मध्यप्रदेश काडर के तेज तर्रार एवं दबंग आईपीएस और वर्तमान में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एयरपोर्ट प्रमोद श्रीपाद फलणीकर मध्यप्रदेश में 20 साल और केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर 13 साल की सेवा देने के बाद आगामी 30 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
श्री फलणीकर चार वर्ष देश की प्रतिष्ठित एनएसजी सेवा में बतौर आईजी हेडक्वार्टर, संयुक्त राष्ट्र मिशन पर बोसनिया में, डीआईजी आईटीबीपी गढ़वाल सेक्टर, डीआईजी आईटीबीपी डायरेक्ट्रेट नई दिल्ली, आईजी वेस्टर्न सेक्टर सीआईएसएफ मुम्बई, एडीजी सलेक्शन एवं भर्ती और डायरेक्टर मध्यप्रदेश पुलिस अकादमी के पद पर भी कार्य कर चुके हैं। श्री फलणीकर द्वारा मध्यप्रदेश आईपीएस काडर के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए गए हैं। जिस पर केंद्रीय आलेख प्रकाशनार्थ प्रेषित है।
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मध्यप्रदेश कॉडर में बतौर मैं आईपीएस अपनी सेवाएं दे चुका हूं। इसके साथ ही प्रतिनियुक्ति पर भी मेरी सेवाएं जारी है। आगामी 30 अक्टूबर मैं सेवानिवृत्त हो जाऊंगा। मेरे सेवाकाल के दौरान मध्यप्रदेश कॉडर, यहां के प्रशासनिक अफसर, मीडिया, संस्कृति, सहानुभूति, परानुभूति, विभिन्न कलाओं सहित रीति रिवाजों के साथ-साथ सनातन संस्कृति को बेहद करीब से देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ है जो कि मेरे जीवन में चिरस्थायी स्मृति बन चुकी है। मध्यप्रदेश में 20 साल तक और केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान 13 साल तक सेवा के दौरान मिले अनुभवों में यह सामने आया है कि मध्यप्रदेश ना सिर्फ देश का हृदय स्थल है बल्कि मध्यप्रदेश कॉडर और यहां के प्रशासनिक अफसर, राजनैतिक पृष्ठभूमि, मीडिया, आम जनता में भी अपनेपन का एहसास होता है। एक बाहरी व्यक्ति जब यहां कार्य करने के लिए आता है उसे वह सब मिलता है जिसकी वह हमेशा अपेक्षा करता है। मेरी नजर में मध्यप्रदेश भारत की हृदय स्थली होने के साथ-साथ मान-सम्मान, संस्कृतिक, रीति रिवाजों, सहानुभूति की भी सहृदय स्थली है जो कि बाहर से आने वाले अफसरों को बरबस ही यहीं पर सेवानिवृत्ति के बाद भी स्थाई रूप से निवास करने को विवश कर देती है।
कुछ दिन पूर्व केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस जाने वाले एक अन्य काडर के अधिकारी मुझसे मिलने के लिए आये थे। बातों-बातों में मुझे ऐसा आभास हुआ कि अपने काडर में वापस जाते समय, राज्य के विभिन्न दबावों के संबंध में व अधिकारियों के संभावित व्यवहार के संबंध में उनके मन में काफ ी आशंकाएं थी। उनकी इन आशंकाओं को देखते हुए मेरे मन में विचार आया कि प्रतिनियुक्ति से मध्य प्रदेश काडर वापस जाने के समय मेरे काडर के अधिकारियों के मन में क्या विचार होंगे? क्या वह इसी तरह से आशंकित होंगे? निश्चित रूप से यह उनके स्वयं के अनुभव पर निर्भर होगा परन्तु किसी भी राज्य के सांस्कृतिक ढ़ांचे के आधार पर व उसकी संस्कृति में विकसित हुए प्रशासनिक प्रक्रियाओं के आधार पर कुछ सूत्र सभी अधिकारियों के अनुभवों में समान रूप से देखे जा सकते हैं।
मेरा मानना है कि जैसे-जैसे समय बीतता है। विगत काल की हर स्मृति सुखद लगती है। अतीत के अत्याधिक तनाव के अनुभव के क्षण जैसे किसी पर्दें के पीछे चले जाते हैं। मैं जब स्वयं पीछे मुड़कर देखता हूं तो अपने वरिष्ठ अधिकारियों के स्नेहपूर्ण व्यवहार तथा उनके निष्पक्ष निर्णय आदि के बारे में कई सुखद स्मृतियां मेरे मन में आज भी ताजा हो जाती है। परन्तु ऐसी स्मृतियां व ऐसे अनुभव तो निश्चित रूप से हर राज्य में अधिकारियों के पास होती ही है। अत: केवल इस आधार पर किसी काडर का मूल्यांकन नहीं होता है कि कोई भी अधिकारी विशेषकर जो उस राज्य का निवासी नहीं हैं, वह उस काडर में नियुक्ति होने के पश्चात् दो पहलू उसके ऊपर निरंतर प्रभाव डालते हैं और उन्हीं के आधार पर संभवत उसकी धारणाएं बन जाती है। एक पहलू है कि यहां का जनजीवन तथा विभिन्न महत्वूपर्ण अंग जैसे कि न्यायिक प्रणाली, प्रशासनिक व्यवस्था, मीडिया व आम जनता से उस अधिकारी को क्या अनुभव प्राप्त होता है? क्या इन अनुभवों से वह आत्मविश्वास की तरफ बढ़ता है या आशंकाओं से ग्रसित होता हैं?
बाहर के राज्य से आने वाले अधिकारी के नाते मैंने यह अनुभव किया कि मध्यप्रदेश की संस्कृति ही बाहर से आने वाले अधिकारियों के प्रति अत्यंन्त सह्रदय व उसके अपने व्यक्तित्व को या स्वतंत्र विचारों को आदरपूर्वक स्थान देने वाली हैं। ”हमारी संस्कृति को ही सर्वोत्तम मानों नहीं तो मध्यप्रदेश के विरोधी माने जाओगेÓÓ इस प्रकार के चेतावनीनुमा रवैये से यहां कि संस्कृति अधिकारियों के ऊ पर अधिरोपित अथवा आक्रमित नहीं होती है। मध्यप्रदेश की जनता व यहां विकसित संस्कृति बाहर से आये अधिकारियों की संस्कृति का उचित सम्मान रखते हुए सौहार्द व अपनत्व के व्यवहार से अधिक ारियों व उनके परिजनों को अपने अंदर सम्मलित कर लेती हैं। मेरे शुरूआत के एसडीओपी जावरा कार्यकाल जिसे अभी 30 से भी ज्यादा साल हो गये हैं वहां कि पदस्थापना के दौरान के रिश्ते आज तक जागृत है व उतने ही मजबूत हैं व करीब-करीब सभी जिलों में बालाघाट, बैतूल, मंदसौर व विशेषकर इन्दौर में भी यही अनुभव रहे हैं। इस प्रकार की आत्मीयता का यहां के अन्य अधिकारी भी निरंतर अनुभव करते हैं तथा इसकी वजह से अत्यंत खुले दिल से कार्य कर पाते हैं। सम्भवत यही कारण है कि बाहर से आये हुए कई अधिकारी मध्यप्रदेश को सेवानिवृति के पश्चात् निवास भी बना लेते हैं।
अपने अनुभव से मैं यह निश्चित रूप से कह सकता हूं कि यदि मैं प्रतिनियुक्ति पर नहीं जाता तो शायद इतना बेहतर तरीके से तुल्रात्मक आंकलन नहीं कर सकता था। वैसे देखा जाए तो मैं स्वयं करीब 10 से भी ज्यादा वर्षों से केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर रह चुका हूॅं इसलिए कोई मुझसे यह प्रश्न कर सकता है कि काडर के बारे में इतना भावुक अगर मैं हूूं या मेरे मन में इतना प्रेम है तो स्वयं प्रतिनियुक्ति में क्यों रहा? इस संबध में मैं तो यह कहूंगा कि मेरे विचार में प्रतिनियुक्ति पर जाना अपने आप में एक आवश्यक बदलाव हैं क्योंकि उससे आपको विभिन्न संगठनों में एक दूसरे से पूर्णत: भिन्न कार्य का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त होता है व आपकी व्यवसायिक क्षमताओं में व आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है और यह भी है कि मध्य प्रदेश से दूर रहने से जहां एक ओर मुझे विभिन्न संगठनों का अनुभव प्राप्त हुआ। वहीं दूसरी ओर कुछ समय दूर रहने से मैं एक अलिप्त नजरिये से मेरे काडर को देख सका और अन्य राज्यों के अधिकारियों के अनुभव के आधार पर तुलनात्मक आंकलन भी कर सका। यही कारण है कि इस आंकलन के पश्चात् यहां की संस्कृति के व प्रशासनिक प्रक्रियाओं के व जन जीवन के उपरोक्त पहलू मुझे ओर भी स्पष्ट रूप से प्रभावित व आकर्षित कर गए।
पुलिस का कार्य करते-करते कोई भी रिजल्ट ओरिएंटेड अधिकारी या उसके अधिनस्थ अधिकारियों के द्वारा कार्य के प्रवाह में ही अचानक कुछ त्रुटि अथवा समस्या निर्मित हो जाती है, यह किसी भी जमीनी स्तर पर कार्य का स्वाभाविक अभिन्न पहलू है। इस संबंध में यहां की संस्कृति का बहुत ज्यादा आक्रामक न होकर दूसरो का सम्मान कर अपनाने वाला यह स्वभाव अन्य सामाजिक प्रक्रियाओं में भी प्रतिबिंबित होता है और इसीलिए अधिकारियों
की त्रुटियों को या गलतियों को भी यहां के लोग माफ करने की या सहानुभूति के साथ विचार करते हैं। बशर्तें की उस अधिकारी का कार्य निष्पक्ष, पारदर्शी व किसी भी दुर्भावना के बिना हो तथा जमीनी स्तर पर निर्णय देने वाला हो। मेरे यहां के सब डिविजन अथवा जिला व रेंज के स्तर पर कार्य के दौरान कई तनाव के क्षण आये जिससे बहुत ही ज्यादा जटिल स्थितियां उत्पन्न हुई। जब आप ऐसी समस्याओं से ग्रस्त हो तब आपको यहा के लोगों को मदद के लिए अथवा कोई रास्ता सुझाने के लिए निवेदन नहीं करना पड़ता है या मदद करने वाले लोगों की खोज नहीं करनी पड़ती है। यहां की जनता के विभिन्न स्तरों में से कई व्यक्ति स्वयं ऐसे अधिकारी की सहायता करते हैं व कई बार तो इसका उल्लेख भी नहीं करते हैं। अत: अधिकारी के कार्य प्रणाली को देखते हुए उसकी सहायता करने की यहां की संस्कृति का स्वभाव अत्यन्त महत्वपूर्ण बन जाता है। यहां कि प्रशासनिक व्यवस्था में तो इसका अनुभव आता ही हैं परन्तु यहां की न्यायिक व्यवस्था में, जिला स्तर के न्यायालयों में तथा उच्च न्यायालयों के स्तर पर भी मुझे यह अनुभव आया है कि कठिन समस्याओं से ग्रसित अधिकारी अगर कार्य प्रणाली से प्रमाणिक है तथा किसी दुर्भावना के बगैर कार्य करते हुए कोई त्रुटि हुई हो तो यहां कि न्यायिक व्यवस्था भी उसको स्वयं सहा-अनुभूति के साथ विचार कर सहायता की दृष्टि रखती है।
यहॉं की मीडिया, विशेषकर जब मैं जमीनी स्तर पर कार्यरत था तब प्रिंट मीडिया बहुत ज्यादा प्रभावी थी तब भी मैंने यह अनुभव किया कि प्रेस के व मीडिया के दिग्गज पत्रकार भी इसी भावना को रखते हुए सज्जनता से कार्य करने वाले अधिकारियों को हमेशा अपनी ओर से मदद का रवैया रखते हैं। मैं प्रेस से आये ऐसे कई अनुभवों का उल्लेख कर सकता हूं जिसमे केवल हमारे उद्देश्य की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए प्रेस के सदस्यों ने हमको आगे आकर अपना सहयोग दिया हो। इस प्रकार एक सुलझे हुए रवैये व परिपक्व दृष्टिकोण यहां के स्वस्थ स्वभाव का एक गुण है और यही कारण है कि राजनीतिक बदलाव के बावजूद यहां के अधिकारियों में जमीन आसमान का पदस्थापनाओं में परिवर्तन नहीं हुआ है। जो पारदर्शी अधिकारी 1997-98 में जमीनी स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे थे। वे संभवत: आज भी अपने-अपने शाखाओं में अथवा विभागों में उतने ही महत्वूपर्ण जिम्मेदारियों के पद पर स्थापित हैं और दूर से देखते वक्त या अन्य कुछ काडर की तुलना करते वक्त तुलनात्मक रूप से व्यवसायिक कर्मठता को दिये जाने वाले महत्व को इंगित करता हैं।
मध्यप्रदेश काडर के संदर्भ में मैं यह कहना चाहूंगा कि निश्चित रूप से किसी भी राज्य की सामान्य संस्कृति व व्यवहार का तरीका वहां के पुलिस संगठन की संस्कृति को भी तथा अधिकारियों के व्यवहार को भी प्रभावित करता है। इस काडर का अत्यन्त गौरवशाली इतिहास है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो कर्नल स्लीमन द्वारा ठगी का प्रभावी रूप से निर्मूलन करने के पश्चात् अभी पिछले कुछ दशकों में डकैती तथा वामपंथी उग्रवाद व सांप्रदायिक उन्माद तथा महानगरों के पुलिसिंग के विभिन्न पहलू ऐसे विभिन्न स्तरों पर मध्यप्रदेश का कार्य व ठोस योगदान प्रभावी व अन्य के लिए मार्गदर्शक रहा है। स्व. श्री के.एफ . रूस्तमजी जैसे किवंदती बन चुके अधिकारियों ने अपने सेवा का महत्वपूर्ण समय यहां बिताया है। श्री पी.डी. मालवीय व श्री सुभाषचंद्र त्रिपाठी जैसे अधिकारियों ने यहां के पुलिस मुखिया के पद की शान बढ़ाई है। ऐसे इस काडर कि अत्यंत समृद्व व अभिवादनास्पद अधिकारियों की परंपरा है। मेरे करियर में भी ऐसे कई अधिकारियों के साथ कार्य करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। स्वर्गीय श्री ए.एन. सिंह अपने आप में एक बेहतरीन पुलिस अधिकारी होने के साथ-साथ एक विचारक तथा अन्य अधिकारियों को प्रेरणा देने वाले अधिक ारी व व्यक्ति थे। श्री अनिल कुमार धस्माना, श्री जी.एस.माथूर, श्री एस.के. दास, श्री एन.के. त्रिपाठी, श्री नंदन दुबे, श्री सुरेंन्द्र सिंह, श्री पी.एल. पाडेय, श्री सरबजित सिंह, श्री आलोक कुमार पटेरिया, डॉ. श्रीमती आशा माथुर ऐसे कई अधिकारियों से मुझे निरंतर शक्ति व मार्गदर्शन मिला और इनके श्रेष्ठतम अधिकारी होने के कई उदाहरण मैं दे सकता हूं तथा यह भी कह सकता हूॅं कि दूसरों को समझने की या दूसरों के ऊपर अनावश्यक दबाव न डालने की व हर व्यक्ति के स्वभाव की स्वतंत्रता को सम्मानित करने वाली यहां कि संस्कृति का प्रभाव यहां के अधिकारियों के व्यवहार में भी रहा है और यही कारण है कि आपसी व्यवसायिक मतभेद या असहमति होने के बावजूद तथा कई बार स्पष्ट विचार व्यक्त करने के बावजूद यहां किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा सरल व निष्पक्ष रूप से कार्य करने वाले किसी अधिकारी को क्षति पहुचाने वाला कार्य नहीं किया हैं। ”यही असहमत होने के लिए सहमत होने की क्षमताÓÓ मेरे विचार में यहां के पुलिस संगठन की एक बहुत बड़ी शक्ति है जिसकी वजह से यहां बाहर से आये अधिकारी अपने-अपने आत्मविश्वास को तथा अन्य क्षमताओं का विकास भय के बिना कर पाये हैं।
यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि तनाव तथा कुछ आशंकाएं किसी भी विभाग में रहेगी ही। पुलिस विभाग में तो निश्चित रूप से बहुत ज्यादा रहेंगी इसीलिए जब मैं तनाव के बिना अथवा भय के बिना कहता हूॅं उसका अर्थ यह नहीं है कि यहां के पुलिस अधिकारियों का जीवन फू लों की पंखुडिय़ों के चलने जैसा सुखद व समस्याओं के बिना रहा है। हम सब अपनी सेवा के दौरान अत्यन्त कठिन, तनावपूर्ण और कलिष्ट समस्याओं का निरन्तर अनुभव कर चुके हैं, लेकिन फि र भी इतने वर्षो के बाद जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो इन अनुभवों में भी मुझे यह दिखता है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने यहां कनिष्ट अधिकारियों को खोखला करने का या अत्यधिक हानि पहुंचाने का प्रयास नहीं किया है जो अपने आप में एक अत्यधिक शक्ति बन जाती है। मुझे लगता है कि दूसरों के रवैये या दृष्टिकोण को भी स्वीकार करने की क्षमता या ”अहम् ब्रम्हास्मिÓÓ इस प्रकार के दृष्टिकोण का न होना यह इस काडर की एक मुख्य शक्ति है।
अंत में वह कहते हैं कि मुझे मालूम है कि जो अनुभव या जिस प्रकार के अनुभवों का मैं वर्णन कर रहा हूं इनसे पूर्णतय: भिन्न अनुभव भी अन्य किसी को मिले होंगे तथा यह बात भी सही है कि मैं जिन अनुभवों का वर्णन कर रहा हूं वह 2006 के पूर्व के हैं। संभव है कि कुछ बदलाव उसके पश्चात् आये होंगे। लेकिन फि र भी मेरा मानना है कि ऐसे संभवित बदलावों के बावजूद भी किसी व्यवस्था में जमीन-आसमान का फ र्क नजर नहीं आता होगा तथा आज भी ऐसी ही परिपक्व व्यवस्था का अनुभव यहां के अधिकारी करते होंगे। आज जब मैं 33 साल से भी ज्यादा कार्यकाल के पश्चात् पीछे मुड़कर देखता हूं तो मेरे मन में केवल कृतज्ञ भावना ही आती है कि मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति को जो इस राज्य के बाहर का हो, उसे पूर्णत: विकसित होने का तथा आत्मविश्वास से कार्य करने का मौका मिला। यह केवल यहां कि संस्कृति, परंपराओं तथा व्यवस्थाओं की परिपक्वता की वजह से ही मिला है और इसलिए सेवा निवृत होते हुए मैं कृतज्ञ भाव से मेरे राज्य को वंदन करता हूं।
(लेखक मध्यप्रदेश काडर के आईपीएस और वर्तमान में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एयरपोर्ट हैं।