गीता मेरे गीतों में , गीत 64 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)
ईश्वर भासता ब्रह्मांड में
एक सूर्य ही कर रहा, प्रकाश सभी लोक में।
सब मस्त रह जीवन चलाते प्राणी इस लोक में,
प्राणी सब स्वस्थ रहते , इसके ही आलोक में,
सब प्राणियों का ध्यान रखता खुशी और शोक में।।
उपकार इसके हैं घने , कोई बतला सकता नहीं,
सब जगह सब काल में हमसे दूर हो सकता नहीं।।
सूर्य की भांति ही ईश्वर भासता ब्रह्मांड में,
सर्वत्र उसी की रोशनी फैली है ब्रह्मांड में,
गुणगान ऐसा कर गए अनेकों विद्वान ब्रह्मांड में,
अनेकों हो गए विद्वान तपसी अपने भरतखंड में।।
सर्वव्यापक है परमात्मा – मेरी बात धर ध्यान में
गाते प्राणी गीत उसके सभी अपने गुणगान में।।
अनुभव करें निज देह में परमात्मा की ज्योति को।
देखें,चेतना के हर केंद्र में ज्योतियों की ज्योति को
वह भासता है हर अणु में नमन उसकी ज्योति को
कृतज्ञ रहें , बुझने न दें- हृदय में अपनी ज्योति को।।
आवास उसका विश्व है – उसमें शयन करता वह
अंतः करण में वास कर , हमें प्रेरणा करता वह।।
अपना भला – तेरा भला , इसमें ही सबका है भला
तोड़ा जिसने नियम यह – वह खाली हाथ ही चला
जग उसका ही हुआ -जीने की जिसने सीखी कला
जो भी बंधा उस डोर से – सम्मान उसको ही मिला।।
तामस को सारे छांट दो बढ़ने न दो अपने निकट
तामस के कारण ही हमें मिलती समस्याएं विकट।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत