*राष्ट्र-चिंतन*
*संघ का एजेंट है इलियासी या इलियासी का एजेंट है संघ*
*आचार्य श्री विष्णुगुप्त*
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सरकारी सड़क के गोल चक्कर को घेर कर बैठने वाले और इमामों का संगठन चलाने वाले ऑल इंडिया इमाम ऑगनाइजेशन के अध्यक्ष इमाम उमर अहमद इलियासी वर्तमान में बहुत ही चर्चित है, उनकी चर्चा सिर्फ राजनीति में ही नहीं है बल्कि मुस्लिम पंथ में भी खूब हो रही है। चर्चा होनी भी स्वाभिवक है। आखिर उनके दर पर मोहन भागवत जो पहुंच गये, उमर इलियासी भी मोहन भागवत को राष्ट्रपति करार जो दिया।खासकर मुस्लिम राजनीति भी उबल पड़ी। मुस्लिम राजनीति में उनकी चर्चा कुछ ज्यादा ही हो रही है। अधिकतर मुस्लिम राजनीति के सहचर उन्हें खलनायक और भस्मासुर की उपाधि दे रहे हैं, उन्हें इस्लाम का सत्यानाशी करार दे रहे हैं, कुछ मुस्लिम संगठन तो उन्हें अपशब्द भी कह रहें हैं और न लिखने योग्य गालियां भी बक रहे हैं। जहां तक इमामों के दूसरे संगठनों की बात है तो वे पहले से ही उमर इलियासी के घोर विरोधी हैं और इलियासी को संघ और भाजपा का एजेंट करार देते हैं।
जबकि संघ के लोग भी इलियासी पर बहुत ज्यादा विश्वास नहीं करते है और उसे एक अविश्वसनीय मुस्लिम चेहरा मानते हैं। चूंकि प्र्रसंग मोहन भागवत से जुड़ा है, इसलिए संघ के बड़े-बड़े पदाधिकारी चुप हैं, संघ के बड़े-बड़े समर्थक खामोश है पर सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा हुई है। संघ से अलग अस्तित्व रखने वाले हिन्दू संगठनों और हिन्दू एक्टिविस्टों को मोहन भागवत के उस मस्जिद में जाना जो सड़क के गोल चक्कर को घेर कर बनायी गयी है और कानून-सरकार को जंगल राज की चुनौती देती है, इसके साथ ही साथ उस उमर इलियासी से मिलना पंसद नहीं आया जो न केवल कट्टरपंथी है बल्कि हिन्दुत्व के घर में भेदिये की तरह घुस कर इस्लाम के लिए जिहादी भूमिका निभाता है।
मेरे कहने का अर्थ है कि उमर इलियासी को दोनों तरफ से यानी हिन्दू और मुसलमानों की तरफ से गालियां मिल रही है, विरोध झेलना पड़ रहा है। यह अलग बात है कि उमर इलियासी जैसे लोग गालियां खाने या विरोध होने को भी अपनी जीत समझते हैं। इतना तो निश्चित है कि उनके दर पर मोहन भागवत का पहुंचना इलियासी के लिए बहुत बड़ी बात है, उनकी कुचर्चित शख्सियत को आक्शीजन ही मिला है।
वैसे इलियासी न तो भाजपा और संघ के एजेंट हैं तथा न इस्लाम के भस्मासुर हैं। फिर इलियासी हैं क्या? वास्तव में इलियासी काफिर मानसिकता के पक्के सहचर हैं और इस्लाम के पक्के सहचर हैं। काफिर मानसिकता कया कहती है। इस्लाम के मतानुसार काफिर वैसे लोगों को कहा जाता है जो इस्लाम को नहीं मानते हैं। काफिर से दोस्ती करना, आतंरिक घुसपैठ कर नुकसान पहुंचाना और काफिर की महिलाओं को किसी न किसी प्रकार से अपने हरम का पात्र बनाना आदि मजहबी फरमान है। एक हिन्दू एक्टविस्ट का मत है कि चाहे उमर इलियासी हो या फिर संघ और भाजपा का कोई अन्य मुस्लिम नेता, ये सब सद्भाव या हृदय परिवर्तन से साथ नहीं आते हैं बल्कि अपने मजहबी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आते हैं। उदाहरण के तौर शहनवाज हुसैन का नाम लेकर कहा जाता है कि वह मुस्लिम पत्रकारों और मुस्लिम लोगों से कहता था कि वोट तो इस्लाम के समर्थक पार्टी को ही देना है पर भाजपा में जरूर रहना है, भाजपा की सरकारों का लाभ मजहबी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उठाना है, भाजपा की महिला सदस्यों को इस्लाम के प्रति रूझान पैदा कर मनोरंजन करना है। एक और उदाहरण असम के मुख्यमंत्री हेमंता विस्व शर्मा का दिया जाता है, हेमंता ने एक बार कहा था कि एक बूथ पर सैकड़ों मुसलमान भाजपा के सदस्य थे पर उस बूथ पर भाजपा को वोट नहीं मिले, तो फिर मुसलमान किस मकसद से भाजपा में आते हैं? झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास ने जिस बुथ पर आलीशान और भव्य हज घर बना कर मुसलमानों को सौंपा था उस बूथ पर भाजपा को प्रत्याशित तो क्या बल्कि हतोत्साहित करने वाले मत ही मिले थे, वह भी हिन्दुओं के वोट ही थे। भाजपा खूद हिन्दी क्षेत्रों में जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तथा गैर हिन्दी प्रदेष जैसे कर्नाटक, महाराष्ट, गुजरात आदि में लोकसभा और विधान सभा चुनावों में कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारती है। इस संबंध में भाजपा का अप्रत्यक कहना होता है कि चूंकि मुस्लिम आबादी हमें वोट नहीं करती है इसलिए मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का प्रश्न घाटे का सौदा होता है।
इलियासी का विवादों के साथ नाता बहुत ही पुराना रहा हैं। उनके परिवार को लेकर भी तरह-तरह के प्रश्न उठते रहे हैं। उनके परिवार पर लव जिहाद का भी आरोप लगता रहा है। आप शायद शोयब इलियासी प्रकरण भूल गये होंगे। शोयब इलियासी मौलाना उमर इलियासी के भाई हैं। शोयब इलियासी का एक टीवी प्रोगाम बहुत ही चर्चित था और धमाल मचाता था। शोयब इलियासी की पत्नी हिन्दू थी। शोयब इलियासी की पत्नी की हत्या हुई थी या आत्महत्या थी पर इस पर कुचर्चा बहुत थी। चाकू से पेट को लहूहुलान किया गया था। आरोप था कि पेट को चाकुओं से गोद कर शोयब इलियासी ने अपनी पत्नी की हत्या की थी। खूब बवाल मचा था। शोयब इलियासी कोर्ट से जरूर राहत पा गये थे, सबूतों के अभाव में बच गये थे। पर शोयब इलियासी की शख्सियत अर्स से फर्स मे बदल गयी थी, टीवी सेलिब्रिटी की शोहरत मिट्टी मंें मिल गयी थी। आज भी शोयब इलियासी गुमनामी के भंवर से बाहर नहीं निकले हैं। तथाकथित इस्लामिक स्कॉलर मौलाना कलीम सिद्धीकी का प्रकरण भी उल्लेखनीय है। कहा जाता है कि तथाकथित इस्लामिक स्कॉलर कलीम सिद्दीकी और उमर इलियासी के बीच संबंध गहरे हैं। कलीम सिद्दिकी कौन हैं? कलीम सिद्दिकी भी उमर इलियासी की तरह मौलाना है और इस्लाम के पक्के जिहादी हैं। कलीम सिद्दिकी एक बार मोहन भागवत से न केवल वार्ता की थी बल्कि उनके साथ मंच और बैठक को भी शेयर किया था, शामिल हुआ था। कलीम सिद्दिकी को उत्तर प्रदेश की पुलिस ने धर्मातंरण का दोषी पाया था और हवाला के जरिये पैसा बनाने का आरोप लगाया था। कलीम सिद्दिकी हवाला के जरिया जो पैसा प्राप्त करता था उस पैसे को खर्च हिन्दुओं के धर्मातरंण पर करता था और इस्लामिक जिहाद पर भी खर्च करता था। यूपी की पुलिस ने गिरफ्तार कर कलीम सिद्दिकी को जेल में भी डाला था। कलीम सिद्दिकी के प्रकरण पर मोहन भागवत से भी हिन्दू मतों की नाराजगी हुई थी। मोहन भागवत से सोशल मीडिया पर प्रश्न पूछे गये थे कि जो मौलाना कलीम सिद्दिकी पक्के तौर पर हिन्दुओं का दुश्मन है, कानून तोड़ने का आरोपी है, देश के खिलाफ विदेशी पैसा लेकर साजिश करने का आरोपी है वह अपाके मंच पर कैसे पहुंचा, आपकी बैठक में कैसे पहुंच गया?
कम लोगों को यह जानकारी होगी कि एक बार मुलायम सिंह यादव भी इलियासी से मिलने उसी मंस्जिद पहुंचे थे जिस मस्जिद में इलियासी से मिलने मोहन भागवत पहुंचे थे। मोहन भागवत की गुणगान की तरह ही उसने मुलायम सिंह यादव का गुणगान किया था और मुलायम सिंह यादव को अपना मित्र बताया था। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि मुलायम सिह यादव को मुसलमानों का हितैषी करार दिया था। मुलायम सिंह यादव कहा करते थे कि हमने सैकड़ों हिन्दू कारसेवको को पुलिस की गोलियो से भूनवा दिया पर बाबारी मस्जिद पर आंच तक नहीं आने दी थी।
जब तक संघ ने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का नाम बदल कर मुस्ल्मि राष्ट्रीय मंच नहीं किया तब तक उमर इलियासी जैसे लोग संघ से अलग ही थे। ऐसे लोग कहते थे कि राष्ट्र शब्द इस्लाम का तौहीन करता है। इसलिए जब तक नाम बदला नहीं जायेगा तब तक संघ से जुड़ने का अर्थ इस्लाम की तौहीन है। हार कर संघ ने अपने मंच नाम बदल कर मुस्लिम राष्टीय मंच कर दिया। इसके बाद ही उमर इलियासी जैसे लोग संघ से कथित तौर पर जुडे हैं। अगर संघ से उमर इलियासी जुडे हैं तो वह अपने इस्लामिक शर्तो के साथ जुडे हुए हैं। संघ के साथ निकटता के कारण ही उमर इलियासी के मौलाना संगठन देश भर में फैल गया, उमर इलियासी की शख्सियत रातोरात चमक गयी, तथाकथित लोगों के प्रेरणास्रोत बन गये। उमर इलियासी इस्लाम के पक्के सहचर हैं। इस्लामिक एजेडे से इलियासी को संघ तो क्या अन्य कोई भी नहीं डिगा सकता है।
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