ऋचा वाजपई
जापान के दो मंत्रियों ने एक विवादित युद्ध स्मारक मंदिर का दौरा करके पूर्वी एशिया में जारी तनाव को और बढ़ा दिया है। उनके इस कदम से चीन और दक्षिण कोरिया नाराज हो गए हैं। मंत्री जिस मंदिर में गए थे उसे द्वितीय विश्व युद्ध में सैन्य दबदबा दिखाने वाले स्थल के तौर पर देखा जाता है। ये मंदिर राजधानी टोक्यो में स्थित यासुकुनी श्राइन है जो ऐसे 25 लाख लोगों की याद में बना है जिन्होंने युद्ध में अपनी जान गंवा दी थी। इनमें से ज्यादातर जापानी थे। लेकिन दूसरी तरफ इस मंदिर में उन लोगों के नाम भी दर्ज हैं जिन्हें युद्ध अपराधी के तौर पर माना जाता है।
नाराजगी की वजह
इस स्मारक पर अधिकारियों के दौरे से अक्सर ही चीन और दक्षिण कोरिया नाराज हो जाते हैं। दोनों देश आज भी मानते हैं कि युद्ध के दौरान और उसके बाद जापान की सेना ने कई देशों को प्रताड़ित किया लेकिन चीन, दक्षिण कोरिया को बहुत ज्यादा तकलीफ दी थी। चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से इस पर बयान जारी किया गया है।
गुस्से में जारी किए गए बयान में प्रवक्ता वांग वेनबिन ने इसे ‘गंभीर तौर पर भड़काऊ’ कदम करार दिया है। उन्होंने कहा, ‘चीन, जापान से अपील करता है कि वो इतिहास से सीखे, सैन्यवाद को खत्म करे और अपने एशियाई पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का भरोसा खोने से बचे।’ इससे अलग दक्षिण कोरिया की सरकार ने भी स्मारक के दौरे को ‘निराश करने वाली घटना’ करार दिया है।
दक्षिण कोरियाई विदेश मंत्रालय ने कहा है कि ये स्मारक जापान की महानता को बताता है जो पिछले युद्ध से जुड़ी है साथ ही युद्ध अपराधियों को भी जगह देता है। जापान के आर्थिक सुरक्षा मंत्री सानेए ताकीची और पुर्ननिमार्ण मंत्री केन्या अकिबा ने तोहोकू क्षेत्र में बने इस मंदिर का दौरा किया था। द्वितीय विश्व युद्ध की 77वीं वर्षगांठ के मौके पर वो यहां श्रद्धांजलि अर्पण करने के मकसद से आए थे। हालांकि ताकिची अक्सर इस मंदिर में आते रहते हैं। वो जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के करीबी रहे हैं।
क्यों है मंदिर से नाराजगी
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था। उसकी हार के आठ दशक बाद भी यासुकुनी श्राइन पूर्वी एशिया में युद्ध के उस दौर की याद दिलाती है जो दर्दनाक था। इस मंदिर को सन् 1869 में स्थापित किया गया था। किसी शहरी इमारत से दिखने वाले इस मंदिर को साल 1945 तक जापान की सरकार की तरफ से आर्थिक मदद मिलती थी। यासुकुनी दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका जापानी भाषा में मतलब होता है-देश और शांति। इस मंदिर को देश के धर्म शिंतोवाद का केंद्र माना जाता है। शिंतोवाद के तहत देश की आबादी को एक आध्यात्मिकराजा के नाम पर लड़ने की अपील की कई थी।
सन् 1978 में इस मंदिर में विश्व युद्ध के समय के 14 लीडर्स को सम्मानित किया गया था। इसमें से दो नेता ऐसे थे जिन्हें साल 1948 में एक ट्रिब्यूनल ने ‘क्लास ए’ का युद्ध अपराधी घोषित किया था। एक तो देश के पीएम रहे हिदेकी तोजो थे। कहते हैं कि तोजो के साथ कुछ और लोगो को उसी साल चुपचाप आयोजित एक कार्यक्रम में भगवान दर्जा दे दिया गया था। जब इसकी खबर सामने आई थी तो काफी बवाल हुआ और ये घटना सार्वजनिक हो गई। जापान के कई लोग आज भी यासुकुमी मंदिर में अपने संबंधियों को श्रद्धंजलि देते हैं। लेकिन चीन और कोरिया के लोग मानते हैं कि यहां युद्ध के अपराधियों को सम्मान दिया जाता है।
कोरिया और चीन का दर्द
जापान ने सन् 1910 से 1945 तक कोरिया पर राज किया और आज भी दक्षिण कोरिया इसकी खीज निकालता रहता है। वहीं 1931 से 1945 तक चीन के कुछ हिस्सों पर जापान का कब्जा था और आज तक दोनों देशों के रिश्ते सामान्य नहीं हो सके हैं। जापान के अलोचक मानते हैं कि ये मंदिर सैन्यवाद को दर्शाता है। साथ ही ये भी बताता है कि किस तरह से नेताओं के दौरे से धर्म और संविधान का उल्लंघन होता है। पश्चिमी शासन से एशिया को आजाद करने के लिए जापान ने जो युद्ध लड़ा उस पर यहां एक म्यूजियम है। आलोचकों की मानें तो जापान की सेनाओं ने जो अत्याचार किए उसे नजरअंदाज कर दिया गया। यहां पर हालांकि युद्ध में मारे गए हजारों ताइवानी और कोरियाई नागरिकों के नाम भी है।
राजा ने की मंदिर से तौबा
जापान के राजा हिरोहिता ने आठ बार इस मंदिर का दौरा किया। सन् 1975 में वो आखिरी बार यहां गए थे। उनका कहना था कि लोगों की नाखुशी के चलते अब वो इस मंदिर में नहीं जाएंगे। वहीं उनके बेटे अकिहितो कभी यहां नहीं गए और न ही वर्तमान राजा नरुहितो ने मंदिर का दौरा किया है। अकिहितो साल 1989 में राजा बने थे और 2019 तक वो देश के राजा रहे। साल 2013 के बाद से जापान के किसी भी प्रधानमंत्री ने इस मंदिर का दौरा नहीं किया है। साल 2013 में तत्कालीन पीएम आबे ने यहां का दौरा किया था। उनके इस दौरे के बाद से जहां चीन और बीजिंग का गुस्सा सांतवें आसमान पर था तो करीबी साथी अमेरिका ने भी जापान की निंदा की थी।
अमेरिका के इस कदम से जापान भौचक्का रह गया था। पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री पद संभालने वाले फुमियो किशिदा ने मंदिर के नाम पर पारंपरिक तौर पर कुछ रकम दान में दी है। हाल के कुछ महीनों में किशिदा ने दक्षिण कोरिया के साथ अच्छे संबंधों की अपील की है। उन्होंने कहा था कि दोनों देशों के पास इस समय बर्बाद करने के लिए समय नहीं बचा है और युद्ध से जुड़े मसलों को सुलझाकर संबंधों को बेहतर करना ही होगा।