त्रेता की लंकापुरी के राक्षसराज रावण के कलयुग की ब्रह्मपुरी में लगे जयकारे*!
लेखक आर्य सागर खारी
आज 7 अक्टूबर को अमर उजाला ग्रेटर नोएडा ब्यूरो के वरिष्ठ पत्रकार राजेश भाटी जी की यह रिपोर्ट पढ़ते ही… मन विछुब्ध विचलित हो गया…. वाक्या यह है जनपद गौतम बुध नगर की एकमात्र नगर पालिका दादरी में बुधवार 5 अक्टूबर को संध्याकालीन रामायण मंचन की समापनीय शोभायात्रा निकाली जा रही थी जैसे ही शोभायात्रा नगर पालिका के ब्रह्मपुरी मोहल्ले पर पहुंची…. 100 – 150 स्वर्ण युवक शोभा यात्रा को घेर कर रावण जिंदाबाद! के नारे लगाने लगे। रावण वेशधारी कलाकार को घेर कर उसके स्वागत पूजन पर अड़ गए।
यह हृदय विदारक है रघुकुल शिरोमणि आर्यवर्त के नायक आर्य संस्कृति के रक्षक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जिन्होंने आर्य संस्कृति ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए असुर राक्षसों का वध किया वह राक्षस जो रावण के इशारे दुष् संरक्षण में सिद्ध वन दंडकारण्य में पवित्र आत्मा निरिह निर्दोष ऋषि-मुनियों को भाले की नोक से भेद कर क्षत-विक्षत कर देते थे वह रावण जो ऋषियो अनुष्ठानों यज्ञो में हिंसा कराता था वह रावण जिसने परस्त्री का हरण किया …. अंत में आतातायी रावण का भी वध किया… वह कलयुग आते आते नायक सिद्ध किया जा रहा है… आदि कवि वाल्मीकि जी ने रामायण में रावण की प्रशंसा प्रशस्ति अनुशंसा वंदना में एक भी छंद श्लोक नहीं रचा है ,केवल उसे अमित तेजस्वी योद्धा पराक्रमी बताया है। वाल्मीकि की रामायण को खोल कर देखिए रावण की अनेक स्थलों पर भर्त्सना की गई है आदि कवि द्वारा। स्मृतियां कहती हैं विद्वान पराक्रमी तेजस्वी एक दुष्ट व्यक्ति भी हो सकता है लेकिन वह धर्मात्मा नहीं हो सकता धर्मात्मा केवल ईश्वर भक्त वेद भक्त मातृ पितृ भक्त नारी का सम्मान करने वाला ऋषि भक्त संस्कृति भक्त गौ भक्त प्रजा प्रजा हितैष कोई भी जन हो सकता है । राम मर्यादा पुरुषोत्तम धर्मात्मा चक्रवर्ती शासक थे रावण के आतंक से उन्होंने भूगोल की अपने अधीन प्रजा को मुक्त किया…. राम का आदर्श राम का चरित्र पूजनीय है…. त्रेता के जाते-जाते कलयुग के आते-आते राम के स्थान पर जो रावण को बिठाते हैं वह राम कृष्ण के वंशज ऋषि मुनियो के वंशज तो कदापि नहीं हो सकते वह केवल दुष्ट नराधम राक्षस श्रेष्ठ ना कि देव श्रेष्ठ रावण के ही वंशज हो सकते हैं। क्योंकि जब मानसिक दिव्यांग मति भ्रष्ट जातिय उन्माद से ग्रस्त कोई संस्था संगठन व्यक्ति रावण को पूजनीय महात्मा बताता है तो वह आराध्य श्री राम के चरित्र कृतित्व व्यक्तित्व पर भी अपनी अज्ञानता से अनाधिकार चेष्टा करते हुए प्रश्नचिन्ह लगाता है…. रामायण शिक्षा नीति आचार इतिहास का महाकाव्य है राजाओं के ऐतिहासिक जीवन वृत्त महाकाव्य नायक और खलनायक दो पक्षों को निष्पक्ष भाव से देखकर ही लिखे जाते हैं । आदि कवि वाल्मीकि ने रामायण मर्यादा पुरुषोत्तम राम के कर्म चरित्र से प्रेरणा लेने के लिए आगामी राजाओं के मार्गदर्शन प्रजावत्सल नीति निर्धारण प्रजा कैसे श्रेष्ठ लोकाचार धारण करें इस भाव से रघुकुल शिरोमणि राजाराम का जीवन वृत्त लिखा…. ना कि रावण का महिमामंडन करने के लिए…. रावण का मिथ्या महिमामंडन नायक के तौर पर दुषप्रचार का प्रबल एक स्वर में विरोध खंडन होना चाहिए ।निष्पक्ष उदार सत्यभाषी विद्वानों द्वारा आर्य समाज को इस में अपनी महती भूमिका निभानी चाहिए उपदेश व लेखनी दोनों से!
आर्य सागर खारी ✍✍✍