नरोरा। ओमप्रकाश फ्रंटियर आर्य समाज की एक ऐसी शख्सियत हैं जो 96 वर्ष की उम्र में भी बड़े उत्साह और जोश के साथ भजनों के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। उगता भारत के साथ एक विशेष बातचीत में श्री फ्रंटियर ने कहा कि उन्होंने 1947 से पहले 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया था, जिस समय उनकी अवस्था केवल 15 वर्ष की थी।
उन्होंने कहा कि मैंने महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस सहित चौधरी चरण सिंह, लाल बहादुर शास्त्री जैसे कई बड़े नेताओं और प्रधान मंत्रियों के साथ मंच पर भजन प्रस्तुत किए हैं।
उन्होंने कहा कि उन्हें सबसे अधिक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने प्रभावित किया था। उनका राष्ट्रवादी चिंतन और भाषण उन्हें अभी भी याद हैं और उन्हें जब वह याद करते हैं तो जोश से भर जाते हैं।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में उन्होंने बताया कि उस समय लोगों में एक अलग ही किस्म का जोश था, लोग देश के लिए मर मिटने को तैयार थे। उन्होंने रामचंद्र विकल और तेज सिंह भाटी जैसे नेताओं को याद करते हुए कहा कि उनके संपर्क और सानिध्य में उस समय पूरे क्षेत्र में धूम मची हुई थी। लोग बढ़-चढ़कर अंग्रेजों को भगाने के लिए काम करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि श्री रामचंद्र विकल्प बहुत ही सौम्य शालीन स्वभाव के नेता थे, जिनके साथ जुड़कर काम करने में लोगों को आनंद मिलता था।
श्री फ्रंटियर ने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री जी देश की वैदिक विचारधारा से जुड़े हुए प्रधानमंत्री थे। जिन्होंने देश के लिए समर्पित होकर काम किया था। उनके शासनकाल में आर्य समाज को विशेष गति प्राप्त हुई थी। इसके अतिरिक्त चौधरी चरण सिंह भी इसी विचारधारा के प्रधानमंत्री थे। जिनके साथ काम करने में उन्हें बहुत अच्छा लगता था। चौधरी चरण सिंह आर्य समाज गाजियाबाद के मंत्री रहे थे। उनके चुनाव क्षेत्र छपरोली में उनके साथ काम करने के संस्मरण श्री फ्रंटियर को अभी तक याद है। वह कहते हैं कि चौधरी साहब प्रतिदिन शाम को हमसे मिलते थे और जो सिली बातों से हमें नई ऊर्जा देकर जाते थे।
श्री फ्रंटियर का कहना है कि आर्य समाज के क्षेत्र में स्वामी रामेश्वरानंद ,स्वामी भीष्म जी सहित अनेक आर्य समाजी नेताओं उपदेशकों व कार्यकर्ताओं के साथ काम करने का उनका लंबा अनुभव है। वह ग्राम महावड़ में महाशय मंसाराम , महाशय राजेंद्र सिंह आर्य वैद्य स्पाल शास्त्री बंबावड़ गांव में महाशय रामचरण आदि के यहां जा जाकर वैदिक प्रचार किया करते थे।
श्री फ्रंटियर का कहना है कि आर्य समाज की विचारधारा आज भी प्रासंगिक है और आगे भी रहेगी। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को पिछली पीढ़ी से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर अफसोस व्यक्त किया कि नई पीढ़ी पिछली पीढ़ी से कुछ सीखने को तैयार नहीं है।
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