*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पराक्रम* “दिल्ली पर पाकिस्तानी कब्जे की योजना”

India famous travel tourist landmark and symbol - Red Fort (Lal Qila) Delhi with Indian flag - World Heritage Site. Delhi, India

India famous travel tourist landmark and symbol – Red Fort (Lal Qila) Delhi with Indian flag – World Heritage Site. Delhi, India

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9 सितम्बर 1947 की मध्यरात्रि को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा सरदार पटेल को सूचना दी गई कि 10 सितम्बर को संसद भवन उड़ा कर व सभी मन्त्रियों की हत्या करके लाल किले पर पाकिस्तानी झण्डा फहरा देने की दिल्ली के मुसलमानों की योजना है। सूचना क्योंकि संघ की ओर से थी, इसलिये अविश्वास का प्रश्न नहीं था। पटेल तुरंत हरकत में आए और सेनापति आकिन लेक को बुला कर सैनिक स्थिति के बारे में पूछा। उस समय दिल्ली में बहुत ही कम सैनिक थे। आकिनलेक ने कहा कि आस-पास के क्षेत्रों में तैनात सैनिक टुकड़ियों को दिल्ली बुलाना भी खतरे से खाली नहीं है। कुल मिलाकर आकिन लेक का तात्पर्य यह था कि इतनी जल्दी भी नहीं किया जा सकता, इसके लिये समय चाहिए। यह सारी वार्ता वाइसराय माउंटबैटन के सामने ही हो रही थी। लेकिन पटेल तो पटेल ही थे। उन्होंने आकिनलेक को कहा-“विभिन्न छावनियों को को संदेश भेजो, उनके पास जितनी जितनी भी टुकड़ियाँ फालतू हो सकती है, उन्हें दिल्ली तुरंत दिल्ली भेजें।” आखिर ऐसा ही किया गया। उसी दिन शाम से टुकड़ियाँ आनी शुरू हो गई। अगले दिन तक पर्याप्त टुकड़ियां दिल्ली पहुंच चुकी थी।

सैनिक कार्यवाही_

सैनिक कार्यवाही आरम्भ हुई। दिल्ली के जिन-जिन स्थानों के बारे में संघ ने सूचना दी थी, उन सभी स्थानों पर एक साथ छापे और जगह से बड़ी मात्रा में शस्त्रास्त्र बरामद हुए। पहाड़गंज की मस्जिद, सब्ज़ी मंडी मस्जिद तथा मेहरौली की मस्जिद से सबसे अधिक शस्त्र मिले l अनेक स्थानों पर मुसलमानों ने स्टेन गनों तथा ब्रेन से मुकाबला किया, लेकिन सेना के सामने उनकी एक न चली। सबसे कड़ा मुकाबला हुआ सब्जी मण्डी क्षेत्र में स्थित ‘काकवान बिल्डिंग’ में । इस एक बिल्डिंग पर कब्जा करने में सेना को चौबीस घण्टों से भी अधिक समय लगा l

मेहरौली की मस्जिद से भी स्टेनगनों व ब्रेनगनों से सेना का मुकाबला किया गया । चार-पांच घंटे के लगातार संघर्ष के बाद ही सेना उस मस्जिद पर कब्जा कर सकी।

तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष आचार्य कृपलानी के अनुसार _

“मुसलमानों ने हथियार एकत्र कर लिए थे। उनके घरों की तलाशी लेने पर बम आग्नेयास्त्र और गोला बारूद के भण्डार मिले थे। स्टेनगन, ब्रेनगन, मोटोर और वायर लेस ट्रांसमीटर बड़ी मात्रा में मिले। इनको गुप्तरूप से बनाने वाले कारखाने भी पकड़े गए।

अनेक स्थानों पर घमासान लड़ाई हुई, जिसमें इन हथियारों का खुल कर प्रयोग हुआ। पुलिस में मुसलमानों की भरमार थी। इस कारण दंगे को दबाने में सरकार को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा।इन पुलिस वालों में से अनेक तो अपनी वर्दी व हथियार लेकर ही फरार हो गए और विद्रोहियों से मिल गए। शेष जो बचे थे, उनकी निष्ठा भी संदिग्ध थी। सरकार को अन्य प्रान्तों से पुलिस व सेना बुलानी पड़ी।” (कृपलानी, गान्धी, पृष्ठ 292-293)

मुसलमान सरकारी अधिकारी थे योजनाकार_

_दिल्ली पर कब्जा करने की योजना बनाने वाले कौन थे ये लोग? ये कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। इनमें बड़े – बड़े मुसलमान सरकारी अधिकारी थे, जिन पर भारत सरकार को बड़ा विश्वास था। इनमें उस समय के दिल्ली के बड़े पुलिस अधिकारी तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी थे, जोकि मुसलमान थे।

एक-एक पहलू को अच्छी तरह सोच-विचार करके लिख लिया गया था और वे लिखित कागज-पत्र विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी की ही कोठी में एक तिजौरी सुरक्षित में रख लिए गए थे।

उन दिनों मुसलमान बनकर मुस्लिम अधिकारियों की गुप्तचरी करने वाले संघ के स्वयंसेवकों को इसकी जानकारी मिल गई और उन्होंने संघ अधिकारियों को सूचित किया। संघ अधिकारियों ने योजना के कागजात प्राप्त करने का दायित्व एक खोसला नाम के स्वयंसेवक को सौंपा।

खोसला ने उपयुक्त स्वयंसेवकों की एक टोली तैयार की और सभी मुसलमानी वेश में रात को विश्वविद्यालय के उस अधिकारी की कोठी पर पहुँच गए। मुस्लिम नेशनल गार्ड के कार्यकर्ता वहाँ पहरा दे रहे थे। खोसला ने उन्हें ‘वालेकुम अस्सलाम’ किया और कहा- “हम अलीगढ़ से आए हैं। अब यहाँ पहरा देने की हमारी ड्यूटी लगी है। आप लोग जाकर सो जाओ।” वे लोग चले गए।

कोठी से तिजौरी ही उठा लाए_

खोसला के लोग कोठी से उस तिजौरी को ही निकाल कर ट्रक पर रख कर ले गए। उसमें से वे कागज निकाल कर देखे गए तो सब सन्न रह गए।

नई दिल्ली में आजकल जो संसद सदस्यों की कोठियाँ हैं, इन्हीं में से ही किसी कोठी में रात को कुछ स्वयंसेवक सरकारी अधिकारियों की बैठक बुलाई गई और दिल्ली पर कब्जे की उन कागजों में अभिलेखित योजना पर मन्थन किया गया। इसी मन्थन में से यह बात सामने आई कि यह योजना इतने बड़े और व्यापक स्तर की है कि हम संघ के स्तर पर उसको विफल नहीं कर सकते। इसे सेना ही विफल कर सकती है। अतः इसकी सूचना हमें सरदार पटेल को देनी चाहिए। फलतः उस बैठक से ही दो-तीन कार्यकर्ता रात्रि को एक बजे के लगभग सीधे सरदार पटेल की कोठी पर पहुँचे तथा उन्हें जगा कर यह सारी जानकारी दी। पटेल बोले-“अगर यह सच न हुआ तो?” कार्यकर्ताओं ने उत्तर दिया- “आप हमें यहीं बिठा लीजिए तथा अपने गुप्तचर विभाग से जाँच करा लीजिए। अगर यह सच साबित न हुआ तो हमें जेल में डाल दीजिए।” इसके बाद सरदार हरकत में आए।

कल्पना करें कि यदि सरदार पटेल संघ की उक्त सूचना पर विश्वास न करते अथवा वे आकिनलेक की बातों में आ जाते तो भारत सरकार को भाग कर अपनी राजधानी लखनऊ, कलकत्ता या मुम्बई में बनानी पड़ती और परिणाम स्वरूप आज पाकिस्तान की सीमा दिल्ली तक तो जरूर ही होती।

साभार:पुस्तक:”विभाजनकालीन भारत के साक्षी ”

(खंड-1,पृष्ठ संख्या 92-93)

लेखक _श्री कृष्णानन्द सागर जी

(प्रेषक : विनोद कुमार सर्वोदय)

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