अजय कुमार
समाजवादी पार्टी के भीष्म पितामह मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनके शुभचिंतकों को समाजवादी पार्टी के अस्तित्व को लेकर चिंता सताने लगी है। कहीं पार्टी में स्थितियां बेहद खराब ना हो जाएं इसको लेकर सबसे ज्यादा परेशान मुलायम सिंह यादव के समधी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव नजर आ रहे हैं। उनको समाजवादी पार्टी की असलियत पता है। वह जानते हैं कि अखिलेश के लिए तब तक राह आसान नहीं जब तक उनके सिर पर किसी अनुभवी व्यक्ति का हाथ नहीं होगा। कहने को तो अखिलेश के साथ उनके चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव खड़े हुए हैं लेकिन राजनीति के जानकार कहते हैं प्रोफेसर साहब के पास ऐसी राजनैतिक काबिलियत नहीं है जिसके बल पर कार्यकर्ताओं और संगठन को मजबूती प्रदान कर सकें।
अनुभव के मामले में मुलायम सिंह के कुनबे में शिवपाल यादव की बराबरी कोई नहीं कर सकता है। शिवपाल ने कई चुनाव समाजवादी पार्टी को जिताए हैं। नेताजी की मृत्यु के बाद अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच कैसे संबंध रहेंगे। इस बात को लेकर राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा है। दोनों अगर एक नहीं हुए तो संभावना इस बात की भी है मुलायम की राजनीतिक विरासत को लेकर चाचा भतीजे के बीच तलवारें खिंच जाएं।
बहरहाल, इस चर्चा ने तब और जोर पकड़ा जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘नेताजी’ को श्रद्धांजलि देने सैफई पहुंचे। यहां उन्होंने अखिलेश यादव और महागठबंधन से जुड़ी बात पर अपनी राय रखी। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या अब नीतीश कुमार महागठबंधन को यूपी में ताकतवर बनाने के लिए अखिलेश और उनके चाचा शिवपाल यादव को एक मंच पर ला पाएंगे ? अगर वे और लालू यादव कोशिश करेंगे तो क्या दोनों चाचा भतीजे अपने अहम को पीछे छोड़कर साथ आ सकेंगे?’ चाचा भतीजे के अलग राह पकड़ने से दोनों को ही नुकसान हुआ है। हालात ऐसे बन रहे हैं कि साथ आने में ही दोनों की भलाई है। नीतीश कुमार और लालू यादव मदद करेंगे तो इसमें सफलता भी मिल सकती है। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब सैफई पहुंचे तो उन्होंने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से अलग से मुलाकात की और वे काफी देर तक सपा प्रमुख के साथ बातचीत करते हुए भी नजर आए। इसके बाद बिहार के सीएम जब बाहर निकले तो उन्होंने मीडिया से भी बातचीत की।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव को एक साथ लाने पर सवाल किया गया। तब मुख्यमंत्री ने कहा, “ये बिलकुल अलग चीज है। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्हें हमें प्रमोट करने की जरूरत है।” दरअसल, नीतीश कुमार का ये बयान ऐसे वक्त में आया है, जब माना जा रहा है कि अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव की राहें अलग-अलग हो चुकी हैं। दरअसल, बिहार के सीएम नीतीश कुमार पिछले दिनों बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना चुके हैं। वे अब पूरी तरह इस बात पर फोकस कर रहे हैं कि महागठबंधन एकजुट हो और मजबूती के साथ बीजेपी का सामना करे। ऐसे में यूपी सबसे अहम हो जाता है, जहां सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं। अब यहां समाजवादी पार्टी को एकजुट करना नीतीश के लिए सबसे बड़ी परीक्षा हो सकती है। वे समाजवादी पार्टी को एकजुट करके चुनाव में एकजुटता के साथ भाजपा को टक्कर देना चाहते हैं। ऐसे में चाचा शिवपाल यादव जो अखिलेश से अलग होकर अपनी खुद की पार्टी ‘प्रसपा’ बना चुके हैं। उन्हें और अखिलेश को चुनाव में एक साथ लाने के लिए नीतीश कुमार कोशिश कर सकते हैं।
भले ही शिवपाल अपने भतीजे के खिलाफ कितना भी विरोध में बोलते हों। अपनी अलग पार्टी भी बना ली, लेकिन जिस तरह से पिछले यूपी विधानसभा में दोनों साथ आए, उसके बाद इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वे फिर लोकसभा चुनाव में एक बैनर के तले आ जाएं। नेताजी के ना रहने के बाद उनके परिवार के सदस्यों को याद दिलाया जा रहा है कि मुलायम ने अपने जीते जी यादव कुनबे में कभी भी ‘मनभेद’ नहीं होने दिया। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भले ही मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव सपा छोड़कर भाजपा में चली गई हों। लेकिन उन्होंने ‘नेताजी’ के पांव छूकर पहले आशीर्वाद लिया था। वहीं अखिलेश यादव ने भी अपर्णा यादव के भाजपा में जाने पर कोई कटाक्ष की बात नहीं कही। अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव ने भी भले ही एकदूसरे पर राजनीतिक हमला बोला हो, लेकिन हमेशा इतनी गुंजाइश रखी कि कभी भी दोनों फिर एक साथ चुनाव लड़ सकते हैं। यह पिछले यूपी विधानसभा चुनाव में सभी ने देखा। मुलायम सिंह यादव के निधन पर भी दोनों ही नेता साथ दिखे हैं।
अखिलेश से अलग यदि बात चाचा शिवपाल सिंह की जाए तो उन्हें ये मालूम है कि वे कभी भी अकेले दम पर चुनाव जीतकर सत्ता नहीं पा सकते हैं। भले ही अपना अहम संतुष्ट करने के लिए उन्होंने अलग राजनीतिक पार्टी बना ली। मगर ये सच है कि मुलायम सिंह के कहने पर वे साथ में चुनाव लड़े। लेकिन अब ‘नेताजी’ नहीं हैं ऐसे में सक्रिय राजनीति में होने के चलते वे खुद अब नहीं चाहेंगे कि अपने विरोधों से इतना दूर चले जाएं कि वे कभी सपा के साथ ही न आ पाएं। वहीं अखिलेश भी नहीं चाहेंगे कि पिताजी के जाने के बाद अब चाचा के खिलाफ ज्यादा राजनीतिक निशाने साधें। क्योंकि पिता मुलायम सिंह का साया अखिलेश के ऊपर से उठ गया है। यदि महागठबंधन की बात आती है तो ‘चाचा भतीजा’ साथ आकर चुनाव लड़ लें तो कोई बड़ा आश्चर्य नहीं होगा। लालू यादव इस समय इलाज के लिए विदेश गए हुए हैं। विदेश से लौट के आने के बाद वह भी इस कोशिश में लग सकते हैं कि चाचा भतीजे एक हो जाएं। दिल्ली की सत्ता से मोदी को उखाड़ फेंकने के लिए चाचा भतीजे का साथ आना बहुत जरूरी माना जा रहा है।
बहुत से लेख हमको ऐसे प्राप्त होते हैं जिनके लेखक का नाम परिचय लेख के साथ नहीं होता है, ऐसे लेखों को ब्यूरो के नाम से प्रकाशित किया जाता है। यदि आपका लेख हमारी वैबसाइट पर आपने नाम के बिना प्रकाशित किया गया है तो आप हमे लेख पर कमेंट के माध्यम से सूचित कर लेख में अपना नाम लिखवा सकते हैं।