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कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत 71 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)


अन्त में …….

सन्देश –

आज के अर्जुन ! जाग जा पगले, नींद अधर्म की क्यों सोता?
देश – धर्म पर संकट भारी , समय व्यर्थ में क्यों खोता ?

जिनको तू अपना समझे था ,वही तुझे ललकार रहे।
तेरा धर्म यही बनता है , निर्भय हो संहार करे।।

सत्य सनातन की रक्षा हित , ना देर तुझे अब करनी है।
बात पते की एक है अर्जुन ! पाप की गगरी भरनी है।।

चीरहरण हो लिए बहुत , हम जुआ में सब हार गए।
देश के टुकड़े – टुकड़े हो गए, अहिंसा पर सब वार गए।।

गांडीव की टंकार करो और शत्रु का संहार करो।
भारत मां की व्यथा हरो सब जीवों का कल्याण करो।।

– 20 नवम्बर 2021

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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