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*लेखक : राजेश आर्य, गुजरात*
रोम ई.पू. की आठवीं शताब्दी में अस्तित्व में आया था। इटली की तिबर (Tiber) नदी पर बसा एक छोटा सा नगर रोम बाद में एक ऐसे साम्राज्य के रूप में विकसित हुआ, जो अपने उत्कर्ष के चरम पर यूरोप, पश्चिमी एशिया के अधिकांश हिस्से, उत्तरी अफ्रीका और भूमध्यसागरीय द्वीपों पर अपना प्रभुत्व रखता था। लगभग 450 वर्ष तक रोम एक गणतंत्र (Republic) बना रहा। बाद में, ई.पू. की प्रथम शताब्दी में जूलियस सीज़र के उत्थान और पतन के बाद रोम एक साम्राज्य (Empire) बन गया। अपने प्रथम सम्राट अगस्टस (Augustus) से रोम का शांति और समृद्धि का स्वर्ण युग प्रारम्भ हुआ, और पांचवीं शताब्दी ई. का अंत आते-आते रोमन साम्राज्य का पतन मानव सभ्यता के इतिहास की सबसे नाटकीय घटनाओं में से एक था।
रोम की उत्पत्ति :
रोमनों की पौराणिक कथाओं और मिथकों में रोम की स्थापना विषयक कईं कहानियाँ वर्णित की गई है, जिनमें सबसे प्रसिद्ध एक किंवदंती के अनुसार, ई.पू. 753 में युद्ध के देवता मंगल (Mars) के जुड़वां बेटे – रोमुलस (Romulus) और रेमुस (Remus) – द्वारा रोम की स्थापना की गई थी। कहा जाता है कि जन्म के समय ही दोनों शिशुओं को मरने के लिए एक टोकरी में तिबर नदी में छोड़ दिये गए थे, पर एक भेड़िये नें दोनों शिशुओं को बचाया और उनका पालन-पोषण किया। बाद में एक चरवाहे और उसकी पत्नी नें दोनों बच्चों को अपने ही बेटे मानकर बड़ा किया। बड़े होने के बाद उन्होंने एक शहर स्थापित करने का फैसला किया और ई.पू. 753 में सात पहाड़ियों पर रोम नगर का निर्माण करवाया। बाद में अपने भाई को रेमुस को मार कर रोमुलस रोम का पहला राजा बना। रोमुलस के बाद अन्य छ: राजाओं ने (509 ई.पू. तक) शासन किया। रोमुलस के बाद के सभी राजा सीनेट (Senate – सभा) द्वारा चुने गए थे। एक राजशाही (monarchy) के रूप में रोम का युग 509 ई.पू. में समाप्त हुआ। कहा जाता है कि सातवें राजा लुसियस तार्किनियस सुपरबस (Lucius Tarquinius Superbus) के पुत्र द्वारा लूक्रेशिया (Lucretia) नामक एक गुणी रईस महिला के बलात्कार के कारण प्रजा में एक विद्रोह भड़क उठा था। कारण जो भी हो, रोम के अंतिम राजा को उखाड़ फेंक कर रोम के समृद्ध नागरिकों ने रोमन नागरिकों की विभिन्न समितियाँ बना कर गणतंत्र की स्थापना की। ये समितियाँ अब शहर के सामान्य नागरिकों के हित में महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेने लगी। इस तरह रोम एक राजशाही से एक गणतंत्र (Republic) में परिवर्तित हो गया।
प्रारंभिक गणराज्य (509 ई.पू. – 27 ई.पू.) :
रोमन गणराज्य उस कालखण्ड को कहते है जिसमें रोम नगर-राज्य का एक गणतंत्र सरकार के रूप में अस्तित्व में रहा। सीनेट रोमन गणराज्य का हृदय थी. गणराज्य में एक सम्राट की सत्ता दो निर्वाचित मजिस्ट्रेटों (कौंस्यूल्स – Consuls) को दी गई। उनका कार्यकाल एक वर्ष का रहता था। ये कौंस्यूल सेना के प्रमुख के रूप में भी कार्य करते थे। हालांकि ये मजिस्ट्रेट या कौंस्यूल लोगों द्वारा चुने जाते थे, फिर भी प्रायः वे सीनेट के ही सदस्य होते थे। सीनेट का एक प्रमुख कार्य गणराज्य के संचालन में मजिस्ट्रेटों को सलाह देना था। रोमुलस के समय से ही सीनेट पर पेट्रीशियन (patricians – मूल सीनेटरों के धनी वंशजों) का वर्चस्व था। यह भी सच है कि प्रारंभिक गणतांत्रिक सीनेट स्पष्ट रूप से सबसे धनी नागरिकों के हितों के प्रति पूर्वाग्रह रखती थी, क्योंकि केवल पेट्रीशियन वर्ग के सदस्य ही सीनेट में स्थान पा सकते थे और राजनीतिक या धार्मिक पद धारण कर सकते थे। इसलिए गणतंत्र के प्रारम्भ से ही रोम की राजनीति में पेट्रीशियन और प्लेबीयन (plebeians – सामान्य लोगों) के बीच संघर्ष शुरु हो गया था. प्लेबीयन, जो भारी मात्रा में रोमन सैन्य में सैनिक के रूप में कार्य करते थे, लगभग 200 वर्ष तक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे और शहर के बाहर विरोध प्रदर्शन करते रहे. इसके परिणाम स्वरूप ‘प्लेबीयनों की परिषद’ जैसी अन्य वैधानिक समितियों की स्थापना हुई और अंततः प्लेबीयनों को भी कुछ राजनीतिक शक्ति प्राप्त होने लगी। सीनेट और विविध परिषदें साथ मिलकर मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति करती थी. हालांकि सीनेट औपचारिक रूप से कानून नहीं बनाती थी, पर इसके सदस्यों की प्रतिष्ठा के कारण कानून बनाने वाले निकायों पर सीनेट का बहुत प्रभाव रहता था। गणराज्य धीरे-धीरे प्रभुत्व जमाने के लिए अपने पडौसी प्रतिस्पर्धियों से युद्ध करने लगा. और इस तरह, ई.पू. प्रथम शताब्दी की समाप्ति से पूर्व रोमन गणराज्य भूमध्यसागरीय क्षेत्र में एकमात्र प्रमुख शक्ति के रूप उभर चुका था.
ई.पू. 450 में पहली रोमन कानून संहिता बारह कांस्य तख्तियों पर अंकित की गई और रोमन फोरम में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की गई। इन कानूनों में कानूनी प्रक्रिया, नागरिक अधिकार और संपत्ति के अधिकार शामिल थे और ये कानून भविष्य के सभी रोमन नागरिक कानूनों के आधार बने। 300 ई.पू. के आसपास रोम की वास्तविक राजनीतिक सत्ता सीनेट में केंद्रित हो गई, जिसमें उस समय केवल पेट्रीशियन और धनी प्लेबियन परिवारों के सदस्य शामिल थे।
सैन्य विस्तार :
प्रारंभिक गणतंत्र के दौरान, रोमन राज्य आकार और ताकत दोनों में तेजी से बढ़ा। हालांकि 390 ई.पू. में गल्स (Gauls) ने रोम को लूटकर और जला डाला, पर रोमनों ने सैन्य नायक कैमिलस के नेतृत्व में पलटवार किया, और अंततः 264 ई.पू. से पूर्व पूरे इतालवी प्रायद्वीप पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया। रोम ने बाद में उत्तरी अफ्रीका के शक्तिशाली नगर-राज्य कार्थेज (Carthage) के विरुद्ध कई युद्ध लड़े, जिन्हें ‘पुनिक युद्ध’ (Punic Wars) कहे जाते है। प्रथम दो पुनिक युद्ध के बाद सिसिली, पश्चिमी भूमध्यसागरीय प्रदेश और स्पेन का एक बड़ा हिस्सा रोम के पूर्ण नियंत्रण में आ गया। तीसरे पुनिक युद्ध (149-146 ई.पू.) में रोमनों ने कार्थेज शहर पर कब्जा कर लिया और नष्ट कर दिया और इसके बचे हुए निवासियों को गुलाम बना लिया। इस तरह, उत्तरी अफ्रीका का एक हिस्सा अंततः एक रोमन प्रांत (province) बन गया।
रोमन लोग यूनानी सभ्यता को बड़ी प्रशंसा की दृष्टि से देखते थे। यूनानी भी रोम को अपने नागरिक संघर्षों में एक उपयोगी सहयोगी के रूप में देखते थे और उन्हों ने रोमन सेनाओं को ग्रीस में हस्तक्षेप करने के लिए आमंत्रित किया। तब तक सभी युनानी साम्राज्य और नगर-राज्य अंतहीन गृहयुद्धों से थक चुके थे और भाड़े के सैनिकों पर निर्भर थे। 146 ई.पू. में रोमन कौंसूल लुसियस मुमियस ने कुरिन्थ पर विजय प्राप्त की। उसी समय, मैसेडोनिया के राजा फिलिप पंचम को हरा कर उसके राज्य को भी एक रोमन प्रांत में बदल कर, रोम ने पूर्व में भी अपना प्रभाव फैलाया। सैन्य अभियानों के दौरान यूनानियों जैसी उन्नत संस्कृतियों के संपर्क में आने से रोम का एक समाज के रूप में सांस्कृतिक विकास हुआ। रोमनों ने अंततः ग्रीक कला, दर्शन और धर्म अपनाए।
गणतंत्र में आंतरिक संघर्ष :
रोम की जटिल राजनीतिक संस्थाएं अब साम्राज्य विस्तार के भार तले बिखरने लगी, और जब नागरिक और परिवार सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष करने लगे तब गणतंत्र में आंतर कलह, अराजकता और हिंसा का युग शुरू हुआ। जैसे-जैसे धनी जमींदार छोटे किसानों को सार्वजनिक भूमि से हटाने लगे और सरकार तक पहुंच विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों तक सीमित होने लगी, वैसे-वैसे अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौडी होने लगी। गरिबों के हित में इन समस्याओं का निवारण करने का प्रयास करने वाले टिबेरियस और गायस ग्रेचस जैसे सुधारकों की उनके विरोधियों ने क्रमशः 133 ई.पू. और 122 ई.पू. में हत्या कर दी। गणतंत्र में अब (पेट्रीशियन या प्लेबीयन वर्गों के प्रति वफादार या किसी सेनापति के प्रति वफादार) गुट पैदा होने लगे, और इन विभिन्न गुटों के बीच शत्रुता बढ़ने लगी. अपने सैन्य कौशल के बल पर एक सामान्य व्यक्ति से 107 ई.पू. में कौंसूल के पद तक पहुँचा गायस मारियस (Marius) गणतंत्र के अंतिम वर्षों में रोम पर हावी होने वाले सरदारों में से पहला था। ई.पू. 91 आते-आते मारियस ने अपने आपको साथी सेनापति सुल्ला (Sulla) सहित अपने विरोधियों के हमलों के खिलाफ संघर्ष करते पाया। 82 ई.पू. के आसपास सुल्ला (Sulla) एक सैन्य तानाशाह के रूप में उभरा। सुल्ला के सेवानिवृत्त होने के बाद, उसके एक पूर्व समर्थक पोम्पी (Pompey) ने कुछ समय के लिए कौंसूल के रूप में कार्य किया और बाद में उसने भूमध्य सागर में समुद्री लुटेरों और एशिया में मिथ्रिडेट्स की सेनाओं के विरुद्ध सफल सैन्य अभियान चलाये। इसी अवधि के दौरान, 63 ई.पू. में कौंसूल चुने गए मार्कस सिसेरो (Cicero) ने पेट्रीशियन सीनेटर कैटलिन (Cataline) की रोमन सरकार को उखाड़ फेंकने की बहुचर्चित साजिश को नाकाम किया और एक महान वक्ता के रूप में ख्याति प्राप्त की।
गायस जूलियस सीज़र का उदय :
जब विजेता पोम्पी रोम लौटा, तो उसने क्रैसस (Crassus), जिसने 71 ई.पू. में स्पार्टाकस के नेतृत्व में किए गए एक गुलाम विद्रोह को कुचल दिया था, और रोमन राजनीति में उभरते सितारे गायस जूलियस सीज़र (Gaius Julius Caesar) के साथ एक गठबंधन किया, जो इतिहास में ‘प्रथम तिकड़ी’ (First Triumvirate) के रूप में जाना जाता है। स्पेन में सफल सैन्य अभियान चलाकर सीज़र 59 ई.पू. में कौंसूलशिप का पद प्राप्त करने के लिए रोम लौटा। पोम्पी और क्रैसस के साथ अपने गठबंधन के तहत, सीज़र को 58 ई.पू. में गॉल (Gaul – वर्तमान फ्रांस, बेल्जियम, लग्जम्बर्ग और उनसे सटे निदरलैंड, स्वित्जरलैंड और जर्मनी के भाग) के तीन समृद्ध प्रांतों का शासन प्राप्त हुआ; फिर उसने रोम के लिए गॉल के शेष क्षेत्रों को जीतने का निश्चय किया। 54 ई.पू. में पोम्पी की पत्नी जूलिया (सीज़र की बेटी) की मृत्यु और अगले वर्ष फारस (Parthia – वर्तमान ईरान) के खिलाफ युद्ध में क्रैसस की मृत्यु के बाद, यह तिकड़ी भंद हो गई और 53 ई.पू. में पॉम्पी ने एकमात्र कौंसूल के रूप में रोमन राजनीति में कदम रखा।
गॉल में सीज़र की सैन्य सफलता और उसकी बढ़ती संपत्ति को मद्देनजर उसके रजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पोम्पी ने सीज़र को धीरे-धीरे कमजोर करने के उद्देश्य से सीनेट में अपने सहयोगियों की सहायता प्राप्त की। सीज़र की ताकत और सामर्थ्य से भयभीत सीनेट ने मांग की कि सीज़र सैन्य कमान छोड़कर एक नाकरीक के रूप में रोम लौट आएं. पर 49 ई.पू. में सीज़र ने अपनी एक सैन्य टुकडी के साथ गॉल और इटली के बीच की सीमा पर स्थित रूबिकॉन (Rubicon) नदी पार कर इटली पर आक्रमण कर दिया। सीज़र के इस आक्रमण ने इटली में गृहयुद्ध की ज्वाला प्रज्वलित कर दी और अंततः 45 ई.पू. में वह रोम के ‘तानाशाह’ (dictator) के रूप में उभरा। पहले, सैन्य आपातकाल के समय में एक नियुक्त और अस्थायी नेता को तानाशाह की उपाधि दी जाती थी, पर गणतंत्र के भीतर अब अन्य नेताओं को डर था कि सीज़र इस नई उपाधि धारण कर एक अत्याचारी शासक बन जाएगा।
सीज़र से अगस्टस तक :
अगले वर्ष, 15 मार्च, 44 ई.पू. के दिन, गणतांत्रिक रईस ब्रूटस (Brutus) और कैसियस (Cassius) के नेतृत्व में एक साजिश के तहत दुश्मनों के एक समूह द्वारा जूलियस सीज़र की हत्या कर दी गई। सीज़र के मित्र कौंसूल मार्क एंटनी (Mark Antony) और सीज़र के भतीजे और दत्तक उत्तराधिकारी ऑक्टेवियन (Octavian) ने साथ मिलकर ब्रूटस और कैसियस को कुचल डाला और रोम के पूर्व-कॉन्सूल लेपिडस (Lepidus) के साथ सत्ता विभाजन किया, जिसे इतिहास में ‘द्वितीय तिकड़ी’ (Second Triumvirate) के रूप में जाना जाता है।
इस नए गठबंधन के तहत ऑक्टेवियन के हिस्से में पश्चिमी प्रांत आए, जबकी एंटनी को पूर्व के प्रांत और लेपिडस को अफ्रीका मिला। ई.पू. 36 का वर्ष आते-आते इस तिकड़ी में भी तनाव पैदा होता गया और अंततः यह तिकड़ी जल्द ही भंग हो गई। ई.पू. 31 में ऑक्टेवियन ने एक्टियम की लड़ाई (Battle of Actium) में एंटनी और मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा (Cleopatra) की सेनाओं पर विजय प्राप्त की। इस विनाशकारी पराजय के चलते एंटनी और सुंदरी क्लियोपेट्रा ने आत्महत्या कर ली। (कहा जाता है कि एक समय यह सुंदरी जूलियस सीज़र की प्रेमिका थी।)
ई.पू. 29 में ऑक्टेवियन रोम और उसके सभी प्रांतों का एकमात्र नेता बन गया। अपना हश्र भी सीज़र जैसा न हो यह सुनिश्चित करने के लिए तथा एकमात्र शासक के रूप में प्रजा की स्वीकृति पाने के लिए उसने रोमन गणराज्य के सभी राजनीतिक संस्थानों को बहाल कर सभी वास्तविक सत्ता अपने पास रख ली। ई.पू. 27 में ऑक्टेवियन ‘अगस्टस’ (Augustus) की उपाधि धारण कर रोम का प्रथम सम्राट (Emperor) बना। रोमन सम्राट को अब कानून बनाने का और रद्द करने का सामर्थ्य प्राप्त हो गया. सम्राट की अनुमति के बिना अब कोई भी नागरिक कोई पद धारण नहीं कर सकता था. सत्ता के इस स्थानांतर के कारण गणतंत्र काल में कार्यरत विभिन्न परिषदें अपनी सत्ता और महत्व खोने लगी, पर सीनेट फिर भी बची रही. सम्राट को प्राप्त सारी सत्ता अब भी सीनेट से ही प्राप्त होती थीं। चूंकि सीनेट रोम के कुलीन और बौद्धिक नागरिकों से बनती थी, इसलिए वे जनमत को भी प्रभावित कर सकते थे। अपनी इस ताकत से, सीनेट सम्राट को राज्य का दुश्मन घोषित कर सकती थी, या सम्राट के निष्कासन या मृत्यु के बाद, सीनेट आधिकारिक तौर पर आधिकारिक इतिहास से उसके शासनकाल के रिकॉर्ड को मिटा सकती थी।
रोमन सम्राटों का युग :
एक शताब्दी के कलह और भ्रष्टाचार के बाद अगस्टस के शासन ने रोम के मनोबल को ऊंचा उठाया और इस तरह प्रसिद्ध Pax Romana (पैक्स रोमाना – शांति और समृद्धि के नवयुग) का प्रारम्भ हुआ। उसने विभिन्न सामाजिक सुधार किए, सैन्य अभियानों के माध्यम से कई जीत हासिल की, और रोमन साहित्य, कला, वास्तुकला और धर्म को फलने-फूलने के लिए एक अनुकूल वातावरण का सृजन किया। अगस्टस के शासनकाल में साम्राज्य ने इतालवी प्रायद्वीप अपना प्रभुत्व सुदृढ़ किया, उत्तर अफ्रिका में उपनिवेश स्थापित किए, और स्पेन और गॉल के विशाल क्षेत्र अपने अंकुश में ले लिए. अपनी महान सेना के सहयोग से अगस्टस ने 56 वर्ष तक शासन किया और इस दौरान प्रजा में सम्राट के प्रति निष्ठा, समर्पण या भक्तिभाव (Emperor Cult) का विकास हुआ। जब उसकी मृत्यु हुई, तो रोमन सीनेट ने अगस्टस को एक ‘देवता’ का दर्जा प्रदान किया, जिससे बाद में आने वाले लोकप्रिय सम्राटों पर देवत्व का आरोपण (deification) करने की एक लंबी परम्परा का प्रारम्भ हुआ। अगस्टस के राजवंश में अलोकप्रिय तिबेरियस (14-37 ई.), रक्तपिपासु कैलीगुला (37-41 ई.) और क्लॉडियस (41-54 ई.) ने भी रोम से शासन किया। यह राजवंश नीरो (54-68 ई.) की मृत्यु के साथ समाप्त हुआ। नीरो के अतिरेक के कारण उसके शासनकाल में रोम का खजाना खाली हो गया और यह उसके पतन और अंततः आत्महत्या का कारण बना।
नीरो की मृत्यु के बाद एक ही वर्ष में चार सम्राटों ने रोम की गद्दी संभाली। चौथे वेस्पेसियन (Vespasian, 69-79 ई.) और उसके उत्तराधिकारी टाइटस (Titus) और डोमिशियन (Domitian) के साथ ‘फ्लेवियन’ (Flavian) राजवंश का प्रारम्भ हुआ; उन्होंने रोमन अदालत की ज्यादतियों को कम करने, सीनेट के अधिकारों को बहाल करने और लोक कल्याण के कार्यों को बढ़ावा देने का प्रयास किया। टाइटस (79-81 ई.) ने हरक्यूलेनियम और पोम्पेई शहरों को तबाह करने वाले वेसुवियस ज्वालामुखी के कुख्यात विस्फोट के बाद बचाव कार्यों से अपने लोगों का सम्मान अर्जित किया।
डोमिशियन के उत्तराधिकारी के रूप में सीनेट द्वारा चुने गए नर्वा (Nerva) के शासनकाल (96-98 ई.) से रोमन इतिहास में एक और स्वर्ण-युग का प्रारम्भ हुआ। इस युग में क्रमशः चार सम्राटों – ट्राजन, हैड्रियन, एंटोनिनस पायस और मार्कस ऑरेलियस – ने वंशानुगत उत्तराधिकार की परम्परा के विपरीत शांतिपूर्वक रोम का सिंहासन ग्रहण किया। ट्राजन (98-117 ई.) ने डेसिया (उत्तर-पश्चिमी रोमानिया) और फारस के राज्यों पर विजय हासिल कर रोम की सीमाओं का इतिहास में सबसे अधिक विस्तार किया। उसके उत्तराधिकारी हैड्रियन (117-138 ई.) ने (वर्तमान इंग्लैंड की प्रसिद्ध ‘हैड्रियन की दीवार’ का निर्माण कर) साम्राज्य की सीमाओं को मजबूत किया और अपने पूर्ववर्तिओं के कार्यों को जारी रखते हुए उसने आंतरिक स्थिरता स्थापित करने और प्रशासनिक सुधारों की दिशा में प्रयास किया। एंटोनिनस पायस (138-161 ई.) के शासनकाल में रोम अधिकाधिक समृद्ध बनता गया, लेकिन फारस और आर्मेनिया के खिलाफ हुए युद्ध और उत्तर से जर्मन जनजातियों के आक्रमण के कारण मार्कस ऑरेलियस (161-180 ई.) का शासनकाल संघर्षपूर्ण रहा। वियना में वह बीमार पड़ गया और युद्ध के मैदान के निकट मरने से पहले, उसने गैरवंशानुगत उत्तराधिकार की परम्परा को तोड़कर अपने 19 वर्षीय बेटे कोमोडस को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
विघटन :
कॉमोडस (180-192 ई.) की अक्षमता और अयोग्यता ने रोमन सम्राटों के स्वर्ण युग को निराशाजनक अंत तक पहुंचा दिया। उसके अपने मंत्रियों के हाथों उसकी मृत्यु ने गृहयुद्ध की एक और ज्वाला को प्रज्वल्लित कर दी। इस गृहयुद्ध में से लुसियस सेप्टिमियस सेवेरस (193-211 ई.) एक विजयी के रूप में उभरा। तीसरी शताब्दी ई. के दौरान रोम निरंतर संघर्षों का सामना करता रहा। इस कालखण्ड में कुल बाईस सम्राटों ने रोम की गद्दी संभाली और उनमें से कईयों का हिंसक अंत उन्हीं सैनिकों के हाथों हुआ, जो उन्हें सत्ता में लाए थे! इस बीच, जर्मनों और फारसियों के निरंतर आक्रमण, एजियन सागर पर गोथों (Goths) के छापे, आदि बाहरी खतरों ने भी साम्राज्य को त्रस्त कर दिया था।
डायोक्लेशियन (Diocletian, 284-305 ई.) के शासनकाल में रोम में अस्थायी रूप से शांति और समृद्धि बहाल हुई, लेकिन उसका मानना था कि यदि अपने विस्तृत साम्राज्य के प्रांतों पर दो प्रशासन द्वारा देखरेख रखी जाए तो उन्हें नियंत्रित करना अधिक सरल हो जाएगा। इस विचार से उसने साम्राज्य को दो हिस्सों में बांटकर मैक्सिमियन (Maximian) के साथ ‘अगस्टस’ (सम्राट) की अपनी उपाधि साझा की और सत्ता को तथाकथित ‘टेट्रार्की’ (tetrarchy, चार के शासन) में विभाजित किया। दो सेनापति – गैलेरियस और कॉन्स्टेंटियस – को डायोक्लेटियन और मैक्सिमियन के सहायक नियुक्त किए गए और उत्तराधिकारी चुने गए; डायोक्लेटियन और गैलेरियस ने पूर्वी रोमन साम्राज्य पर शासन किया, जबकि मैक्सिमियन और कॉन्स्टेंटियस ने साम्राज्य के पश्चिम हिस्से की सत्ता संभाली।
डायोक्लेटियन और मैक्सिमियन के सेवानिवृत्त होने के पश्चात यह प्रणाली (टेट्रार्की) असफल सिद्ध होने लगी। 324 ई. में कॉन्स्टेंटियस का पुत्र कॉन्सटेंटाइन (Constantine) आगामी सत्ता संघर्ष से पुनर्एकीकृत रोम के एकमात्र सम्राट के रूप में उभरा। उसने साम्राज्य की राजधानी रोम से बीजान्टियम (Byzantium) में स्थानांतरित कर दी, जिसे ‘कॉन्स्टेंटिनोपल’ नाम दिया गया। कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल में ही पहली बार ईसाईयत (Christianity) को साम्राज्य के आधिकारिक धर्म के रूप में राज्याश्रय दिया गया। (ईसाईयत अभी तक एक यहूदी संप्रदाय मात्र था।) ई. 325 में ईसाईयत के सभी प्रमुख धर्मशास्त्रिओं को आमंत्रित कर कॉन्स्टेंटाइन ने ही प्रसिद्ध ‘नीसिया की परिषद’ (Council of Nicaea) का आयोजन किया था।
कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल में रोमन एकता भ्रामक साबित हुई, और उसकी मृत्यु के 30 साल बाद पूर्वी और पश्चिमी साम्राज्य फिर एक बार विभाजित हो गए। फारसी सेनाओं के विरुद्ध अपनी निरंतर लड़ाई के बावजूद, पूर्वी रोमन साम्राज्य (जो बाद में ‘बीजान्टिन साम्राज्य’ के रूप में जाना गया) आने वाली सदियों तक बरकरार रहा, लेकिन पश्चिमी साम्राज्य कहानी पूरी तरह से अलग थी। वहां साम्राज्य आंतरिक संघर्ष के साथ-साथ बाहरी खतरों से, विशेष रूप से साम्राज्य की सीमाओं के अंदर बस चुकी वैंडल आदि जर्मन जनजातियों के उत्पात से, टूटने लगा था। (उन वैंडलों के नाम से vandalism शब्द बना है!)
रोम का पतन :
इस तरह रोम अंततः अपने दोनों हिस्सों के बीच संघर्ष, बाहरी खतरों के भय, धन की कमी आदि कई कारणों से और अपने स्वयं के भार के नीचे ढहने लगा और एक-एक करके अपने प्रांतों को खोने लगा: ई. 410 के आसपास ब्रिटेन और ई. 430 से पूर्व स्पेन और उत्तरी अफ्रीका हाथों से निकल गए। अत्तिला (Atilla) और उसके पाशविक हूणों ने ई. 450 के आसपास गॉल और इटली पर आक्रमण कर दिया, जिसने साम्राज्य की नींव ही हिला डाली। सितंबर 476 में, ओडोवाकर (Odovacar) नामक एक जर्मन राजकुमार ने इटली में रोमन सेना पर अपना नियंत्रण कर लिया! पश्चिमी साम्राज्य के अंतिम सम्राट रोमुलस अगस्टस को अपदस्थ कर, ओडोवाकर के सैनिकों ने उन्हें इटली का राजा घोषित कर दिया! इस प्रकार रोमन साम्राज्य का पतन पूरा हुआ और उथल-पुथल से भरे उसके लंबे इतिहास का अंत हुआ। (रोम का प्रथम और अंतिम दोनों सम्राटों का नाम ‘रोमुलस’ था!)
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लेखक : राजेश आर्य, गुजरात
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