बिल गेट्स
ज्यादा स्वस्थ, न्यायसंगत और समृद्ध दुनिया की ओर बढ़ने की रफ्तार निर्भर करती है प्रतिबद्धता और इनोवेशन पर। यही वह बिंदु है, जहां भारत दुनिया को राह दिखाता है। पिछले दो दशकों से बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन भारत में काम कर रहा है। हम यह देखकर लगातार हैरान होते रहे हैं कि यहां के लोग कितनी गहराई से अपनी चुनौतियों को समझते हैं और कितनी कुशलता से उन्हें हल करने के देसी उपाय खोज निकालते हैं।
इस महीने की शुरुआत में हमारे फाउंडेशन ने सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल्स (एसडीजी) की दिशा में हुई प्रगति पर एक रिपोर्ट जारी की। ये लक्ष्य – गरीबी और भुखमरी मिटाना, आर्थिक विकास हासिल करना, साफ पानी और शौचालय तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करना और अन्य- 2030 तक हासिल करने का निश्चय सात साल पहले संयुक्त राष्ट्र में सभी सदस्य राष्ट्रों ने किया था।
उम्मीद बरकरार
रिपोर्ट दर्शाती थी कि मौजूदा स्थिति ठीक नहीं है और इन लक्ष्यों की ओर बढ़ती दुनिया की गाड़ी पटरी से उतर चुकी है। मगर फिर भी, भारत ने जो प्रगति और जैसी लीडरशिप दिखाई, उसकी बदौलत मुझे अभी भी उम्मीद है कि हम वहां तक पहुंच सकते हैं। पीएम मोदी की नेतृत्व में भारत ने कई ऐसे बड़े कदम उठाए हैं, जिनसे एसडीजी की दिशा में प्रगति तेज होने के आसार बने हैं।
भारत के वैश्विक योगदान का एक बढ़िया उदाहरण है टीकों का विकास। वैक्सीन अलायंस गावी द्वारा दुनिया भर में बांटे गए हर पांच टीकों में से दो भारत में बने हुए थे। महामारी के दौरान 2021 के शुरू में सप्लाई की कमी के बावजूद, भारत में बने टीकों की दो अरब खुराक देश के अंदर बांटी गई जबकि 25 करोड़ खुराकें निर्यात की गईं। और ऐसा नहीं है कि भारत के टीका ज्ञान से सिर्फ इंसानों को फायदा हो रहा है। हमारा फाउंडेशन एनिमल वैक्सीन के क्षेत्र में भी साझेदारी का विस्तार कर रहा है।
दूसरा क्षेत्र जिसमें भारत का अनुसरण होना चाहिए, वह है डिजिटल टेक्नॉलजी। इस क्षेत्र में प्रगति से दुनिया को कई चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है, चाहे वह महामारी से उबरने की बात हो या गरीबी उन्मूलन की या फिर आवश्यक दवाओं तक लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने की। लेकिन यह तभी संभव है जब तमाम देश मिलकर ऐसे सिस्टम्स बनाएं जो सुरक्षित हों, एक-दूसरे से कनेक्टेड हों और इन्क्लूसिव हों।
इस लिहाज से भारत का फाइनैंशल इन्क्लूजन का डिजिटल सिस्टम पूरी दुनिया के लिए मॉडल हो सकता है। प्रधानमंत्री जन धन योजना ने बैंकिंग और अन्य फाइनैंशल सर्विसेज तक खासकर महिलाओं की पहुंच जबर्दस्त ढंग से बढ़ा दी, जिनका अक्सर अपने ही पैसों पर कोई वश नहीं रहता। खोले गए कुल 45 करोड़ खातों में से आधे से ज्यादा महिलाओं के हैं। यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस ने हर महीने जो ट्रांजेक्शन संभव बनाया है- 6 अरब से ज्यादा- वह आश्चर्यजनक है। यही नहीं, आधार आइडेंटिफिकेशन सिस्टम और डिजिटल पेमेंट्स की बदौलत महामारी के दौरान 30 करोड़ से ज्यादा लोगों तक डिजिटली राहत राशि पहुंचाई जा सकी।
भारत में महामारी के दौरान आबादी के कमजोर और जरूरमंद हिस्से तक मदद पहुंचाने का एक और उदाहरण है गलियों में फेरी लगाने वालों को सस्ता, बिना कुछ गिरवी रखे वर्किंग कैपिटल लोन मुहैया कराना। पीएम स्वनिधि कार्यक्रम ने फेरीवालों को इस तरह बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा, जिससे उन्हें डिजिटल ट्रांजेक्शन करने और अपनी क्रेडिट हिस्ट्री बनाने का मौका मिला। 30 लाख से ज्यादा स्ट्रीट वेंडर इससे लाभान्वित हुए, जिनमें 41 फीसदी महिलाएं थीं।
भारत ने डिजिटाइजेशन के जरिए हेल्थकेयर क्षेत्र का भी रूप बदल दिया। कोविड-19 वैक्सीन की दो अरब डोज देने और उसे प्रमाणित करने में मदद करने वाले कोविन डिजिटल प्लैटफॉर्म को अब और बढ़ाया जा रहा है ताकि उसके जरिए नैशनल इम्यूनाइजेशन प्रोग्रैम को कवर किया जा सके। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन का भी विस्तार किया जा रहा है ताकि लोगों की पहचान करने से लेकर पेमेंट, रेकॉर्ड स्टोरेज और कम्युनिकेशन तक की डिजिटल व्यवस्था की जा सके। इससे फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए पेशंट-लेवल डेटा इकट्ठा करना आसान हो जाएगा। पेशंट्स के लिए भी डिजिटल रेकॉर्ड तक पहुंचना आसान होगा और पेशंट की सहमति से, प्राइवेसी संबंधी सावधानियां बरतते हुए, हेल्थ प्रोवाइडर्स जरूरी आंकड़े शेयर कर सकते हैं, जिससे इलाज की स्थिति सुधरेगी।
पीएम मोदी और दूसरे भारतीय नेता समझते हैं कि देश तभी समृद्ध होगा, जब महिलाओं को अपना आर्थिक भविष्य तय करने का अधिकार होगा। भारत ने जिस तरह से सेल्फ हेल्प ग्रुप्स बनाकर महिलाओं को आजीविका और स्वालंबन में मदद की है, उससे दुनिया बहुत कुछ सीख सकती है। 75 लाख सेल्फ हेल्प ग्रुप्स में 8 करोड़ महिलाओं के जुड़ाव की बदौलत यह दुनिया का सबसे बड़ा कम्युनिटी डिवेलपमेंट प्रोग्रैम है।
भारतीय नेता यह भी जानते हैं कि इनोवेटिव टूल्स का पूरा फायदा तभी मिल सकता है जब लोगों की सामूहिक सहभागिता सुनिश्चित की जाए। प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हमें टेक्नॉलजी चाहिए, लेकिन हमें ऐसे लोग भी चाहिए जो यह बताएं कि क्लाइमेट चेंज का मुद्दा महत्वपूर्ण है। इससे सरकार प्रोत्साहित होती है और इंडस्ट्री उस टेक्नॉलजी में पैसा लगाती है। कार्बन उत्सर्जन कम करने को लेकर भारत की प्रतिबद्धता जबर्दस्त है। लेकिन पीएम की लाइफ स्टाइल फॉर द एन्वायरनमेंट (एलआईएफई) पहल भी कम महत्वपूर्ण नहीं, जिससे पर्यावरण को लेकर जागरूक व्यक्तियों की संख्या बढ़ती है और ऐसे कार्य होते हैं जो वास्तविक प्रगति में योगदान करते हैं।
यूएन महासभा की बैठक
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के मद्देनजर मैं सोच रहा हूं कि भारत का जो योगदान रहा है- दोनों तरह से, जो देश के अंदर हुआ वह भी और जो दुनिया भर में पहुचा वह भी- उससे सीख लेकर कैसे अन्य देश ऐसी दुनिया बना सकते हैं जिसमें हर व्यक्ति चाहे वह कहीं भी रहता हो, एक स्वस्थ और उत्पादक जिंदगी जीने का मौका पाए।
(लेखक बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के को-चेयर और ट्रस्टी हैं)