राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतिवर्ष दशहरे पर नागपुर मुख्यालय में आयोजित होने वाला प्रबोधन उत्सव संपन्न हुआ. संघ के परमपूजनीय सरसंघचालक मोहनराव जी भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा कि किसी भी देश में जनसंख्या असंतुलन उस देश के विभाजन का कारण बन सकता है. ऊन्होने कहा- हमें समझना होगा कि जब-जब जनसांख्यिकीय असंतुलन होता है, तब-तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है। उन्होंने कहा कि जन्मदर में असमानता के साथ-साथ लोभ, लालच, जबर्दस्ती से चलने वाला मतांतरण भी जनसंख्या असंतुलन का बड़ा कारण बनता है। हमें इसका भी ध्यान रखना होगा। भागवत जी के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्त्व का विषय है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने देश में एक ऐसी समग्र जनसंख्या नीति निर्माण का आग्रह रखा जो सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट मत रखा कि जनसंख्या असंतुलन भौगोलिक सीमाओं में बदलाव का कारण बनती है, ऐसे में नई जनसंख्या नीति सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को छूट नहीं मिलनी चाहिए.
भारत के लिए ये कोई नया विषय नहीं है. देश के प्रमुख विचारक, चिंतक, लेखक, राजनीतिज्ञ इस विषय को समय समय पर अपने शब्दों में प्रकट करते रहे हैं.
इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी प्यु रिसर्च ने जो कहा है उसपर पुरे देश को ध्यान केंद्रित करना चाहिए. भारत के वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़ों पर अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन में मुख्यालय वाले “प्यु रिसर्च सेंटर” ने भारत के संदर्भ में बहुत ही विस्फोटक तथ्य रखे हैं. मोहनराव जी भागवत ने अपने दशहरा उद्बोधन में जो कहा उसकी प्रसंशा या आलोचना करने से पूर्व हमें यह रिपोर्ट पढ़ लेनी चाहिए. रिपोर्ट मे कहा गया था कि भारत में हिंदू व मुस्लिम जनसँख्या में तेजी से बढ़ता असंतुलन भारत के कई राज्यों व सैंकड़ो जिलों में अलगाव, अशांति, टकराव व सामाजिक दुर्भाव की स्थितियां उत्पन्न करेगा. “प्यु रिसर्च सेंटर” की यह रिपोर्ट देश भर में समय समय पर पूर्णतः सत्य साबित हुई है. सबसे बड़ी खतरनाक बात इस रिपोर्ट में हमें आगाह करते हुए यह कही गई है की वर्ष 2050 तक भारत विश्व का सबसे अधिक मुस्लिम जनसँख्या वाला देश बन जाएगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व में मुसलमानों और ईसाइयों की जनसंख्या लगभग बराबर हो जाएगी. प्यु ने इस अपनी रिपोर्ट में वर्ष 2070 तक इस्लाम के विश्व में सबसे बड़े धर्म बन जाने की भविष्यवाणी भी की है. विश्व भर में मुस्लिमों द्वारा अपनाई जा रही अधिकतम प्रजनन दर के कारण यह स्थिति उत्पन्न होने वाली है. एक तथ्य यह भी है की मुस्लिमों की जनसंख्या में यह वृद्धि कोई संयोग नहीं है, या कोई सामजिक प्रवृत्ति नहीं है बल्कि यह एक षड्यंत्र पूर्ण योजना का एक अंश है. मुस्लिमों में जनसंख्या को बढ़ाना व लक्षित क्षेत्र या देश में पहले निर्णायक होना व फिर वहां का शासक होना एक अभियान बन गया है. इस अभियान में सम्पूर्ण विश्व के मुस्लिम एक मत से मतान्ध होकर सम्मिलित हो गए हैं.
भारत में 1991 की जनगणना के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 22.8 प्रतिशत थी, जबकि मुस्लिमों की वृद्धि दर इससे डेढ़ गुना 32.8 थी. जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार हिंदुओं की वृद्धि दर 21.5 प्रतिशत थी, मुस्लिमों की वृद्धि दर 29 प्रतिशत थी. 2011 में जहां हिंदुओं की वृद्धि दर और कम होकर 16.76 प्रतिशत पर आ गई ,वहीं मुस्लिमों की जनसंख्या में 24.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई. मुस्लिम समाज में जनसंख्या विस्फोट का यह क्रम मुस्लिमों की धार्मिक मान्यताओं, भौगोलिक रूप से कब्जा करने की प्रवृत्ति, अशिक्षा व मदरसों से मिली रही धार्मिक कट्टरता के कारण गति पकड़ता जा रहा है.
प्यु के अनुसार आगामी चार वर्षों में विश्व की जनसंख्या 9.3 अरब होगी व मुसलमानों की जनसंख्या 73 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ेगी, व इसाई व हिंदुओं की वृद्धि दर क्रमशः मात्र 35 व 34 प्रतिशत ही रहेगी. जनसंख्या की औसत आयु की दृष्टि से भी आंकड़े मुस्लिमों के पक्ष में दिखते हैं. 2010 में विश्व की 27 प्रतिशत जनसँख्या औसत 15 साल से कम आयु की थी, वहीं तुलनात्मक रूप से, 34 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या 15 वर्ष से कम आयु के किशोरों की थी, जबकि हिंदुओं में यही औसत 30 था. आयु का यह अंतर आने वाले समय में मुस्लिमों को तीव्र जनसंख्या वृद्धि में सहयोग करेगा. प्यु ने अपने इन्हीं विश्लेषणों व तार्किक आधार पर जनसांख्यकिय संकेतक विकसित किये हैं जो यह स्पष्ट संकेत करते हैं कि वर्ष 2070 में इस्लाम विश्व का सबसे बड़ा धर्म होगा. यही वह लक्ष्य है जिसे लेकर मुस्लिम विश्व व भारत का मुस्लिम एक मिशन के साथ आगे बढ़ रहा है. यही वह चिंता व कारण है जिससे भारत के हिंदू समाज को, शासन को, सरकार को व विशेषतः वर्तमान पीढ़ी को जागृत, चिंतित व विचार मुद्रा में आ जाना चाहिए. यदि भारत में मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत बढ़ा तो इसका सीधा सा अर्थ होगा हिंदुत्व की समाप्ति, भारतीय संस्कृति की समाप्ति, भारतीय अस्मिता व सनातनी मूल्यों की समाप्ति.
संघप्रमुख के दशहरे के भाषण से पुरे देश को जागृत व होनाचाहिए. देश को यह समझना चाहिए कि इस प्रकार की निर्मित होती स्थितियों व समस्याओं के चलते आज आवश्यक हो गया है कि –
1. देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए देश की जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण कर इस नीति को सभी धर्म, जाति, मत, पंथ सम्प्रदायों पर एक समान रूप से लागू किया जाए.
2. भारत की सीमाओं पर हो रही अवैध घुसपैठ को निर्णायक व पूर्ण रीति नीति से प्रतिबंधित किया जाए. (एनआरसी) राष्ट्रीय नागरिक पंजिका का निर्माण कर भारत में आने वाले घुसपैठियों को नागरिकता, मतदान, बसाहट के अधिकारों से तथा भूमि खरीद के अधिकार से वंचित किया जाए.
3. देश में जनसंख्या असंतुलन के संदर्भ में इस प्रकार का वातावरण निर्मित किया जाए कि सभी भारतीय राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण व असंतुलन के प्रति स्वमेव चिंतित रहें. समाज में इतनी जागृति हो कि वह ऊपर से लेकर निचले स्तर जनसंख्या असंतुलन के कारणों व कारकों को चिन्हित कर न केवल स्वयं जागृत रहे बल्कि शासन को उससे अवगत कराए.
4. देश में लागू जनसंख्या नीति की पूर्ण समीक्षा हो ताकि कारण व निदान पर राष्ट्रीय विमर्श प्रारंभ हो.
5. भारत में कुछ संस्थाएं, एनजीओ, धार्मिक ट्रस्ट आदि सुनियोजित ढंग से मतांतरण, लव जिहाद, लैंड जिहाद, अधिक प्रजनन दर व बाहरी घुसपैठ के माध्यम से जनसंख्या असंतुलन को बढ़ाने के कार्य में लिप्त हैं इन्हें चिन्हित कर इनकी फंडिंग आदि की जांच की जाए.
प्रवीण गुगनानी,
2 replies on “जनसंख्या पर संघप्रमुख का कथन और प्यु रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट ”
सोचता हूँ कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा नागपुर मुख्यालय में आयोजित प्रबोधन उत्सव में प्रस्तुत देश की जनसँख्या पर संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक मोहनराव जी भागवत का उद्बोधन कतई विदेशी शोध संस्था की सूचना पर आधारित नहीं है| इंडिया में पंथिक आधार पर जनसांख्यिकीय असंतुलन अवश्य ही महत्त्वपूर्ण विषय है क्योंकि शतकों भारतीय उप महाद्वीप में एक बड़े भूभाग पर रह रहे मूल निवासियों पर उन्हीं के राजे रजवाड़ों के माध्यम द्वारा उन पर प्रभुत्व बनाए फिरंगियों की फूट डालो और राज करो की नीति के परिप्रेक्ष्य में तथाकथित स्वतंत्रता उपरान्त देश-विभाजन की उत्पत्ति, इंडिया, अब तक राष्ट्र-विरोधी तत्वों का अखाड़ा बना हुआ है|
इंडिया का नाम बदल देश भारत अथवा भारतवर्ष के नाम से पहचाना जाए ताकि जनसांख्यिकीय असंतुलन को भारतीय संस्कृति के अधीन स्वयं भारतीय जनसमूह सुलझा पाए| सनातन धर्म जिसे आधुनिक RELIGION न कहते फिर से इसके अलौकिक अस्तित्व व उद्देश्य को भारतीयों द्वारा अपने आचरण में परिभाषित करना होगा ताकि किसी प्रकार की राजनीति व पंथिक दबाव से मुक्त सामान्य नागरिक जीवन यापन कर पाए| केवल सनातन धर्म के अनुयायी ही नहीं बल्कि भारतीय भूभाग में परिस्थिति-वश यहाँ के मूल निवासी धर्मांतरण के पश्चात भी अपने अपने मजहब में भारतीयता अथवा हिंदुत्व के आचरण का पालन करते सैकड़ों वर्षों से एक दूसरे के प्रति परस्पर सद्भावना, सहनशील व शांतिपूर्ण वातावरण में जीवन यापन करते रहे हैं। मेरे विचार में ब्रह्माण्ड-स्वरूप सनातन धर्म में विभिन्न मजहब खगोलीय पिंड अथवा वस्तु हैं और इस कारण वे चिरकाल से भारतीयता के आवरण में ढके, सनातन धर्म में धर्मनिरपेक्षता और सहनशीलता को प्रतिबिंबित करते थे|
कोई आश्चर्य न होगा यदि इंडिया से अलग हुए पड़ोसी देश भारत की अलौकिक प्राचीन सभ्यता को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में कार्यरत देख फिर से अखंड भारत का सोचें!
सोचता हूँ कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा नागपुर मुख्यालय में आयोजित प्रबोधन उत्सव में प्रस्तुत देश की जनसँख्या पर संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक मोहनराव जी भागवत का उद्बोधन कतई विदेशी शोध संस्था की सूचना पर आधारित नहीं है| इंडिया में पंथिक आधार पर जनसांख्यिकीय असंतुलन अवश्य ही महत्त्वपूर्ण विषय है क्योंकि शतकों भारतीय उप महाद्वीप में एक बड़े भूभाग पर रह रहे मूल निवासियों पर उन्हीं के राजे रजवाड़ों के माध्यम द्वारा उन पर प्रभुत्व बनाए फिरंगियों की फूट डालो और राज करो की नीति के परिप्रेक्ष्य में तथाकथित स्वतंत्रता उपरान्त देश-विभाजन की उत्पत्ति, इंडिया, अब तक राष्ट्र-विरोधी तत्वों का अखाड़ा बना हुआ है|
इंडिया का नाम बदल देश केवल भारत अथवा भारतवर्ष के नाम से पहचाना जाए ताकि जनसांख्यिकीय असंतुलन को भारतीय संस्कृति के अधीन स्वयं भारतीय जनसमूह सुलझा पाए| सनातन धर्म जिसे आधुनिक RELIGION न कहते फिर से इसके अलौकिक अस्तित्व व उद्देश्य को भारतीयों द्वारा अपने आचरण में परिभाषित करना होगा ताकि किसी प्रकार की राजनीति व पंथिक दबाव से मुक्त सामान्य नागरिक जीवन यापन कर पाए| केवल सनातन धर्म के अनुयायी ही नहीं बल्कि भारतीय भूभाग में परिस्थिति-वश यहाँ के मूल निवासी धर्मांतरण के पश्चात भी अपने अपने मजहब में भारतीयता अथवा हिंदुत्व के आचरण का पालन करते सैकड़ों वर्षों से एक दूसरे के प्रति परस्पर सद्भावना, सहनशील व शांतिपूर्ण वातावरण में जीवन यापन करते रहे हैं। मेरे विचार में ब्रह्माण्ड-स्वरूप सनातन धर्म में विभिन्न मजहब खगोलीय पिंड अथवा वस्तु हैं और इस कारण वे चिरकाल से भारतीयता के आवरण में ढके, सनातन धर्म में धर्मनिरपेक्षता और सहनशीलता को प्रतिबिंबित करते थे|
कोई आश्चर्य न होगा यदि इंडिया से अलग हुए पड़ोसी देश भारत की अलौकिक प्राचीन सभ्यता को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में कार्यरत देख फिर से अखंड भारत का सोचें!