Categories
इतिहास के पन्नों से

कथित राष्ट्रपिता गांधी पर भारी राष्ट्रपुत्र भगत सिंह

*गांधी के कुटिल राष्ट्र घातक चिंतन कुविचारो का सर्वप्रथम वैचारिक बौद्धिक वध भगत सिंह ने ही किया*।

___________________________________________

आर्य सागर खारी✍✍✍✍

मोहनदास करमचंद गांधी हाड मास का पुतला ही नहीं जैसा भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन ने उनके विषय में कहा था। गांधी अनेक दुर्गुण दोषो का भी पुतला थे। गांधी को परनिंदा करने में बहुत आनंद आता था । इस काम के लिए गांधी बखूबी इस्तेमाल करते थे अपने धनी मित्र मंडली सेठो के द्वारा संचालित पोषित अखबारों का विशेष तौर पर यंग इंडिया अखबार पत्रिका का। मोहनदास करमचंद गांधी क्रांतिकारियों के कटु आलोचक थे कोई मौका वह नहीं चूकते थे भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद बिस्मिल जैसे अमर बलिदानी क्रांतिकारियों के प्रयास से प्रज्वलित परतंत्र भारत की जनता के हृदय में विद्यमान स्वतंत्रता की वैचारिक क्रांति की अग्नि को बुझाने में । आज हम देखते हैं हम गांधी की विपरीत विचारधारा के तौर पर नाथूराम गोडसे को स्थापित करते हैं लेकिन गॉडसे गांधी के जीवन के सांप्रदायिक पक्ष को ही देख पाये जिसमें मुस्लिम तुष्टिकरण प्रधान था लेकिन गांधी की रग रग से असल तौर पर वाकिफ भगत सिंह थे। वह जानते थे गांधी जैसे कुटिल व्यक्ति को उन्हीं की भाषा में कैसे माकूल जवाब दिया जा सकता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह था नाथूराम गोडसे जी की अपेक्षा शहीद भगत सिंह का चिंतन अधिक विकसित था वह अधिक स्वाध्यायशील अध्ययनशील थे उन्होंने विश्व इतिहास दुनिया की क्रांति का भली-भांति अध्ययन किया था।

शहीद भगत सिंह ने लाहौर जेल से अनेक वैचारिक लेख परिपत्र पर्चे पत्र कुछ पुस्तकें भी लिखी जिनमें दुर्भाग्य से आज कुछ ही उपलब्ध है उनके अनेक लेख पत्रों का संपादन संग्रहण उनके छोटे भाई कुलतार की सुपुत्री विरेंद्र सिंधु ने किया है।

घटना 30 दिसंबर 1929 की है क्रांतिकारी यशपाल ने तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन की ट्रेन के नीचे बम विस्फोट किया दुर्भाग्य से लार्ड इरविन बच गया धमाका कम तीव्रता का हुआ था। यह वही लॉर्ड इरविन है जो गांधी नेहरू के मित्र थे । ब्रिटिश भारत में अप्रैल 19 27 से लेकर अप्रैल19 31 तक गवर्नर जनरल रहे। इन्हीं के साथ में भगत सिंह की फांसी से 18 दिन पूर्व गांधी ने लंदन जाकर 5 मार्च 1931 को दूसरे गोलमेज सम्मेलन में समझौता किया था जिसे गांधी इरविन समझौता कहा जाता है। जिसके तहत कांग्रेस के नेताओं अपने भक्तों की रिहाई की घोषणा ब्रिटिश शासन ने अपने सविनय अवज्ञा आंदोलन की वापसी की घोषणा गांधी ने की थी। भगत सिंह साथी क्रांतिकारियों के मुकदमे को सम्मेलन मे उठाया ही नहीं था जानबूझकर गांधी ने। इसके पीछे गांधी का सोचा समझा षड्यंत्र था मूल विषय की और लौटते हैं।

30 दिसंबर 1929 के घटनाक्रम में जब लॉर्ड इरविन बच गया तो देश में अहिंसा वादी नेतृत्व ने अर्थात गांधी वादियो ने और खुद गांधी ने क्रांतिकारियों की निंदा का तूफान खड़ा कर दिया। वायसराय की स्पेशल ट्रेन को बम से उड़ाने के प्रयास के विरुद्ध कांग्रेस द्वारा निंदा प्रस्ताव पारित किया गया यंग इंडिया में गांधी ने “दि कल्ट आफ दी बाम” के नाम से लेख लिखा जिसमें क्रांतिकारियों की कटु आलोचना की उन्हें हतोत्साहित किया गया। कांग्रेस ने जो प्रस्ताव पारित किया उसका मसौदा खुद गांधी ने तैयार किया था उस प्रस्ताव को पारित कराने के लिए गांधी ने अपनी सारी शक्ति लगा दी । क्रांतिकारियों के विरुद्ध गांधी ने माहौल तैयार करने का प्रयास किया भगत सिंह जैसे प्रखर बुद्धिजीवी वीर कहां चुप रहने वाले थे भगत सिंह ने जेल से ही क्रांतिकारियों की आलोचना के लिए गांधी को जमकर लताड़ा उन्होंने 26 गांधी के लेखों के जवाब में जनवरी 1930 को “बम का दर्शन “नामक शीर्षक से एक विस्तृत परिपत्र लिखा बहुत ही गजब का है यह परिपत्र है।

उस परिपत्र के कुछ चुनिंदा अंश इस प्रकार हैं शहीद भगत सिंह की लेखनी व जुबानी।

“महात्मा गांधी की भक्त सरला देवी चौधुरानी के मत को मैं यहां उद्धृत करना चाहूंगा जो जीवन भर कांग्रेस की भक्त रही है और गांधी भक्त भी हैं। उन्होंने बताया है महात्मा गांधी ने क्रांतिकारियों के विरुद्ध प्रस्ताव को कांग्रेस से पारित कराने में अपना पूरा बल लगा दिया जबकि आधे से अधिक कांग्रेस के सदस्य इसके खिलाफ थे। 1913 की सदस्य संख्या में केवल 31 अधिक मतों से है प्रस्ताव पारित होता सका क्या यह राजनीतिक ईमानदारी थी, जी नहीं। मुझे मालूम हुआ है जिन कांग्रेस के सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया है वह अपनी आत्मा से इसके खिलाफ थे लेकिन महात्मा जी के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा के कारण में अपना विरोध प्रकट ना कर सकें प्रस्ताव के विरुद्ध मत देने में असमर्थ रहे इतना ही नहीं प्रस्ताव पर विचार के दौरान गांधी समर्थको कांग्रेस सदस्यों ने गाली गलौज की क्रांतिकारियों को बुजदिल कहा और उनके कार्यों को घृणित कहा क्या यह शोभा देता है? किसी गांधीवादी को गांधी कांग्रेसियों को वैचारिक वाणी की हिंसा से मुक्त नहीं कर पाए।”

(आज भक्त शब्द राजनीतिक व्यंग्य में देश की सबसे बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के समर्थकों के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन शहीद भगत सिंह ने यह शब्द इतिहास में सर्वप्रथम कांग्रेसियों और गांधी समर्थकों के लिए इस्तेमाल किया था।)

“गांधी जी ने हम क्रांतिकारियों के विरुद्ध यंग इंडिया में लेख लिखा है क्रांतिकारियों पर दूसरा हमला किया है इस पर आगे कुछ कहने से पहले हम अच्छी तरह विचार करेंगे इसलिए कि उन्होंने तीन बातों का उल्लेख किया है जिसका शीर्षक है उनका विश्वास ,उनके विचार और उनका मत। हम उनके विश्वास के संबंध में विश्लेषण नहीं करेंगे क्योंकि विश्वास में तर्क के लिए स्थान नहीं है गांधीजी जिसे हिंसा कहते हैं और जिस के विरुद्ध उन्होंने जो तर्कसंगत विचार प्रकट किए हैं हम उनका सिलसिलेवार विश्लेषण करेंगे। गांधीजी सोचते हैं कि उनकी यह धारणा सही है कि अधिकतर भारतीय जनता को हिंसा की भावना छू तक नहीं गई है और अहिंसा उनका राजनीतिक शस्त्र बन गया है। हाल ही में उन्होंने देश का जो भ्रमण किया है उस अनुभव के आधार पर उनकी यह धारणा बनी है परंतु उन्होंने अपनी इस यात्रा की से इस भ्रम में ना पडना चाहिए। यह बात सही है कि कांग्रेस के नेता अपने दौरे वहीं तक सीमित रखते है जहां तक डाक गाड़ी उन्हे आराम से पहुंचा सकती है जबकि गांधीजी ने अपनी यात्रा का दायरा वहां तक बढ़ा दिया है जहां तक की मोटर कार द्वारा वे जा सके। गांधी जी अपनी यात्रा में धनी व्यक्ति के ही निवास स्थान पर रुके। इस यात्रा का अधिकतर समय उनके भक्तों द्वारा आयोजित गोष्ठियों में की गई उनकी प्रशंसा सभाओं में यदा-कदा अशिक्षित जनता को दिए जाने वाले भाषणों में मे ही बीता । भारतीय जनता जिसके विषय में उनका दावा है कि वे उन्हें अच्छी तरह समझते हैं परंतु यह बात इस दलील के विरुद्ध है कि वह आम जनता की विचारधारा को जानते हैं कोई व्यक्ति जनसाधारण की विचारधारा को केवल मंचों से भाषण और उपदेश देकर नहीं समझ सकता वह तो केवल इतना ही दावा कर सकता है कि उसने विभिन्न विषय पर अपने विचार जनता के सामने रखें क्या गांधी जी ने इन वर्षों में आम जनता के सामाजिक जीवन में कभी प्रवेश करने का प्रयत्न किया? क्या कभी उन्होंने किसी शाम को गांव के किसी चौपाल के अलाव के पास बैठकर किसी किसान के विचार जानने का प्रयत्न किया क्या किसी कारखाने के मजदूर के साथ एक शाम को जाकर उसके विचार समझने की कोशिश की है पर हमने यह किया है और इसलिए हम दावा करते हैं कि हम आम जनता को गांधी से अधिक जानते हैं हम गांधीजी को विश्वास दिलाते हैं कि साधारण भारतीय साधारण मानव के समान ही अहिंसा तथा अपने शत्रु से प्रेम करने की आध्यात्मिक भावना को बहुत कम समझता है संसार का तो यही नियम है तुम्हारा एक मित्र है तुम उससे इतने प्रेम करते हो कभी-कभी तो इतना अधिक कि तुम उसके लिए अपने प्राण भी देते देते हो तुम्हारा शत्रु है तो उसे किसी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहते हो। क्रांतिकारियों का यह सिद्धांत नितांत सत्य सरल और सीधा है और ध्रुव सत्य है ।आदम और हव्वा के समय से चला आ रहा है तथा इसे समझने में कभी किसी को कठिनाई नहीं हुई। हम यह अनुभव के आधार पर कह रहे हैं वह दिन दूर नहीं जब लोग क्रांतिकारी विचारधारा को सक्रिय रूप देने के लिए लाखों की संख्या में जमा होंगे।”

“गांधीजी घोषणा करते हैं कि अहिंसा के सामर्थ्य तथा अपने आपको पीडा देने की प्रणाली से उन्हें आशा है कि वह 1 दिन विदेशी शासकों का हृदय परिवर्तन कर अपनी विचारधारा का उन्हें अनुयाई बना लेंगे अब उन्होंने अपने सामाजिक जीवन के चमत्कार की “प्रेम सहिंता “के प्रचार के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया है अडिग विश्वास के साथ उसका प्रचार कर रहे हैं जैसा कि उनके अनुयायियों ने भी किया है परंतु क्या बता सकते हैं कि भारत में कितने शत्रुओं का हृदय परिवर्तन कर उन्हें भारत का मित्र बनाने में समर्थ हुए हैं ।वह कितने ओ डायर, डायर ,रीडिंग और इरविन को भारत का मित्र बना सकें ।यदि किसी को भी नहीं तो भारत उनकी विचारधारा से कैसे सहमत हो सकता है ।वे इंग्लैंड को समझा-बुझाकर इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार कर लेंगे कि वे भारत को स्वतंत्रता दे दे। यदि वायसराय की गाड़ी के नीचे बंबो का विस्फोट ठीक हुआ होता तो दो में से एक बात अवश्य हुई होती तो वायसराय अधिक घायल हो जाते या उनकी मृत्यु हो जाती ऐसी स्थिति में वायसराय तथा राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच मंत्रणा ना हो पाती यह प्रयास रुक जाता और उससे राष्ट्र का भला होता यदि बम का ठीक से विस्फोट हुआ होता तो भारत का एक शत्रु उचित सजा पा जाता मेरठ तथा लाहौर षड्यंत्र और भुसावल कांड का मुकदमा चलाने वाले केवल भारत के शत्रु को ही मित्र प्रतीत हो सकते हैं”

“गांधी जी यह प्रतिपादन करते हैं कि जब जब हिंसा का प्रयोग हुआ है तब तक सैनिक खर्च बढ़ा है यदि उनका मंतव्य क्रांतिकारियों की पिछले 25 वर्षों की गतिविधियों से है तो हम उनके वक्तव्य को चुनौती देते हैं कि वह अपनी इस कथन को तथ्यों और आंकड़ों से सिद्ध करें। बल्कि हम तो यह कहेंगे कि उनके अहिंसा और सत्याग्रह के प्रयोगों का परिणाम जिनकी तुलना स्वतंत्रता संग्राम से नहीं की जा सकती नौकरशाही पर हुआ है आंदोलन का फिर वह हिंसात्मक हो या हिंसात्मक सफल और असफल परिणाम तो भारत की अर्थव्यवस्था पर होगा ही”

“गांधी जी का कथन है कि हिंसा से प्रगति का मार्ग अवरुद्ध होकर स्वतंत्र का दिवस स्थगित होता है तो हम इस विषय में उदाहरण दे सकते हैं जिन देशों ने क्रांति हिंसा से काम किया लिया उनकी सामाजिक प्रगति होकर उन्हें राजनीतिक सफलता प्राप्त हुई हम रूस तथा तुर्की का उदाहरण ही ले ले। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के जो न्यायोचित अधिकार माने जाते थे उन्हें प्राप्त करने में अहिंसा का शस्त्र असफल रहा है भारत को स्वराज्य दिलाने में भी असफल रहा जबकि राष्ट्रीय कांग्रेस सदस्यों की बड़ी सेना उसके लिए प्रचार करती रही तथा उस पर लगभग सवा करोड रुपए भी खर्च किया गया हाल ही में बारदोली सत्याग्रह में असफलता सिद्ध हो चुकी है इस अवसर पर सत्ताग्रह के नेता गांधी और पटेल ने बारदोली के किसानों को जो कम से कम अधिकार दिलाने का आश्वासन दिया था उसे भी वह दिलाना सके इसके अतिरिक्त अन्य किसी देशव्यापी आंदोलन की बात हमें मालूम नहीं अब तक इस अहिंसा को एक ही आशीर्वाद मिला है और वह है असफलता का। ऐसी स्थिति में यह आश्चर्य नहीं कि देश में फिर उसके प्रयोग से इंकार कर दिया । गांधीजी के सत्याग्रह जिसका स्वाभाविक परिणाम समझौते में होता है जैसा कि अनेक बार स्पष्ट है। इसलिए जितनी जल्दी हम समझ ले कि स्वतंत्रता और गुलामी में कोई समझौता नहीं होता उतना ही अच्छा है”

“गांधी जी ने सभी विचारशील लोगों से कहा कि वे लोग क्रांतिकारियों से सहयोग करना बंद कर दें तथा उनके कार्यों की निंदा करें जिससे हमारे इस प्रकार उचित देशभक्तों की हिंसात्मक विचारधारा को बल् न मिल सके और वह हिंसा की निरर्थकता तथा और हिंसात्मक कार्यों में जो हानि है उसे समझ सके। क्रांतिकारी अलग-थलग हो जाए अपना कार्यक्रम स्थगित करने के लिए विवस हो जाए। मैं कहना चाहूंगा गांधीजी ने जीवन भर जन जीवन का अनुभव किया पर यह बड़े दुख की बात है कि वह फिर भी क्रांतिकारियों का मनोविज्ञान ना तो समझते हैं और ना समझना ही चाहते हैं वह सिद्धांत अमूल्य है जो प्रत्येक क्रांतिकारी को प्रिय है जो व्यक्ति क्रांतिकारी बनता है जब वह अपना सिर हथेली पर रखकर किसी भी पल आत्म बलिदान के लिए तैयार रहता है तो केवल खेल के लिए नहीं हैं क्रांतिकारी बलिदान इसलिए भी नहीं करता कि जब जनता उसके साथ सहानुभूति दिखाने की स्थिति में हो तो उसकी जय जयकार करें वह इस मार्ग का इसलिए अवलंबन करता है कि उसका सदविवेक उसे इसकी प्रेरणा देता है उसकी आत्मा उसे उसके लिए प्रेरित करती है। एक क्रांतिकारी सबसे अधिक इस सिद्धांत में विश्वास करता है वह केवल तर्क और तर्क नहीं विश्वास करता है किसी प्रकार का गाली गलौज निदा चाहे फिर वह ऊंचे से ऊंचे स्तर से की गई हो उसे अपने निश्चित उद्देश्य प्राप्ति से वंचित नहीं कर सकती यह सोचना कि यदि जनता का सहयोग ना मिला या उसके कार्य की प्रशंसा न की गई तो वह अपने उद्देश्य को छोड़ देगा यह कोरी मूर्खता है अनेक क्रांतिकारी जिनकी कार्यों की वैधानिक आंदोलनकारियों ने घोर निंदा की फिर भी वह उसकी परवाह न कर फांसी के तख्ते पर झूल गए यदि तुम चाहते हो कि क्रांतिकारी गतिविधियों को स्थगित कर दें तो उसके लिए होना तो यह चाहिए कि उनके साथ अपना मत प्रमाणित किया जाए यह एक और केवल यही एक रास्ता है बाकी बातों के विषय में किसी को शंका नहीं होना चाहिए इस प्रकार के डराने धमकाने से क्रांतिकारी कदापि हार मानने वाले नहीं है।

कथित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आईना दिखाने के पश्चात उनकी आलोचना का माकूल जवाब देने के बाद अपने परिपत्र के अंत में शहीद भगत सिंह देशवासियों से सीधी अपील करते हैं जो इस प्रकार है।

“हम प्रत्येक देशभक्त से निवेदन करते हैं कि वह हमारे साथ गंभीरता पूर्वक इस युद्ध में शामिल हो कोई भी व्यक्ति( गाँधी) अहिंसा और ऐसे ही अजीबोगरीब तरीकों से मनोवैज्ञानिक प्रयोग कर राष्ट्र की स्वतंत्रता के साथ खिलवाड़ ना करें। स्वतंत्रता राष्ट्र का प्राण है हमारी गुलामी हमारे लिए लज्जास्पद है ना जाने कब हम मे यह बुद्धि और साहस होगा कि हम उससे मुक्ति प्राप्त कर स्वतंत्र हो सके हमारी प्राचीन सभ्यता और गौरव की विरासत का क्या लाभ यदि हम यह सभी स्वाभिमानी ना रहे कि हमें विदेशी गुलामी विदेशी झंडे और बादशाह के सामने सर झुकाने से अपने आप को ना रोक सके। क्या यह अपराध नहीं कि ब्रिटेन ने भारत में अनैतिक शासन किया हमें भिखारी बनाया हमारा समस्त खून चूस लिया। एक जाति और मानवता के नाते हमारा घोर अपमान तथा शोषण किया गया है क्या जनता भी चाहती है कि अपमान को भुलाकर हम ब्रिटिश शासकों को क्षमा कर दें। हम बदला लेंगे जो जनता द्वारा ब्रिटिश शासकों से लिया गया न्याय उचित बदला होगा कायरो को पीठ दिखाकर समझौता और शांति की आशा से चिपके रहने दीजिए हम किसी से भीख नहीं मांगते और हम किसी को भी क्षमा नहीं करेंगे हमारे युद्ध विजय, मृत्यु के निर्णय तक चलता ही रहेगा। क्रांति चिरंजीवी हो।

भगत सिंह
(26 जनवरी 1930 लाहौर जेल )

Comment:Cancel reply

Exit mobile version