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महाशय राजेंद्र सिंह आर्य जी की 111 वी जयंती पर अथर्ववेद पारायण यज्ञ का हुआ शुभारंभ : अथर्व का अर्थ है स्थिर हो जाना गति शून्य हो जाना, स्थितप्रज्ञ हो जाना : आचार्य विद्या देव जी महाराज

ग्रेनो। ( आर्य सागर खारी ) महाशय राजेंद्र सिंह आर्य जी की स्मृति में उगता भारत समाचार पत्र द्वारा आयोजित अथर्ववेद पारायण यज्ञ यहां पर विधि विधान से आरंभ हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य विद्या देव जी महाराज हैं। जबकि यज्ञ की अध्यक्षता देव मुनि जी महाराज द्वारा की जा रही है। यज्ञ के पहले दिन उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए आचार्य विद्या देव जी ने कहा कि स्वामी दयानंद जी महाराज ने यह बात बहुत सोच समझकर कही थी कि वह सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वास्तव में वेद के भीतर विभिन्न प्रकार के रोगों का निदान भी स्पष्ट रूप से बताया गया है। उन्होंने अथर्ववेद के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस वेद के भीतर अनेक प्रकार के रोगों के निदान की बात कही गई है।


आचार्यश्री ने कहा कि अर्थववेद के दूसरे कांड का पांचवा मंत्र पर्वत वनौषधि पशुओं में होने वाले सूक्ष्म रोगाणु जल में रहने वाले हमारे शरीर में भी प्रवेश कर जाते हैं हम उन्हें नष्ट करें… ऐसी व्यवस्था स्पष्ट रूप से करता है। संसार के अन्य ग्रंथों में इस प्रकार की स्पष्टता नहीं है। इसी से पता चलता है कि वेद मानव कल्याण के प्रत्येक बिंदु पर अपना मार्गदर्शन देता है।
उन्होंने कहा कि वायरस की रोकथाम के लिए इसके स्रोत का जानना बहुत आवश्यक होता है। हम सभी यह भली प्रकार जानते हैं कि एचआईवी का वायरस बंदर से आया इबोला वायरस चिंपैंजी से आया, निपाह वायरस चमगादड़ से आया और अभी कुछ दिन पहले तबाही मचाने वाला कोरोनावायरस कहां से आया अभी यह स्पष्ट नहीं है। जो वायरस जंतु जानवर से आते हैं उन्हें जूनोटिक वायरस कहा जाता है…
आचार्य श्री ने आगे कहा कि दूसरे कांड का छठा मंत्र वायरस की संरचना के बारे में बताता है। वायरस एक निर्जीव अणु है जिसके केंद्र में आर एन ए या डीएनए रूपी जेनेटिक मैटेरियल होता है उसके चारों तरफ प्रोटीन का एक खोल होता है.. जिसे कैप्सोल्ड बोला जाता है.. वायरस मटेरियल वेरीऑन सॉलिड को सुरक्षित करने के लिए जल वसा लिपिड का एक दूसरा स्तर होता है जिसे वायरस लिफाफा बोला जाता है… तमाम एंटीवायरल मेडिसिन वैक्सीन सैनिटाइजर अल्कोहल वायरस के इसी कवच को कमजोर कर उसकी प्रोटीन को नष्ट कर देते हैं जिससे वह रिप्लिकेट नहीं हो पाता को कोशिका संक्रमण नहीं फैला सकता..।अथर्ववेद में वायरस की इसी दोहोरी संरचना को क्रम से शृषड कुशुंभ कहा गया है… पहला शब्द वायरस की प्रोटीन है दूसरा वायरस का लिफाफा है…।
मंत्र का भावार्थ यह है हे! रोग कृमि में तेरे सींग की भांति कष्ट देने वाले अंगों तेरे इस जल पात्र को भी नष्ट करता हूं जो तेरे विष धारण का काम देता है..|
उन्होंने कहा कि वेद ने सृष्टि के प्रारंभ में ही हमारे लिए ऐसी व्यवस्था दी जिससे हम स्वस्थ रहकर जीवन यापन कर सकें। इसके लिए उसकी व्यवस्थाओं का जितना अभिनंदन किया जाए उतना कम है। आज के दिग्भ्रमित मानव समाज को वेद की शरण में आना चाहिए और लग गई आग अधिकार के जीवन को लोक कल्याण के लिए समर्पित करना चाहिए।
आचार्य श्री ने यज्ञ के आरंभ में बहुत ही विद्वत्ता पूर्ण ढंग से भूमिका जमाते हुए स्पष्ट किया कि अथर्व का अर्थ है स्थिर हो जाना, गति शून्य हो जाना, स्थितप्रज्ञ हो जाना। जब व्यक्ति स्थितप्रज्ञ हो जाता है तो उसके मन की चंचलता शांत हो जाती है। इसी स्थिति का नाम अथर्व है। इसे ब्रह्म वेद कहा जाता है। यह वेद मनोविज्ञान से गहरा सम्बन्ध रखता है। इस वेद में सूक्तों की व्यवस्था है। प्रपाठकों की व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि अग्नि के माध्यम से व्यक्ति को ऊर्जा का उपासक होना चाहिए।
पारायण यज्ञ के प्रथम सत्र में देव मुनि जी महाराज, महावीर सिंह आर्य ,किशनलाल महाशय, रविंद्र आर्य ,सरपंच रामेश्वर सिंह, सीएस पुंडीर, परमानंद कुशवाहा, संदीप गर्ग, श्री चाहत राम, प्रेमचंद आर्य, श्रीमती ऋचा आर्या, अमन आर्य, आशीष आर्य, वरुण आर्य, श्रीमती बलेश आर्या, श्रीमती मृदुला आर्या आदि सहित अनेक लोगों ने अमृत वर्षा का आनंद लिया। प्रथम सत्र में महाशय जगमाल सिंह आर्य ने अपने भजनों प्रदर्शन के माध्यम से लोगों को पर अमृत वर्षा की।

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