संघ और दशहरा पर्व का महत्व
अनिल कुमार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए दशहरा साल का सबसे बड़ा और खास दिन होता है। संघ मुख्यालय में इस दिन शस्त्र पूजा के साथ शक्ति की राधनी की जाती है। इस दिन संघ प्रमुख के भाषण की अलग ही अहमियत होती है। संघ प्रमुख का भाषण स्वयंसेवकों के लिए एक तरह से दिशानिर्देश की तरह होता है।
संघ के लिए दशहरा साल का सबसे बड़ा दिन है। संघ के लिए इस दिन के खास होने के पीछे कई वजह है। सबसे बड़ी वजह है कि साल 1925 में दशहरे के दिन ही नागपुर में संघ की स्थापना हुई थी। इसकी स्थापना डा केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। हालांकि, संघ अपना स्थापना दिवस नहीं मनाता है। इसके बदले संघ की तरफ से विजयदशमी उत्सव मनाया जाता है। इस दिन संघ के नागपुर मुख्यालय समेत देशभर की शाखाओं में शस्त्र पूजा की जाती है। इसके साथ ही शक्ति की उपासना भी की जाती है। इसके अलावा देश के अलग-अलह हिस्सों में पथ संचलन निकलते हैं।
दशहरा कार्यक्रम में पहली बार महिला अतिथि
संघ का सलाना कार्यक्रम इस बार इस मायने में भी खास है कि पहली बार संघ ने महिला को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। इस वजह से संघ के कार्यक्रम को लेकर खासी चर्चा है। संघ के विजयदशमी उत्सव में मशहूर पर्वतारोही संतोष यादव को आमंत्रित किया गया है। कोरोना महामारी की वजह से पिछले दो साल से संघ ने अपना दशहरा कार्यक्रम आयोजित नहीं किया था। विजयदशमी के उत्सव में संघ की तरफ से अलग-अलग क्षेत्रों के व्यक्तियों को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाने की पुरानी परंपरा है। संघ के कार्यक्रम में कांग्रेस नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के शामिल होने पर भी खूब चर्चा हुई थी। जानकारों का कहना है कि संघ की तरफ से अपनी विचारधारा के विपरीत लोगों को बुलाकर यह संदेश देने का प्रयास किया जाता है कि वह एक उदार, सहिष्णु और प्रगतिशील संगठन है।
मुस्लिमों तक पहुंचने की रणनीति के बीच संबोधन
संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह संबोधन इस लिए भी खास है कि इन दिनों आरएसएस की तरफ से मुस्लिमों के करीब जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस कड़ी में संघ प्रमुख मस्जिदों और मदरसों में जाकर मुस्लिम उलेमाओं के साथ मुलाकात कर रहे हैं। संघ प्रमुख लगातार मुस्लिम स्कॉलर्स से भी मिल रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि संघ का मुस्लिमों को प्रति नजरिया बदल रहा है। आमतौर पर यह धारणा है कि संघ मुसलमानों का विरोध करता है। इसके उलट संघ से जुड़े लोगों का कहना है कि आरएसएस के बारे में मुसलमानों के बीच पिछली सरकारों ने गलतफहमी फैलाई है। संघ मुस्लिम विरोधी नहीं है। इसके अलावा चुनाव में मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं करते हैं। संघ भले ही सीधे तौर पर चुनाव नहीं लड़ता है लेकिन बीजेपी के लिए समर्थन जुटाने में उसकी भूमिका किसी से छुपी नहीं है।
तीन राक्षसों पर की चुनौतियों से आगे बढ़ेगी बात
संघ प्रमुख मोहन भागवत के भाषण पर देश के लोगों के साथ ही सरकार और बाकी देशों की भी नजर रहती है। संघ प्रमुख का भाषण आमतौर पर स्वयंसेवकों के लिए दिशानिर्देश के रूप में होता है। कुछ दिन पहले ही संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबेले ने मोदी सरकार की सामने तीन राक्षसों (बेरोजगारी, गरीबी और आर्थिक समानता) की चुनौतियों का जिक्र करते हुए इन्हें मारने की बात कही थी। माना जा रहा है कि होसबोले ने एक तरह से मोहन भागवत के भाषण के लिए टोन सेट कर दिया है। होसबले ने आत्मनिर्भरता, गरीबी, असमानता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की उपेक्षा के बारे में बात की। अब मोहन भागवत के दशहरा संबोधन में यह देखना होगा कि वह दशहरे के संबोधन में मोदी सरकार को लेकर क्या बात रखते हैं I
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