सब हो जाओ निसंग
करता जो मेरे लिए अपने सारे काम ।
आनन्द जग में वह करे पाता है कल्याण।।
निष्काम कर्मी बन सदा , भजत प्रभु का नाम।
भक्त बने भगवान का , मिले मोक्ष का धाम।।
जिसने त्यागा बैर को , चले बाँटता प्रीत।
उसको ही भगवान की मिलती हरदम प्रीत।।
ना किसी से प्रीत है और नहीं किसी है द्वेष।
कभी ऐसे जन संसार में, पाते नहीं क्लेश ।।
समता का संसार में , जो करता व्यवहार।
हरता उसके कष्ट को , सर्वजीवनाधार।।
जो सज्जन की रक्षा करे और दुष्टों का संहार ।
वह मेरे कर्मों को करे और पाये मेरा प्यार ।।
जिसने माना ईश को पाना अपना लक्ष्य।
संसार में मिलती उसे जय अर्जुन ! निश्चय ।।
भगवान को पाता वही जो करे समर्पण नित्य।
भगवान तक पहुंचे वही , लगे भजन में चित्त।।
जो फल की रखता भावना , करता अपने काम।
उसको भगवान ना मिलें ,ना रह सका निष्काम।।
लालच की यह भावना , करे रंग में भंग।
भगवान सेवा से मिलें , निस्वार्थ भाव हो संग।।
जिसने सेवा ही करी , पा गया मेवा खूब।
‘मम भक्त’ उसको कहें, हों राजी भगवन खूब।।
कर्म करे – पर ना करे , कभी भी फल का संग।
गीता का उपदेश है- सब हो जाओ निसंग।।
आसक्ति को त्याग दो, है यही धर्म का मर्म।
समझ गया जो भी इसे है उसका साथी धर्म।।
बीज स्वार्थ का जो तजे , संग का करता त्याग।
वैर उस को छूता नहीं , पवित्र होते भाव।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत