डॉ डी के गर्ग, ईशान इंस्टिट्यूट ग्रेटर नोएडा
इस विषय मे सबसे पहले काल और महाकाल का अंतर जानने का प्रयास करते हैं।
काल क्या है*:-
1.काल शब्द समय वाची है। सूर्य एवं पृथ्वी के पारस्परिक दिन सम्बन्ध का ज्ञान जिससे होता है उसे समय या काल कहते हैं।
अस्तु- महर्षियों ने काल को मुख्य रूप से पांच भागों में निर्धारित किया है।
1 – वर्ष 2 -मास 3 -दिन 4 -लग्न 5 – मुहूर्त
भचक्र में भ्रमण करता हुआ सूर्य जब एक चक्र पूरा कर लेता है तो उसे वर्ष की उपाधि दी गयी है।ऋग्वेद में वर्ष के वाचक शरद और हेमंत शब्द बताये गए है। वहां इन शब्दों का अर्थ ऋतु न मानकर संवत्सर बताया गया है।
वर्ष या संवत्सर की व्युत्पत्ति करते हुए शतपथ ब्राह्मण मे वर्ष को दो भागों में विभाजित किया गया है। 1- सौरवर्ष 2- चांदवर्ष
{1} सौरवर्ष:- पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने के लिए 365 दिन 15 घंटे और 11 मिनट का जो समय लगता है। उसे सौरवर्ष कहते हैं।
{2} चंद्रवर्ष:- चन्द्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए 354 दिन का जो समय लगता है। उसे चांद वर्ष कहते हैं.
पहला प्रश्न ये उठता है कि ये वर्ष या संवत्सर यानी काल को किसने बनाया?
2. काल शब्द जा दूसरा प्रयोग मुहावरे के रूप मे ज्यादा प्रचलित है – काल का ग्रास बनना
कुछ साहित्य भी काल का वर्णन करते हुए लिखा है जैसे – कालखंड
यहां भी वही प्रश्न की काल यानि समय को किसने बनाया? चाहे अच्छा काल या बुरा काल.
3.काल का तीसरा साहित्यिक अर्थ गणना भी है.
ईश्वर द्वारा शरीर के विभिन्न क्रिया कलापों को निश्चित गणना के अनुसार बिना मानव की सहायता के गतिमान रखना इसी तरह अन्य जीवो का शरीर की भी
गणना मनुष्य की भांति निर्धारित है..
उदाहरण के लिए,
हर इंसान के जीवन में महत्वपूर्ण मेडिकल नंबर की गणना –
1. रक्तचाप: 120/80
2. पल्स: 70 – 100
3. तापमान: 36.8 – 37
4. श्वसन: 12-16
5. हीमोग्लोबिन: पुरुष (13.50-18)
महिलाएं ( 11.50 – 16 )
6. कोलेस्ट्रॉल: 130 – 200
7. पोटेशियम: 3.50 – 5
8. सोडियम: 135 – 145
9. ट्राइग्लिसराइड्स: 220
10. शरीर में खून की मात्रा : 5-6 लीटर
11. चीनी: बच्चों के लिए (70-130)
वयस्क: 70 – 115
12. आयरन: 8-15 मिलीग्राम
13. श्वेत रक्त कोशिकाएं: 4000 – 11000
14. प्लेटलेट्स: 150,000 – 400,000
प्रश्न ये है कि इस प्रकार की विचित्र गणना को निर्धारित करने वाले करने वाले को क्या कहा गया है?
महाकाल:- अब हम महाकाल का अर्थ समझने का प्रयास करते हैं. उपरोक्त से स्पष्ट है कि वो सर्वशक्तिमान ईश्वर जिसने ये काल बनाए हो और जो इन पर नियंत्रण करने का शक्ति वाला सर्वशक्तिमान हो।
सर्वशक्तिमान का अर्थ होता हैं। कि जो अपने काम अर्थात् उत्पत्ति पालन प्रलय आदि और सब जीवों के पुण्य-पाप की यथा योग्य व्यवस्था करने में किञ्चित मात्र भी किसी की सहायता नहीं ले वह सर्वशक्तिमान् और ऐसा अनन्त सामर्थ्य तो महाकाल (परमात्मा) में ही है जिसकी परिभाषा ऊपर बताई है।
सर्वशक्तिशाली ईश्वर को महाकाल ३ कारणो से कहा गया है।
१. सिर्फ सर्वशक्तिशाली ईश्वर ही है जो सृष्टि का विनाश प्रलय कर सकता है।
2. और वही सर्वशक्तिशाली परमेश्वर जिसमें समय का चक्र यानि सृष्टिकाल फिर से शून्य करने (यानि प्रलय) की और शुन्य से फिर प्रारंभ करने (सृष्टिसृज़न) करने की शक्ति रखता है।उदाहरण के लिए जैसे स्टॉप वाच का स्वामी अपनी स्टॉप वाच का स्वामी होने के कारण उसका समय कभी भी शून्य करने की शक्ति रखते है।इसी तरह ईश्वर भी सृष्टि का रचियता कभी भी सृष्टि चक्र को प्रलय द्वारा शून्य पर ला सकता है.
इसीलिये दुनिया को बनाने और समाप्त करने वाले ईश्वर को महाकाल यानि महेश की संज्ञा दी गयी है।
3 इस काल चक्र को चलाने वाले ईश्वर को महाकाल भी कहा गया है। क्योंकि ईश्वर का बनाया हुआ समय यानि काल चक्र इतना सटीक है की सूर्य चन्द्रमा पृथ्वी शरीर के अंदर वाली घडी आदि सभी अपने–अपने समय का पालन करते है। यदि इनके समय या काल में गलती हो जाये तो दुनिया में हां–हांकार मच जायेगा। लेकिन महाकाल के कारण ऐसा नहीं होता।
4. ईश्वर सभी जीवात्माओ का स्वामी है। जीवात्मा अजर अमर अविनाशी है। कितनी जीवात्मा है। इसकी कोई गिनती आज तक नहीं हो पायी और ये इतनी है कि इनकी गणना मनुष्य की कल्पना से भी बाहर है। मनुष्य अल्प ज्ञानी है। सीमित क्षमता है। फिर भी अपना हिसाब किताब भूल जाता है। पैसा खो सकते है। गिनती भूल सकता है। लेकिन ईश्वर की गणना कभी गलत नहीं हो सकती। जगत् के सब पदार्थ और जीवों की संख्या करने वाले सर्वव्यापक परमेश्वर को महाकाल कहा गया है।
5.इतनी असंख्य जीवात्मा, इनके कर्मों का हिसाब, इसके अनुसार न्यायपूर्वक उनको दंड और पुरस्कार देना आदि कार्य केवल महाकाल ईश्वर के द्वारा ही सम्भव है.
इससे महाकाल का अर्थ स्पष्ट हो जाता है.
क्या ये महाकाल उज्जैन के ही है?
उपरोक्त के अवलोकन से स्पष्ट है कि ईश्वर के अनेक गुणों मे उसको महाकाल भी कह सकते हैं. लेकिन ये कोई अलग से ईश्वर नहीं है. जो उज्जैन मे एक स्थान पर एक भवन मे जड़ की भांति है उसको नहलाने, खिलाने और ताले मे रखने का कार्य कुछ लोग करते हैं, बाकी पंक्ति मे उस समय देखते हैं.
इस महाकाल के मंदिर के चारो और पुलिस है और कोरोना के डर से काफी समय बंद भी किया हुआ था । मैंने सोचा जब महाकाल यहा है तो खुशहाली होगी ये सोचकर मुझे कुछ जिज्ञासा हुई तो मैंने मालूम किया कि उज्जैन की आर्थिक स्थिति कैसी है। तो बताया की यहाँ कोई उधोग नहीं है, बेरोजगारी है, गरीबी है, क्राइम है। हिन्दू धर्म छोड़कर मुस्लिम बने लोगो की भारी संख्या है। जो पशु बलि देते है। लेकिन मंदिर वाला महाकाल किसी निर्दोष की रक्षा नहीं करता ये लोग मंदिर के आस-पास ही रहते है। सरकारी तंत्र भ्रस्टाचार जैसा देश के बाकी जगह की तरह ही है। वैसा ही यहाँ है। पण्डे पुजारी महाकाल मूर्ति को दिखाने का पैसा लेते है। यहाँ बाकि देश के अन्य हिस्सों की तरह या उससे ज्यादा ख़राब हालात मिली।
उपरोक्त काल और महाकाल की व्याख्या से समझ आना चाहिए कि उपरोक्त काल – महाकाल के कार्य उज्जैन के महाकाल वाले मंदिर वाली मूर्ति नहीं कर सकती। वहा के लोगों का, पंडों का भोजन मंदिर आने वाले तीर्थ यात्रीयो की दया दान पर निर्भर है. इसलिए सर्वव्यापी ईश्वर महाकाल को ही पूजें जिसकी कोई प्रतिमा नहीं बन सकती है और जिसका कोई आकर रंग रूप नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए वास्तविक महाकाल को ही पूजें अन्य समान नामधारियों को नहीं।
एक अन्य प्रश्न
यदि ईश्वर को उसके गुणों के आधार पर महाकाल भी कहा है तो ये महाकाल उज्जैन में ही क्यों ? कुछ तो कारण होगा?
पहले ये बताये कि इस मंदिर रखी मूर्ति के दर्शन करने,उस पर फूल चढाने और भोग लगाने, भभूत लपेटने मात्र से ये मूर्ति भक्त को आशीर्वाद देकर उसके दुखो का नाश ,पापो को क्षमा करने का कार्य करती है क्या?
कण कण में ईश्वर है लेकिन कण कण ईश्वर नहीं है.
इस मंदिर का इतिहास
इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् ११०७ से १७२८ ई.तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग ४५०० वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी। लेकिन १६९० ई. में मराठों ने अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। मराठों के शासनकाल में यहाँ – पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना हुई । आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया। हाल ही में इसके ११८ शिखरों पर १६ किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गयी है और सुरक्षा के लिए कैमरे और सुरक्षाबल तैनात किया गया है।
मतलब साफ़ है ,चाहे सोमनाथ का मंदिर हो या उज्जैन का ,कही भी तथाकथित भगवन स्वयं की ही रक्षा नहीं कर पाए बाकि की रक्षा क्या करेंगे ? वहा पर रह रहे मुस्लिम ,भारी पुलिस बल ,सुरक्षा के लिए कैमरे महाकाल की शक्ति पर प्रश्न लगाते है ?
अंतिम प्रश्न ये है की यदि ईश्वर को उसके गुणों के आधार पर महाकाल भी कहा है तो ये महाकाल उज्जैन में ही क्यों ?
इसका उत्तर आयुर्वेद के वनस्पति विज्ञानं से मिलता है।महाकाल शब्द का एक अन्य अर्थ भी है-जो ईश्वर हमको काल के ग्रास से बचाए, बीमारी और गम्भीर रोगों से रक्षा करे उस परमेश्वर का अन्य नाम महाकाल भी है.
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित पुस्तक हमारी कंद सम्पदा के अनुसार एक विशेष वनस्पति जिसका एक नाम इन्द्रायण है और उसी वानस्पति का दूसरा नाम महाकाल भी है,ये महाकाल इस पुस्तक के अनुसार मध्य प्रदेश मे विशेषकर यहां उज्जैन में प्रचुर मात्रा में पैदा होती है।इसमें अचूक चिकित्सा के गुण है जैसे -बहरेपन के इलाज में, मधुमेह, पीलिया ,अस्थमा, मुखरोगों में ,पेट की बीमारियों के इलाज में ,महिला रोग आदि
जैसा कि हम जानते है कि हमारे देश में गांव ,शहरों आदि के नाम किसी न किसी विशेषता के आधार पर ही रखे गए है जिनमे सबसे ज्यादा पेड़,पौधों के नाम पर ,उत्पादन के नाम पर रखे जाते रहे हैं जैसे कि चाकसू ,कोटा ,बूंदी,पीपल ,नीम,आमका, बड़, आदि. जैसा कि स्पष्ट है कि इस क्षेत्र मे महाकाल वनस्पति की खूब मिलती है, तो उस क्षेत्र मे बने मंदिर को महाकाल का नाम से जाना गया.
एक अन्य बात ये कि महाकाल की मूर्ति जिस पत्थर से बनाकर उसमे प्राण प्रतिष्ठा की जाती रही है उसी पत्थर से अन्य मूर्तियां और भवनों का निर्माण हुआ है. इसलिए इस पत्थर को महाकाल वाला पत्थर भी नहीं कह सकते हैं.
चुकी उज्जैन मे महाकाल के मंदिर के नामकरण का कोई विशेष प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है परंतु ये तर्क उचित प्रतीत होता है कि महाकाल का नाम यहा पर उपलब्ध कंद सम्पदा महाकाल यानी इन्द्रायण के कारण पड़ा होगा.