manu mahotsav banner 2
Categories
उगता भारत न्यूज़

ब्रह्मर्षि दयानंदार्ष गुरुकुल ( ब्रह्माश्रम ) संस्कृत महाविद्यालय राजघाट ( नरौरा ) का 29 वां वार्षिकोत्सव हुआ संपन्न

नरौरा । ( अजय कुमार आर्य ) यहां स्थित ब्रह्मर्षि दयानंदार्ष गुरुकुल ( ब्रह्माश्रम ) संस्कृत महाविद्यालय राजघाट ( नरौरा )
का 29 वां वार्षिकोत्सव 7, 8 व 9 अक्टूबर को संपन्न हो गया।

कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए गुरुकुल के सञ्योजक आचार्य योगेश शास्त्री ने बताया कि इस वार्षिकोत्सव में आमंत्रित विद्वानों में डॉक्टर राकेश कुमार आर्य ( सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक ) आचार्य रामाशंकर आर्य, ओमप्रकाश फ्रंटियर कप्तान सिंह आर्य सहित अनेक विद्वानों ने विभिन्न सत्रों में अपने विचार व्यक्त किए।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ राकेश कुमार आर्य ने भारत के स्वर्णिम इतिहास की प्रस्तुति दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत के बड़े भूभाग पर मराठों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर हिंदू राष्ट्र का सपना साकार कर दिया था। जिस पर 1819 तक वे निरंतर शासन करते रहे। परंतु इसे हिंदू राष्ट्र के रूप में इतिहास में दर्ज नहीं किया गया। यह भ्रांति पैदा की गई कि पहले यहां पर मुगल शासन कर रहे थे उसके बाद अचानक अंग्रेज आए और उन्होंने उनसे सत्ता प्राप्त कर ली। डॉ आर्य ने भारत की वर्ण व्यवस्था और आश्रम व्यवस्था पर भी विचार व्यक्त किए और कहा कि आज भी भारत को अपनी इसी व्यवस्था को लागू करने की आवश्यकता है। डॉ आर्य ने कहा कि भारतवर्ष की उन्नति वैदिक सिद्धांतों को अपनाकर हो सकती है और उसी के आधार पर विश्व में सुव्यवस्था स्थापित की जा सकती है।
चौथे सत्र की अध्यक्षता कर रहे आर्य नेता श्री गजेंद्र सिंह आर्य ने कहा कि भारत के आर्ष ग्रंथों का सरल हिंदी में अनुवाद करके आज उसे विद्यालय में लागू करवाने की आवश्यकता है। जिससे भारत के अतीत के साथ वर्तमान को जोड़ा जा सके और भविष्य की इमारत खड़ी की जा सके। राष्ट्रोत्थान और वर्ण व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री सुरेश चन्द आर्य ने कहा कि भारत की सामाजिक, राजनीतिक , आर्थिक और धार्मिक सारी व्यवस्था वेदों के ऋषियों ने गहन मंथन और चिंतन के पश्चात स्थापित की थी। जिसे एक षड्यंत्र के अंतर्गत इस्लाम और ईसाइयत ने तोड़ दिया। आज उसे फिर से बहाल करने की आवश्यकता है।


आर्य समाज के युवा सन्यासी स्वामी प्राणदेव सरस्वती ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए महर्षि दयानंद के विचारों और सिद्धांतों को अपनाकर युवाओं के निर्माण करने पर बल दिया। इसी प्रकार लेखक और आर्य जगत के विद्वान रामाशंकर आचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को भारतीयता के दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह तभी संभव है जब हम ऋषि दयानंद के अनुसार वेदों की ओर लौट कर वेदों की व्यवस्था को लागू करवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाया। उन्होंने कहा कि अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भारतीय शिक्षा परिषद का अध्यक्ष स्वामी रामदेव जी को बनाया है परंतु अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

किए गए प्रस्ताव पारित

3 दिन तक चले इस वार्षिकोत्सव में कई प्रस्ताव भी पारित किए गए। प्रस्तावों के बारे में जानकारी देते हुए आचार्य योगेश शास्त्री ने बताया कि इस अवसर पर मुख्य वक्ता डॉ राकेश कुमार आर्य के द्वारा रखे गए भारतीय संविधान के आपत्तिजनक अनुच्छेद 29 और 30 को समूल समाप्त करने के प्रस्ताव को पारित किया गया। जो कि अल्पसंख्यकों को उनके सांप्रदायिक विचारों को आगे बढ़ाने की खुली छूट देते हैं । जबकि वैदिक सिद्धांतों के आधार पर शैक्षणिक संस्था खड़ी करने पर प्रतिबंध लगाते हैं। श्री शास्त्री ने बताया कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत वर्ष में भारत की शिक्षा को सांप्रदायिक माना जाता है और विदेशी लुटेरे आक्रमणकारियों की शिक्षा को देश के अनुकूल माना जाता है। इसलिए इस सम्मेलन में सभी उपस्थित विद्वानों ने एकमत से प्रस्ताव पारित कर संविधान के उपरोक्त अनुच्छेदों को समाप्त करने की मांग की।
दूसरे प्रस्ताव के अनुसार देश में समान नागरिक संहिता लागू करने और जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में भी कठोर कानून लागू करवाने का प्रस्ताव पारित किया गया। सभी उपस्थित हुए आर्य विद्वानों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि देश तभी आगे बढ़ सकता है जब समान नागरिक संहिता लागू हो और देश की बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण लगे। जनसांख्यिकीय आंकड़ों को गड़बड़ाने का किसी को भी अधिकार नहीं होना चाहिए ।

आर्य विद्वानों ने इस बात पर भी सहमति व्यक्त की कि जो लोग देश में रहकर अपने लिए पर्सनल लॉ लागू करवाने की बात करते हैं उन्हें उन्हीं के पर्सनल लॉ से दंडित किया जाना चाहिए। जिसके अनुसार कोई भी व्यक्ति जिस अंग से अपराध करता है उसका वही अंग काट दिया जाता है। ऐसी कठोर सजाएं ऐसे अपराधी लोगों पर लागू होनी चाहिए जो देश में अफरा-तफरी फैला कर किसी न किसी प्रकार से अराजकता पैदा करने में लगे हुए हैं।
इस कार्यक्रम में 96 वर्षीय श्री ओम प्रकाश फ्रंटियर ने अपने ओजस्वी भजनों के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन किया। इसी प्रकार वयोवृद्ध श्री कप्तान सिंह ने भी भजनों के माध्यम से लोगों को मार्गदर्शन किया।

मदर टेरेसा को दिया भारत रतन लिया जाए वापस

कार्यक्रम का सफल संचालन कर रहे आचार्य योगेश शास्त्री ने अपने संबोधन में पश्चिम बंगाल की दयनीय व्यवस्था का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां हिंदुओं का रहना दूभर हो गया है। विदेशी शक्तियां जिस प्रकार वहां सक्रिय हो रही हैं, उससे निकट भविष्य में और भी अधिक दु:खद स्थिति देखने को मिल सकती है। श्री शास्त्री ने देश में बढ़ती हुई पृथकतावादी मानसिकता पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार से मांग करते हुए कहा कि मदर टेरेसा जैसी तथाकथित संतो को भारत रत्न देना देश के साथ बहुत बड़ा अन्याय था। आज आवश्यकता है कि मदर टेरेसा से उसको दिया गया भारत रत्न वापस लिया जाए।
श्री शास्त्री ने कहा कि यह भारतवर्ष में ही संभव है कि जहां देश के साथ अपघात करने वाले लोगों को भी भारत रत्न दे दिया जाता है। धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत की धज्जियां उड़ाते हुए श्री शास्त्री ने कहा कि इस सिद्धांत ने हमारा सबसे अधिक अहित किया है। इसलिए देश को यथाशीघ्र इस रोग से मुक्ति दिलाई जाए।
अंतिम सत्र का संचालन श्री मवासी सिंह आर्य द्वारा किया गया। जिन्होंने सफलतापूर्वक अपने कार्य का संपादन किया । इस सप्ताह में रामकुमार आर्य द्वारा भी अपने विचार व्यक्त किए गए और संस्कारों के आधार पर भारत की युवा पीढ़ी के निर्माण करने पर बल दिया गया। अंतिम सत्र की अध्यक्षता युवा आर्य समाज के युवा नेता मनोवीर सिंह आर्य द्वारा की गई।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version