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कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत 70 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

संदेह मेरे सब मिट गए माधव !

सब धर्मों को छोड़कर जो शरण प्रभु की आ जाता।
हो जीवन का कल्याण उसी का सारे वैभव पा जाता।।

तू शरण में आ जा अर्जुन मेरी ,मैं ही जगत की हूँ माता।
जो भी करता याद मुझे , मैं अंतर्मन में मिल जाता।।

कर्त्तापन का बहम दूर कर , भाव समर्पण का ले आ।
अनन्यभाव से शरण में आ जा अहंभाव जग को दे आ।।

यन्त्र मान ले स्वयं को अर्जुन, भगवान चलाते हैं तुझको।
क्यों चिंता में समय गंवाता ? मन की बात बता मुझको।।

छोड़ झमेला जग का पगले, सौंप स्वयं को भगवन को।
तेरे सच्चे रक्षक हैं वे , रमा उसी में निज मन को।।

कर्तव्य निभा, मत सोच यहां मैं किसी को मारने आया हूँ।
पीड़ित और दु:खी लोगों को ,मैं पार लगाने आया हूँ।।

अपना अस्तित्व रमा दे अर्जुन ! जगत विधाता ईश्वर में।
कण-कण में रमा देख उसी को ज्योति जगा जगदीश्वर में।।

सब कुछ छोड़ उसी पर अर्जुन ! जो जग का संचालक है।
वही विधाता , रक्षक , ईश्वर और वही जगत का पालक है।।

जबरन जिम्मेदारी लेता – नादानी मत कर अर्जुन!
स्वामी के आगे सेवक की, औकात ही है कितनी अर्जुन ?

अर्जुन बोला – माधव ! मैं तो अब मोह जाल से दूर हुआ।
क्षत्रिय धर्म का मेरे भीतर, अब फिर से है संचार हुआ।।

संदेह मेरे सब मिट गए माधव ! हृदय से ऋणी मैं तेरा हूँ।
सार समझ में आ गया मेरी , मैं व्यर्थ में ही मुँह फेरा हूँ।।

राष्ट्र – धर्म के शत्रु जितने मैं सब का ही संहार करूं।
नहीं छोड़ सकता मैं उनको, सब लोकों का उपकार करूं।।

दुर्योधन आदि दुष्टों को , है जीने का अधिकार नहीं।
सनातन का जो नाश करें , उनका तो है संहार सही।।

जो भी शत्रु वेद धर्म के, नहीं दया कभी उन पर करना।
यही शासक का धर्म है माधव, जो मुझको पूरा करना।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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