जो मनुष्य ईश्वर व वेद को अपने जीवन में धारण कर लेता है, वह नित्य सुख को प्राप्त करता है।: वेदवसु शास्त्री”

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ओ३म्
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आर्यसमाज के प्रसिद्ध पुरोहित पं. वेदवसु शास्त्री जी ने कहा कि जिसकी कीर्ति होती है वह अपनी मृत्यु के बाद भी हजारों वर्ष तक जीवित रहता है। पं. वेदवसु शास्त्री आज देहरादून में शीर्ष वैदिक विद्वान श्री वीरेन्द्र राजपूत जी की धर्मपत्नी माता सुशीला देवी जी की श्रद्धांजलि सभा में बोल रहे थे। श्रीमती सुशीला देवी जी का दिनाक 23 सितम्बर, 2022 को 75 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया था। माता सुशीला देवी जी के पति ऋषिभक्त श्री वीरेन्द्र राजपूत जी ने तीन वेद यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का सम्पूर्ण काव्यानुवाद किया है जो कि प्रकाशित हो चुका है एवं उपलब्ध भी है। वीरेन्द्र राजपूत जी ने ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 1000 हजार से अधिक मन्त्रों का काव्यानुवाद भी किया है जो प्रकाशित होकर उपलब्ध है। ऋग्वेद के शेष भाग पर काव्यानुवाद का कार्य चल रहा है।

पं. वेदवसु जी ने आगे कहा कि आजकल पुत्रों के कार्यों से माता व पिता का यश व कीर्ति बढ़ती है। आचार्य वेद वसवसु जी ने कहा कि ईश्वर व उसका ज्ञान वेद भविष्य में नष्ट होने वाले नहीं है क्योंकि ईश्वर एवं वेद दोनों ही नित्य है। वेद ईश्वर का ज्ञान है जो ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में मनुष्य की अमैथुनी सृष्टि कर चार ऋषियों को प्रदान किया था। विद्वान पुरोहित जी न कहा कि जो मनुष्य ईश्वर व उसके ज्ञान वेद को अपने जीवन में धारण कर लेता है, वह नित्य सुख को प्राप्त करता है।

पंडित वेदवसु जी ने कहा कि संसार का सुख तो अनित्य अर्थात् नाशवान है। यह सांसारिक सुख सदा रहने वाला नहीं है। परमात्मा का आनन्द नित्य है। उस आनन्द की प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को वेदों का स्वाध्याय करना चाहिये। परमात्मा की भक्ति और ईश्वर का चिन्तन करना चाहिये। ईश्वर की भक्ति, उपासना तथा वेदों के स्वाध्याय से वर्तमान जीवन भी सुखी होगा और आने वाला जीवन एवं पुनर्जन्म भी सुखी होगा।

आचार्य वेदवसु शास्त्री जी ने यह भी कहा कि हमें यह जीवन परमात्मा के द्वारा अगले जीवन की तैयारी करने के लिए मिला है। परमात्मा ने हमें यह शरीर हमारे पूर्वजन्म के हजारों जन्मों के पुण्य प्रताप से दिया है। उन्होंने कहा कि अधिकांश मनुष्य मानव शरीर को पाकर संसार के भौतिक सुखों में लिप्त हो जाते हैं। ऐसा करना मनुष्यों की भारी भूल है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिये अपितु वेदों का स्वाध्याय करते हुए वैदिक पथ पर चलना चाहिये। इसी से उनका जन्म-जन्मान्तरों में कल्याण होगा।

शान्ति सभा के आरम्भ में श्री वीरेन्द्र राजपूत जी के पुत्र श्री सौरभ आर्य ने सभा को सम्बोधित किया। उन्होंने माता सुशीला देवी जी के प्रति भेजे गये शोक व श्रद्धांजलि सन्देशों को पढ़कर सुनाया। वैदिक साधन आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने भी इस अवसर पर माताजी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने माता सुशीला देवी जी से जुड़ी अपनी स्मृतियों को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के आरम्भ में पं.वेदवसु शास्त्री जी ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘भूलू न, भूलू न, भूलू न, प्रभु याद रहे।’ इस भजन को सभी श्रोताओं ने भी मिलकर गाया। सभा की समप्ति पर शान्ति पाठ किया गया। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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