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कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत 69 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

जो भक्ति मन से करे ….

अनन्य – भाव से जो करे, मेरी भक्ति पार्थ।
मिलता उसको मोक्ष है , यहां आया जो सेवार्थ।।

जो भक्ति मन से करे , उसे मिलते करुणाकंद ।
सत , रज , तम से पार हो , पाता परमानंद।।

सेवा महात्माओं की करें , जो हैं ईश्वर भक्त।
आकर्षण में ना फंसें, और ना होते आसक्त।।

पापाचरण से दूर हों , और करते होवें दान।
देव उन्हीं को मानिये, करें सबका कल्याण।।

गौ , गंगा और वेद सब , करें लोककल्याण।
इसीलिए यह देव हैं , ये बात वेद की मान।।

जिनकी श्रद्धा ईश में, वे रखते उसको याद।
शुभारंभ तब ही करें ,जब भज लें उसका नाम।।

हमारे भीतर – भीतर ही चले, युद्ध अनोखा एक।
इस देवासुर संग्राम में, कोई जीते योद्धा एक।।

जब देवासुर संग्राम में , जीते सात्विक भाव।
जीवन सफल होता तभी जब मिटें तामसिक भाव।।

जब छूटें सब वासना और मिट जाते हैं विकार।
मर्त्य से अमृत बने, हो मानव की जयकार।।

आलस्य और प्रमाद में , यह जीवन बीता जाय।
अर्जुन ! उठ जा बावरे, क्यों मुंह को रहा छुपाय ?

देश के हित में सोच ले , और भक्ति का मोल।
देश के कल्याण हित , बुद्धि के फाटक खोल।।

इतिहास उसे कायर कहे, जो भागे रण को छोड़।
है शूरवीर तू जन्म से , अर्जुन ! मुँह मत मोड़।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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