ईश्वर शर्मा
जब यह सृष्टि नहीं थी, तब भी काल अर्थात समय था। जब इस सृष्टि का आरंभ हुआ, तब काल ने ही इसका महामस्तकाभिषेक किया। फिर काल ने ही इस सृष्टि को चलायमान रखने के लिए संहार का विधान भी रचा। उसी काल के अधिपति देवता हैं महाकाल…जो विराजे हैं इस पृथ्वी के मध्य अर्थात भारतवर्ष की गौरवशाली प्राचीन नगरी उज्जयिनी (मध्य प्रदेश स्थित उज्जैन) में। अनंत काल से इस सृष्टि के कण-कण में महाकाल का जो वैभव गूंज रहा है, उसकी प्रतिध्वनि अब उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर क्षेत्र में बनाए गए ‘श्री महाकाल लोक’ में भी सुनाई देने वाली है। इस नवनिर्मित भव्य और विराट परिसर का लोकार्पण 11 अक्टूबर (कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया, विक्रम संवत 2079, शक संवत 1944 (शुभकृत् संवत्सर) आश्विन) को आदिदेव शिव के भक्त और भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। 920 वर्गमीटर में फैला यह भव्य परिसर महाकाल, मां पार्वती, भगवान गणेश व प्रभु कार्तिकेय की प्रतिमाओं के माध्यम से वेद, पुराणों, शास्त्रों में वर्णित शिव के विभिन्न स्वरूपों का यशगान करेगा।
भारतवर्ष बीते कुछ वर्षों से अपनी प्राण-शक्ति को पुन: प्रज्ज्वलित और मुखरित कर रहा है। भारत की यह प्राण-शक्ति सनातन धर्म में निहित है और सनातन निहित है अपने प्रत्येक भक्त में, श्रद्धालु में, आस्था में, मंत्र में, शास्त्र में, लोक में, प्रत्येक मंदिर में तथा उनमें विराजित विग्रहों में। वर्तमान समय का संकेत पाकर सनातन मानो अपने टूटे हुए मन को जोड़ रहा है। तभी तो हिमालय पर्वत के केदार शृंग पर विराजित केदारनाथ धाम के नवनिर्मित विस्तार क्षेत्र के लोकार्पण तथा ब्रह्मांड के अधिपति, काशी में विराजित भगवान विश्वनाथ के मंदिर परिसर के नवनिर्माण के बाद अब महाकालेश्वर तीसरे ज्योतिर्लिंग हैं, जिनके वैभव-विस्तार का साक्षी वर्तमान कालखंड बनने जा रहा है। भारत के प्राचीन मंदिरों के विध्वंस और पुनर्निर्माण से भरे इतिहास में ‘श्री महाकाल लोक’ का यह लोकार्पण सनातन धर्म के ललाट पर ऐसा विजय-तिलक है, जिसे काल अपने बही-खाता में दर्ज करेगा। यह विश्व की तमाम सभ्यताओं व संस्कृतियों के लिए नए भारत की उस प्रचंड होती धर्म-शक्ति का नया परिचय भी होगा, जो काल का संकेत पाकर इन दिनों पुन: प्रज्ज्वलित होकर बलवती हो रही है। वर्तमान कालखंड में सनातन का यह पुनर्पाठ समय की पीठ पर लिखा जा रहा नया इतिहास बनेगा।
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