गीता मेरे गीतों में , गीत 66 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)
सतोगुण भी पीछे छोड़ना
जिनकी सतोगुणी वृत्ति होती , उन्नति भी उनकी होती।
उन्हें सत्व के प्रकाश में, शांति की भी उपलब्धि होती।।
सत्व से ही चल रहा जगत और सत्व ही कल्याणकारक।
परोपकारक सत्व है और सत्व ही है आनंददायक।।
सत्व जिसके पास हो वह जीतता है मन सभी के।
वह उन्नति करता जगत में और काम आता है सभी के।।
साधु – सज्जन संसार में चलते सदा सत्व के प्रकाश में।
सत्व से ही गूंजता है नाम उनका धरती और आकाश में।।
जिनकी वृत्ति हो रजोगुणी वह बीच में ही रहें।
ले सकते भौतिक संपदा , पर अध्यात्म से वंचित रहें।।
होता नहीं निर्मल यह , पर मलीन भी पूरा नहीं।
मलीन हो जाता यह , है दोषों से भी अधूरा नहीं।।
है तमोगुण अंधकारमय , जिसमें नीचता का वास है।
मिलता दु:ख ही सर्वत्र हमको और शोक इसके पास है।।
तम में भटकते जीव को प्रतीत दुख होता नहीं।
अज्ञान के अंधकार में सुख के बीज कभी होता नहीं।।
रजोगुण में संशय ही रहे , सतोगुण में है ज्ञान – संपदा।
रज – तम को हम को जीतना जो कष्ट देते हैं सदा।।
सत्व गुण को प्राप्त कीजिए , रहो आनंद की ही खोज में।
सतोगुण भी पीछे छोड़ना , सदा बात रखना बोध में।।
सतोगुण करे अहंकार पैदा और अभिमान का कारण बने।
शुभ कार्यों में आसक्त रहता इसलिए छोड़ ना इसको पड़े।।
तुम छोड़ कर अहंकार को, निर्मल चित्त से बढ़ते रहो।
यही गीता का उपदेश हमको , सतत साधना करते रहो।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य