चोल वंश का महा प्रतापी शासक राज चोलन
शेफाली श्रीवास्तव
हिंदू नहीं थे राजा राज चोलन?
तमिल फिल्म निर्माता वेटरीमारन ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था, राजा राज चोलन हिंदू नहीं थे। ‘हमारे प्रतीक हमसे लगातार छीने जा रहे हैं। वल्लुवर का भगवाकरण करना या राजा राजा चोलन को हिंदू राजा कहना लगातार जारी है।’ वेत्रिमारन की टिप्पणी मणिरत्नम की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘पोन्नियिन सेलवन : 1’ रिलीज होने के कुछ दिनों बाद आई है। यह फिल्म राजा राज चोलन से प्रेरित कल्कि कृष्णमूर्ति के काल्पनिक उपन्यास पर आधारित है। फिल्म में अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन भी हैं।
अंग्रेजों ने गढ़ा था हिंदू शब्द?
तमिल सुपरस्टार कमल हासन भी वेटरीमारन के समर्थन में सामने आए हैं। कमल हासन, जो मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) के अध्यक्ष भी हैं, ने एक बयान में कहा, ‘राजा राज चोलन की अवधि के दौरान हिंदू धर्म नाम का कोई शब्द नहीं था। वैष्णवम, शैवम और समानम थे और हिंदू शब्द अंग्रेजों ने गढ़ा था।’ उन्होंने कहा कि आठवीं शताब्दी की अवधि के दौरान कई धर्म थे।
वीसीके सांसद थिरुमावलवन ने कहा, ‘राजा राजा चोलन को हिंदू राजा नहीं माना जा सकता, क्योंकि उस काल में कोई हिंदू धर्म नहीं था।’ उन्होंने कहा कि राजा राजा चोलन के काल में शैवम और वैणवम अलग थे और दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ खुलकर लड़ाई लड़ी। थिरुमावलवन ने कहा, ‘वर्तमान समय के लिंगायत भी सामने आ रहे हैं और कह रहे हैं कि वे हिंदू नहीं हैं। उन दिनों हिंदू धर्म कहां था?’ उन्होंने कहा कि सिर्फ इसलिए कि राजा राज चोलन ने तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण किया, उन पर आधुनिक पहचान थोपना उचित नहीं है।
‘क्या राजा राज ने खुद को शैव शासक घोषित किया था?’
पूरे विवाद पर प्रतिष्ठित तमिल लेखक और नाटककार इंदिरा पार्थसारथी ने ट्वीट किया, ‘कमल हासन का कहना है कि चोल वंश के दौरान हिंदू साम्राज्य नहीं था। सत्य है। लेकिन क्या राजा राज ने खुद को शैव शासक घोषित किया था? उन्हें शैव शासक कहना उतना ही बेतुका है जितना कि हिंदू शासक कहना है। सभी शासक अपना गौरव दिखाने के लिए स्मारक, मस्जिद या मंदिर का निर्माण करवाते थे।’ वर्तमान तमिलनाडु पर राज करने वाले पूर्व शासकों के धर्म और पहचान को लेकर विवाद नया नहीं है। पहले भी इस पर तमाम तर्क सामने आ चुके हैं।
कौन थे राजा राज चोल?
राजाराज चोल के बारे में जानने के लिए पहले चोलवंश का इतिहास जानना जरूरी है। चोल साम्राज्य का इतिहास 1000 साल से भी अधिक पुराना है। ये साम्राज्य भारत के दक्षिण में कावेरी नदी के तट पर विकसित हुआ। इस साम्राज्य की राजधानी थी-तिरुचिरापल्ली। एनसीईआरटी की किताबों के अनुसार, कावेरी डेल्टा में मुट्टिरयार नाम से प्रसिद्ध एक छोटे परिवार की सत्ता थी जो कांचीपुरम के पल्लव राजाओं के अधीन था।
849 ईसवीं में चोलवंश के सरदार विजयालय ने इन मुट्टियारों को हराकर डेल्टा पर कब्जा किया और चोलवंश की स्थापना की। विजयालय ने तंजावुर शहर बसाया और निशुंभसूदिनी देवी मंदिर का निर्माण करवाया था। 985 ईसवीं में राजाराज चोल प्रथम इस साम्राज्य के शासक बने और चोल राजवंश की प्रतिष्ठा में कई गुना इजाफा हुआ।
क्यों मिला था पोन्नियिन सेलवन नाम?
राजाराज और उनके पुत्र राजेंद्र प्रथम ने तंजापुर और गंगईकोंडचोलपुरम में कई विशाल मंदिर बनवाए, उसे स्थापत्य और मूर्ति कला दृष्टि से चमत्कार कहा गया। राजाराज चोल को उनकी वफादार प्रजा ने पोन्नियिन सेलवन नाम दिया जिसका अर्थ है राजाओं का राजा। उन्होंने 9वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत के बड़े इलाके पर राज किया।
राजाराज चोल वंश के पहले शासक नहीं थे, लेकिन उन्होंने चोल साम्राज्य को अपने चरम पर पहुंचाया और एक अपेक्षाकृत छोटे से हिस्से से भारत का प्रमुख साम्राज्य बनाया। उनका राजनीतिक प्रभाव श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड और मलेशिया तक फैला। साथ ही इस साम्राज्य के संबंध चीन के भी साथ थे।
सिंघासन पर बने थे शिव पद
राजाराज चोल को राजाराज शिवपद शेखर के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि उनके सिंघासन पर भगवान शिव के पैर बने हुए थे। कहा जाता है कि 1010 में राजाराज ने तंजावुर में भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कराया था। यह भारत के विशाल मंदिरों में से एक है और चोल शासन के दौरान द्रविड़ वास्तुकला का उदाहरण है। यह मंदिर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा है।
राजाराज के धर्म को लेकर विवाद
राजाराज के धर्म और पहचान को लेकर कई सालों से विवाद है। इतिहास में राजाराज चोल समेत चोल राजाओं को शैव माना गया है। भगवान शिव की पूजा करने वाले को शैव या शिव धर्म से संबधित धर्म को शैव धर्म कहा जाता है। हालांकि शैव धर्म हिंदू धर्म से अलग है या नहीं, इस पर मतभेद हैं। कुछ जानकार कहते हैं कि शैव और वैष्णव दो अलग संप्रदाय हैं। शिव के उपासक शैव और विष्णु के उपासक वैष्णव कहलाते हैं।