतिहासकार हों,सभी इस बात पर सहमत हैं कि भारत में मुस्लिम साम्राज्य का विधिवत शुभारंभ 1206 ईस्वी से ही हुआ। ऐसी परिस्थितियों में 832 वर्ष में 1206 जोड़ने पर 2038 आता है। मियां शौकत अली ने कहां से यह गणित भिड़ाया है ? हम नहीं जानते । पर इतना अवश्य है कि इस प्रकार की बेतुकी बातों से देश में भ्रांतियां अवधि फैलती हैं और इसी प्राकर की भ्रांतियों का लाभ शौकत अली जैसे लोग उठाना चाहते हैं।
शौकत अली से पूछा जा सकता है कि 712 ईसवी में जब सिंध का राजा दाहिर सेन, उनकी रानी लाडो उनकी पुत्री और उनके पुत्र अपनी विशाल सेना के साथ बलिदान दे रहे थे तो वह आपके तथाकथित पूर्वजों की जी हुजूरी कर रहे थे या उनका सिर काट रहे थे ? उसके बाद जब माउंट आबू पर बैठकर देश के तत्कालीन बड़े नेताओं ने हिंदू समाज की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक फैसला लेकर मुस्लिम आक्रमणकारियों का मजबूती से सामना करने का संकल्प लिया था तो वह संकल्प जी हुजूरी की श्रेणी में आता था या अपने देश की संस्कृति के विनाश करने वाले लोगों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए मर मिटने के विकल्पविहीन संकल्प की उत्तमोत्तम बलिदानी भावना का प्रतीक था ?
हम यह बता देना चाहते हैं कि मियां शौकत तुम नहीं जानते कि धरती के स्वर्ग हमारे देश भारत ने अपने आप को बचाने के लिए पहले दिन से अनगिन बलिदान दिए हैं और यह बलिदान केवल हिंदू समाज ने दिए हैं। तुम्हारे तथाकथित आक्रमणकारी और आपराधिक मानसिकता के पूर्वजों ने इस देश को ना तो अपना माना है और ना ही अपना मान कर यहां पर शासन किया है। इतना अवश्य है कि हमारे देश की युवा पीढ़ी को भ्रमित करने के लिए यह कपट जाल अवश्य रचा गया है कि जो मुगल या अन्य मुसलमान यहां पर आकर बस गए वे यहीं के हो गए और उन्होंने इस देश को अपना माना। पर तुम्हारे जैसे लोगों की भाषा आज भी बता रही है कि तुम्हारे लिए यह वतन आज भी अपना नहीं है। देश से पहले तुम्हारे लिए आज भी काबा है।
इतिहास के जिन स्थानों को आज मिटा दिया गया है उनका पुनः संकलन हो रहा है और मिटाए हुए इतिहास के पन्ने अनेक प्रमाणों के आधार पर सीना तान कर बोल रहे हैं कि आपके तथाकथित जिन पूर्वजों ने 712 ईसवी के पश्चात भारत के भूभाग को हथियाने में जितनी सफलता प्राप्त की थी उस सारे पर पानी फेरने के लिए अगले 20 वर्ष में ही प्रतिहार वंश के प्रतापी शासक नागभट्ट प्रथम और महाराणा प्रताप के पूर्वज बप्पा रावल उठ खड़े हुए थे। जिन्होंने यहां से लेकर आपके घर अरब तक आपका पीछा किया था। बप्पा रावल आपकी 20 से अधिक बेटियों को छीन कर लाए थे। यहां से वहां तक जितने भाग में आपने हिंदू लोगों का धर्मांतरण कर लिया था उन सब की घर वापसी कराने में भी सफलता प्राप्त की थी। यह ऐसे शूरवीर थे जिनके तलवे चाट कर तुम्हारे पूर्वज प्राणों की भीख मांगा करते थे। बप्पा रावल का मूल नाम कालभोज था और जानते हो उन्हें बप्पा रावल क्यों कहा गया था? मियां ! केवल इसलिए कि उन्होंने उस समय देश के राष्ट्रपिता का दायित्व निर्वाह किया था। संस्कृत का वाप: शब्द बाप में बदल गया और बाप का ही बप्पा या बापू हो गया है। इसलिए याद रखना कि यह शब्द बहुत मायने रखता है। इसके मायने हैं कि हमारे उस काल के बप्पा रावल अर्थात राष्ट्रपिता के सामने तुम्हारे तथाकथित पूर्वज पानी भरते थे। तुम्हारे पूर्वज उनके नाम की आहट सुनकर भी रात को चारपाहियों पर उछल पड़ते थे। यह वही लोग थे जिनका नाम लेकर तुम्हारे रोते हुए बच्चों को तुम्हारी औरतें यह कह कर सुला दिया करती थीं कि यदि रोएगा तो अमुक हिंदू वीर तेरी आवाज को सुन लेगा और तुझे खा जाएगा।
भारत की इसी वीर परंपरा को नागभट्ट प्रथम ने जारी रखा था और 815 – 20 ईसवी के बीच उन्होंने फिर ऐसे अनेक यज्ञ रचाए थे जिनमें लोगों की घर वापसी करा कर देश की संस्कृति की रक्षा करने का अप्रतिम कार्य किया गया था। अपने जिन पूर्वजों के नामों की तुम धमकी देते हो कि उनकी तेगों के सामने हिंदू चुप लगा जाया करते थे, आपके वे पूर्वज हमारे नागभट्ट द्वितीय और उसके वंश के अन्य प्रतापी सम्राटों के समक्ष सिर झुका कर खड़े होते थे और यदि कोई उत्पात कर रहे होते थे तो नागभट्ट द्वितीय के बदन को छूकर आई हवा के संस्पर्श मात्र से भी अपने आप को सीधा कर लिया करते थे।
इसी परंपरा को उनके वंशज मिहिर भोज ने आगे बढ़ाया था। जिनके लिए आपके खफी खान और सुलेमान जैसे इतिहासकारों ने लिखा है कि इस प्रतिहार वंश के शासन काल में 300 वर्ष तक मुसलमानों की हिम्मत भारत की ओर पैर करके सोने की भी नहीं हुई थी। पता है हमारे इस वीर प्रतापी शासक के शासनकाल में तुम और तुम्हारे पूर्वज अरब की चारदीवारी में बंद हो गए थे। वहां से बाहर निकल कर भारत की ओर देखना तक आपने उचित नहीं माना था और अपने लिए शहर ए महफूज नाम का एक ऐसा शहर अलग बसा लिया था जहां भारत के वीर प्रतापी सम्राट की नजर ना पड़े। उस समय तुम्हारे जैसे लोग हमारे उस वीर प्रतापी शासक की आरतियां उतारा करते थे।
और सुन लीजिए मान्यवर ! जिस समय आपका लुटेरा, हत्यारा, बलात्कारी तथाकथित पूर्वज महमूद गजनवी इस देश पर आक्रमणकारी के रूप में आया था और उसने हमारे सोमनाथ के मंदिर को तोड़ा था तो 1026 ईस्वी में उसे गुजरात के तत्कालीन शासक भीमदेव ने चुनौती दी थी और अपने पचास हजार सैनिकों का बलिदान दिया था। जब हमारे उस वीर प्रतापी शासक ने देखा कि इसके उपरांत भी विदेशी आक्रमणकारी गजनवी हमारे देश की आन बान शान के प्रतीक सोमनाथ के मंदिर को तोड़ने में सफल हो गया है तो उन्होंने स्वदेश के अपने अन्य साथी राजाओं के लिए एक पत्र लिखा था। उस पत्र के आधार पर हिंदू राजाओं ने उस समय राष्ट्रीय सेना का गठन किया था और आपके उस हत्यारे पूर्वज को युद्ध के मैदान में ऐसी धूल चटाई थी कि जितना सामान लूटकर वह ले जा रहा था वह तो उससे छीन ही लिया गया था साथ ही उसकी सेना को भी काट कर फेंक दिया गया था। आपके इस पूर्वज के बारे में प्रोफेसर हबीब जैसे राष्ट्रवादी लेखक ने लिखा है कि “महमूद असीम संपत्ति में लोटता था। भारतीय उसके धर्म से घृणा करने लगे। लुटे हुए लोग कभी भी इस्लाम को अच्छी नजर से नहीं देखेंगे? ….जबकि इसने अपने पीछे लुटे मंदिर, बर्बाद शहर और कुचली लाशों की सदा जीवित रहने वाली कहानी को ही छोड़ा है। इससे धर्म के रूप में इस्लाम का नैतिक पतन ही हुआ है। नैतिक स्तर उठने की बात तो दूर रही। उसकी लूट 3000000 दिरहम आंकी गई है।” यह है आपके पूर्वजों के इतिहास का सच।
उसके पश्चात अगले पौने दो सौ वर्ष तक आपके बुजदिल पूर्वजों का साहस इस देश पर आक्रमण करने का नहीं हुआ था। इसे कहते हैं देश भक्ति और यही है देश की स्वाधीनता का संघर्ष। जिसे इस देश के इतिहास से मिटा दिया गया है। पर आज का हिंदू अपने इस गौरवपूर्ण इतिहास को पढ़ रहा है और और उससे प्रेरणा लेकर जाग रहा है। इसलिए आपको उत्तर देने के लिए अब हिंदू मानस पूर्णतया तैयार हैं।
आपने संसार के अन्य देशों की संस्कृतियों को मिटाया होगा पर भारत एक ऐसा देश है जिसमें कई कई सौ साल तक प्रवेश करने तक का तुम्हारा साहस नहीं हुआ था। यह हमारे पूर्वजों की वीरता का ही कमाल था जिसके कारण तुम्हें दोजख की आग में बार-बार फेंका गया था।
वह भी हमारे ही पूर्वज थे जिन्होंने आपके सलार मसूद की 1100000 की सेना को 1034 ई0 में राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में बहराइच के मैदान में गाजर मूली की तरह काट कर फेंक दिया था। इस नजारे को देखकर तुम्हारी जन्नत की हूरें भी हूक मार मार कर रो रही थीं कि हमारे महबूब की इतनी फजीहत क्यों कर दी ? याद रखना कि तुमने पीठ में खंजर भोंक ना जाना है और हमने एक बार नहीं अनेक बार माफ करना सीखा है।
हमारे पृथ्वीराज चौहान को भी तुम मैदान में नहीं हरा पाए थे। छल, बल ,चालाकी, धोखे और फरेब से तुमने अनेक स्थानों पर हमारे वीर हिंदू पूर्वजों को पराजित करने का नाटक किया। इसलिए हमारा प्रचलित इतिहास तुम्हारे छल , धोखे और फरेब की कहानी को प्रकट करने वाला इतिहास है । इसमें वीरता का लेश मात्र भी नहीं है। जिसे तुम वीरता कहते हो उसे हमारे यहां धोखा और फरेब कहकर हेय दृष्टि से देखा जाता है। जिसे तुम हरम कहते हो उसे हमारे यहां नरक कहा जाता है। हमने निरपराधों का खून बहाना कभी उचित नहीं माना। महिलाओं पर अत्याचार करना हमने धर्म के विरुद्ध माना। बच्चों और बूढ़ों को युद्ध में कभी मरा नहीं। जबकि तुम्हारे हर पूर्वज ने मानवता के विरुद्ध ये सारे अपराध किए हैं। स्पष्ट है कि हमारी चादर और हमारा अतीत बहुत उज्ज्वल है और तुम्हारे अतीत और तुम्हारी चादर पर खून के दाग लगे हैं।
तुम औरतों की इज्जत करने की बात करते हो, जिसे सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। तुम्हें पता है इज्जत क्या होती है? इज्जत ही करनी सीखनी है तो हमारे शिवाजी से सीखो। जिसने गौहरबानो को लौटा कर अपने ऊंचे चरित्र का प्रमाण दिया था। तुम्हारे लिए अबला हिंदू या मुसलमान होगी ,पर हमारे उस चरित्रवान छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए वह मातृशक्ति थी । जिसे देखकर उनकी नजरें वैसे ही झुक गई थीं जैसे एक मां के सामने बेटी की नजरें झुक जाती हैं। सीखो हमारे सिवा जी से, सचमुच तुम्हें बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। यदि तुम्हें इज्जत करनी सीखनी है तो हमारे दुर्गादास राठौर से भी सीखो। जिसने तुम्हारे सबसे नीच बादशाह औरंगजेब की पत्नी गुलनार को उस समय ससम्मान लौटा दिया था जब वह उसे मेवाड़ के महाराणा के विरुद्ध किए गए युद्ध के समय मैदान में छोड़कर भाग गया था।
क्रमश:
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत