रूस – यूक्रेन युद्ध और मानवता का भविष्य
युद्ध के विषय में यह आवश्यक नहीं कि यदि आप शक्ति संपन्न है तो विजय आपकी ही होगी। ऐसे अनेक युद्ध रहे हैं जब शक्ति संपन्न देश हार गए हैं और जिनको लोग दुर्बल मान रहे थे वह बलशाली होकर उभरे हैं। यदि शक्तिशाली ही जीतते तो धीरे-धीरे शक्ति संपन्न होता चला गया ब्रिटेन आज भी संपूर्ण भूमंडल पर शासन कर रहा होता, पर ऐसा हुआ नहीं। भारत को दीर्घकाल तक पराधीनता के दु:स्वपन में जीना पड़ा है, पर अंत में जीतकर वह बाहर निकला। अब प्रश्न यह है कि ऐसा होता क्यों है ? इसका उत्तर केवल एक है कि प्राकृतिक न्याय भी कोई चीज है। ईश्वरीय न्याय व्यवस्था में दंड सदा उसी को मिलता है जो दंड का पात्र होता है।
यूक्रेन युद्ध में रूस उसी प्रकार फंस गया है, जिस प्रकार कभी अमेरिका अफगानिस्तान में अपनी सेना भेजकर फंस गया था। इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है। यह अलग बात है कि स्थान ,व्यक्तित्व और परिस्थितियां दूसरी हैं। रूस जिस यूक्रेन को अपने सामने बहुत बौना समझ कर आगे बढ़ा था, वह अब उसके लिए जी का जंजाल बन गया है। पूरे यूक्रेन ने अपने नेता के साथ खड़े होकर यह दिखा दिया है कि चाहे परिस्थितियां कितनी ही विकट क्यों ना हों पर उनके मनोबल को कोई तोड़ नहीं सकता। यहां तक कि परमाणु बम गिराने की धमकी या संभावनाओं से भी यूक्रेन का मनोबल नहीं टूटा है। रूस ने सोचा था कि दो-चार दिन में ही यूक्रेन को सबक सिखा कर वह घर लौट आएगा। पर ऐसा हुआ नहीं। धीरे-धीरे समय गुजरता गया और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की चिंता बढ़ने लगी। युद्ध के आरंभ में कुछ शक्तियों ने युद्ध को शीघ्रता से निपटाने की अपील की थी और मध्यस्थ बनने के संकेत भी दिए थे, पर उस समय व्लादीमीर पुतिन का अहंकार सिर पर चढ़ रहा था। इस दौरान रूस का दीवाला अवश्य निकलता जा रहा है । उसकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा चुकी है। उसके सैनिक विजयी होकर भी पराजित मानसिकता से ग्रसित हैं। यह कितने आश्चर्य की बात है कि जिस यूक्रेन को तोड़ने फोड़ने और विनष्ट करने के लिए रूस आगे बढ़ा था और जिसके बारे में यह मान रहा था कि वह जल्दी ही उसके चरणों में आ लेटेगा , उसका मनोबल अपनी बहुत भारी बर्बादी देखकर आज भी यथावत है। जबकि रूस को अपने ही सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। यह पहली बार देखा जा रहा है जब युद्ध में शत्रु पर भारी पड़ता हुआ देश टूटे हुए मनोबल के सैनिकों के साथ युद्ध लड़ रहा है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने आप को जिस उलझन में उलझा हुआ देख रहे हैं उसके लिए वह पश्चिमी देशों की रणनीति और कूटनीति को भली प्रकार समझ रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने पश्चिमी देशों को सचेत करते हुए कहा है कि ” वे अपनी सीमाओं में रहें। जो मैं कह रहा हूं वह कोरी धमकी ही नहीं है ।जो परमाणु हथियारों के साथ हमें ब्लैकमेल करना चाहते हैं ,उन्हें समझ लेना चाहिए कि हवा का रुख बदल भी सकता है और उनकी तरफ भी मुड़ सकता है।”
रूस के राष्ट्रपति के इन शब्दों में धमकी भी है साथ ही नई परिस्थितियों के आकलन से निकला और उनके भीतर समाया हुआ एक ऐसा भय भी है जिसे अब वह सीधे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते ,पर उसे समझा जा सकता है। वे समझ चुके हैं कि पश्चिमी देशों के सहयोग से यूक्रेन उनके लिए जी का जंजाल बन चुका है। अर्थव्यवस्था की बुरी हालत देखकर भी वह इस समय असंयमित हैं। इसके अतिरिक्त अपने हथियारों के जखीरे को वह किसी एक देश पर बर्बाद नहीं करना चाहेंगे। पर उनके हथियारों का जखीरा उनके ना चाहते हुए भी बर्बाद हो रहा है। हथियारों के जखीरे से विहीन हुए ऐसे देश को कल उसका कोई भी शत्रु दबोच सकता है। यह चिंता भी पुतिन को निश्चित ही अब सता रही होगी।
यूक्रेन रूस के युद्ध को अब 7 महीने से अधिक का समय हो चुका है। अब इस घटना के प्रति लोगों का भी कोई विशेष आकर्षण नहीं रहा है। यही कारण है कि टी0वी0 चैनलों पर भी अब इसके संबंध में कोई विशेष चर्चा होती दिखाई नहीं दे रही है। कहने का अभिप्राय है कि दुनिया ने रूस यूक्रेन युद्ध के साथ जीना सीख लिया है। वैसे भौतिकवाद में होता भी यही है कि लोग अधिक देर तक किसी दूसरे के दुख में दुखी रहना नहीं चाहते हैं। कुछ देर के लिए लोगों की भीड़ रुकी हुई दिखाई देती है पर धीरे-धीरे सब घटना और घटनास्थल को छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं।
जिस भय को पैदा करके पुतिन सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर यूक्रेन को अपने कदमों में लाना चाहते थे, वह स्थिति अब बदल चुकी है। यूक्रेन चाहे बेशक पश्चिमी देशों के सहयोग से ही ऐसा कर रहा है पर वह रूस को धीरे-धीरे पीछे खदेड़ने में सफल होता जा रहा है। उसने 2500 किलोमीटर का वह क्षेत्रफल रूस से फिर से प्राप्त करने का दावा किया है जिस पर रूस की सेना का अधिकार हो गया था। अमेरिका ने उसे बड़ी सहायता दी है। बताया जा रहा है कि अमेरिका 6 अरब डालर उसके लिए दे चुका है। रूस को इन सब बातों की भली प्रकार जानकारी है । इसलिए रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने 300000 अतिरिक्त सैनिकों की भर्ती करने का आवाहन किया है। रूस के राष्ट्रपति की इस प्रकार की अपील या आवाहन का उनके देश के लोगों पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। रूस के लोग इस बात को लेकर आशंकित हैं कि यदि रूस ने यूक्रेन के साथ परमाणु जंग आरंभ कर दी तो उसका परिणाम उनके अपने देश के लिए अत्यधिक घातक हो सकता है। पूरे रूस में इस समय पुतिन के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं। लोग नहीं चाहते कि यूक्रेन के साथ लंबी जंग चले। वे शांति चाहते हैं। इसलिए उनका अपने देश के राष्ट्रपति के साथ किसी प्रकार का कोई सहयोग का भाव दिखाई नहीं दे रहा है। रूस के लोग अपने देश को छोड़कर भाग रहे हैं। इसके पीछे उनका यह डर है कि यदि वह देश में रहते हैं तो उन्हें जबरन सेना में भर्ती करके यूक्रेन भेजा जा सकता है।
रूस के लोगों की इस प्रकार की मानसिकता से स्पष्ट हो जाता है कि युद्ध शस्त्रों से नहीं जीते जाते हैं बल्कि देश के लोगों के मनोबल से जीते जाते हैं। इसी बात को यूक्रेन के लोग करके दिखा रहे हैं। बड़ी जनसंख्या और बड़ा क्षेत्रफल होना युद्ध जीतने के लिए एक आधार नहीं हो सकता। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसा हमने महाभारत के युद्ध में देखा था, जहां 11 अक्षौहिणी की सेना को लेकर दुर्योधन जीत की डींगें मार रहा था और अंत में जीत उनकी हुई थी जो युद्ध नहीं चाहते थे। कहीं रूस यूक्रेन युद्ध महाभारत के इतिहास को दोहराने तो नहीं जा रहा है ?
यूक्रेन की गलती का उचित सीमा तक उसे दंड देना रूस के लिए उचित हो सकता था, पर सारे यूक्रेन को तबाह करना उसके साथ भी अन्याय है। जहां से अन्याय आरंभ हो जाता है वहीं से अधर्म आरम्भ हो जाता है। अधर्म को अपनाकर जब कोई नीति, रणनीति या कूटनीति बनाई या खेली जाती है तो उसके परिणाम अच्छे नहीं होते। रूस को राजनीति के इस धर्म को समझना ही होगा।
हमें इस बात के बारे में भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि रूस यूक्रेन को समाप्त कर उसे अस्तित्वविहीन कर अपने आप में मिला लेता है तो इसका अन्य छोटे देशों के लिए परिणाम अच्छा नहीं होगा। तब चीन भी अपनी ताकत के नशे में अपने अन्य पड़ोसी देशों के साथ वैसा ही करेगा जैसा आज रूस यूक्रेन के साथ कर रहा है। दुनिया उस समय भी ऐसे ही शांत बैठी देखेगी जैसे आज देख रही है। हम में से कोई भी इस बात पर ध्यान नहीं दे रहा है कि दुनिया के संस्कार समाप्त हो रहे हैं। संवेदनाएं मर रही हैं और यदि आप मर रहे हैं तो मुझे कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं ,ऐसी प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है। इसे सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता। ऐसी सोच के साथ चलना अपनी मृत्यु को अपने आप निमंत्रण देना है। जीवन की सार्थकता इसी में है कि एक हाथ दूसरे हाथ को धोता रहे।
टूटन और बिखराब की मानसिकता संवादहीनता और संवेदनशून्यता की स्थिति तक पहुंचा देती है। जब हमने भारत के वसुधैव कुटुंबकम और कृण्वंतो विश्वमार्यम् के आदर्श को छोड़कर देशों की टूटन और बिखराव की नीति, रणनीति पर काम करना आरंभ किया था तो उससे इसी प्रकार की संवेदनहीनता पैदा होना स्वाभाविक था। भारत के आदर्श समाजवाद और वसुधा को ही कुटुंब मानने के संस्कार को छोड़ना संसार के लिए घातक सिद्ध हुआ है।
रूस यूक्रेन युद्ध के कारण पूरे यूरोप में अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब होती जा रही है। यूरोप में इस समय महंगाई की मार से लोग गुजर रहे हैं। इन सब परिस्थितियों को देखकर भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने समरकंद में पुतिन से कहा था कि “यह युद्ध का युग नहीं है।” उनकी बात के बड़े गहरे अर्थ हैं। सचमुच हमें इस समय विश्व शांति की बात करनी चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य को सारे संसार ने बड़ी गंभीरता से सुना है । यदि हम आग से खेलने लगे तो हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि हमने आग इतनी अधिक इकट्ठी कर रखी है कि यह संपूर्ण भूमंडल दर्जनों बार ध्वस्त किया जा सकता है। हम अपने आप को भस्म करने की ओर कदम आगे ना बढ़ाएं बल्कि शांति की ओर आगे बढ़ने की नीतियों को अपनाएं।
रूस के राष्ट्रपति को इस समय उल्टा लौटने के लिए किसी बहाने की आवश्यकता है। पर अमेरिका जैसे देश रूस की और फजीहत करना चाहेंगे। वे नहीं चाहेंगे कि रूस ससम्मान यूक्रेन से अपने घर आ जाए। अमेरिका को अफगानिस्तान में हुई अपनी फजीहत और उस समय रूस की भूमिका का पूरा ज्ञान है। इसलिए वह शांत रहकर घर बैठे एक बड़ी लड़ाई लड़ रहा है और अपने प्रतिशोध को पूरा कर रहा है। उसने 6 अरब की सहायता यूक्रेन को दे दी है और अपनी सेना और सैनिकों को पूर्णतया सुरक्षित रखने में सफल रहा है।
युद्ध के प्रारंभ में लोग अमेरिका की नीति की आलोचना कर रहे थे और जो उस समय आलोचना कर रहे थे वही अब समझ गए हैं कि अमेरिका ने अपने आपको ही नहीं बचाया है बल्कि दुनिया को भी परमाणु युद्ध से बचा लिया है। यदि अमेरिका अपने अपने सहयोगियों के साथ उस समय इस युद्ध में कूद गया होता तो अब तक बहुत कुछ विनाश में बदल गया होता। अमेरिका ने दिखाया है कि युद्ध में बिना शामिल हुए भी युद्ध जीते जा सकते हैं अथवा युद्ध से दूर रहकर भी युद्ध के परिणाम बदले जा सकते हैं। अमेरिका का इतिहास भी इसी प्रकार का रहा है। पहले विश्व युद्ध में भी उसने दूर रहकर ही गोटियां चली थीं। इतिहास के जानकार भली प्रकार जानते हैं कि पहले और दूसरे दोनों महायुद्धों में अमेरिका ने हथियार बेच कर मुनाफा कमाया था। दूसरे विश्व युद्ध में वह कूदा अवश्य था पर उस समय कूदा था जब सारी दुनिया के देश लड़ते-लड़ते थक गए थे।
अमेरिका की इसी नीति ने उसे संसार का सबसे ताकतवर देश बनाया। बड़ी मेहनत से उसने स्थिति को प्राप्त किया है उसे वह व्यर्थ में ही खोना उचित नहीं मानेगा।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने जीवन के सबसे दयनीय दौर से गुजर रहे हैं। इस समय वह जैसे तैसे परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका अहंकार उन्हें अब अपने आप को गलत या असफल सिद्ध नहीं करने दे रहा है, पर तेजी से परिस्थितियां जिस प्रकार उनके विपरीत होती जा रही हैं उससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि वह गलत भी हैं और असफल भी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने शत्रु देश यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को केवल एक कॉमेडियन ही मान रहे थे पर अब उस कॉमेडियन ने उनकी स्वयं की कॉमेडी बना कर रख दी है। इससे पहले कि यह कॉमेडी किसी ट्रेजडी में बदले उन्हें वस्तुस्थिति को समझकर निर्णय लेना चाहिए।
रूस के साथ भारत के हित जुड़े हुए हैं। भारत ने अपनी विदेश नीति की कूटनीति का शानदार प्रदर्शन किया है और अपने आपको एक निष्पक्ष और निरपेक्ष देश के रूप में स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है। इसके उपरांत भी भारत को कुछ और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। यदि रूस इस युद्ध में हार जाता है तो अमेरिका जैसे देशों का निशाना भारत बनेगा। और यदि रूस विजयी हो जाता है तो भी हमारे लिए स्थिति अनुकूल नहीं होंगी। क्योंकि ऐसी स्थिति में चीन हमारी सीमाओं पर उत्पात मचा सकता है। उस समय हमें अपनी विकास की राह छोड़कर विनाश की राह पर जाना पड़ सकता है। उस स्थिति से बचने के लिए आवश्यक है कि भारत के युद्ध संबंधी सिद्धांत या मान्यता पर विश्व जनमत बने। यद्यपि अमेरिका कभी यह नहीं चाहेगा कि किसी भी स्थिति में भारत को नेता बनने का रास्ता दिया जाए। अमेरिका, चीन और ब्रिटेन आज भी भारत के विरोध में विश्व मंचों पर कुछ न कुछ करते रहते हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि भारत कुछ अधिक सक्रिय होकर इस युद्ध को सम्मान पूर्वक समाप्त कराने की दिशा में काम करे। इस समय भारत को अपनी मित्रता को भी देखना है और विश्व शांति को भी देखना है। उसके साथ साथ अपने मित्र रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए एक ऐसा सम्मान पूर्ण परिवेश भी सृजित करना है जिससे वह अपने आप को सहजता से इस युद्व से बाहर निकाल लें। यह स्थिति ही भारत, रूस, यूक्रेन और सारे संसार के हित में होगी।
हम एक अवांछित युद्ध को विलंबित युद्ध में परिवर्तित होते देख रहे हैं। समय की मांग है कि अब इसे निलंबित कर दिया जाए। फोड़े को बहुत देर तक उपेक्षित करना जानलेवा हो सकता है। रूस के राष्ट्रपति के इस बयान को संसार को गंभीरता से लेना चाहिए कि यदि यूक्रेन नाटो में सम्मिलित हुआ तो यह युद्ध परमाणु युद्ध में परिवर्तित हो जाएगा। संसार के गंभीर और जिम्मेदार लोगों को जनमत बनाने के लिए आगे आना चाहिए।
यदि हम को मानवता के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ आज नहीं दिखाई दे रहा है तो यह हमारा दुर्भाग्य ही माना जाएगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत