पर्दा प्रथा कभी भी गौरव नहीं रहा यह हमारी नारी मातृ शक्ति के लिए अभिशाप रहा है । प्रदा या घूंघट का वैदिक संस्कृति सभ्यता का कभी भी अंग नहीं रहा । रामायण, महाभारत में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता मंदोदरी ,तारा , रूमा ,कौशल्या ,सुमित्रा, सीता ,सावित्री अनुसुइया जैसी दिव्य नारियां घूंघट करती थी। इसके ठीक विपरीत यह गौरवशाली उल्लेख जरूर मिलता है कि हमारी देश की नारियां राजसभा में हिस्सा लेती थी अपना निर्णायक मत विविध विषयों पर देती थी ,शास्त्रार्थ भी करती थी मदालसा लोपामुद्रा मैत्रेयी गार्गी भारती कुछ ऐसे ही नाम है, केकेयी जैसी महारानी तो युद्ध कला में भी निपुण थी दशरथ के प्राण संग्राम में बचाए थे। वही भारतीय स्वाधीनता संग्राम की बात करें तो कित्तूर की रानी चेन्नम्मा, रानी लक्ष्मीबाई दुर्गा भाभी, नीरा आर्या जैसे नाम है,जो पर्दा नहीं करती थी जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया घूंघट की कैद में रहती तो क्या वह मां भारती की सेवा कर पाती ।सनातन वैदिक वांग्मय संस्कृति शास्त्रों में कहीं भी पर्दा प्रथा का उल्लेख नहीं मिलता। इतना ही नहीं अर्वाचीन पौराणिक मान्यताओं मैं भी घुंघट/पर्दा प्रथा का कोई उलेख नहीं मिलता नवदुर्गा में किसी भी पूजनीय देवी का पर्दे के रूप में उनका चित्रण नहीं किया गया है। पर्दा प्रथा मुगल आक्रांतायो की देन है, जो मध्य काल से फली फूली हिंदू समाज ने अपनी बहन बेटियों मुगलो से बचाने के लिए उनकी गिद्धदृष्टि से बचाने के लिए अपनी बहन बेटियों को घूंघट में कैद करना जरूरी समझा लेकिन ना अब मुगलों मलेच्छो का राज है फिर आज हमारी बहन बेटी घूंघट में कैद क्यों? लज्जा शालीनता सुशील स्वभाव ही नारी का आभूषण है। उसकी तेजस्विता उसका पराक्रम ही उसका रक्षक है।
आज सौभाग्य से नवरात्रि के प्रथम दिवस जिसे शक्ति की आराधना का पर्व माना जाता है वैदिक ग्राम इमलिया में दुर्लभ शारद यज्ञ के अवसर पर सैकड़ों की संख्या में गांव इमलिया की मातृशक्ति बहन बेटी बहुओं ने वेद के संकल्पपरक 5 मंत्रों के माध्यम से आहुती लगाकर घूंघट को त्यागने का संकल्प लिया। यह दिव्य संकल्प पूज्य स्वामी चित्तेश्वरानन्द ,यज्ञ के ब्रह्म स्वामी मोहन देव जी ने दिलवाया इस कुप्रथा को यज्ञ अग्नि में भस्म कर दिया इतना ही नहीं उपस्थित पुरुष शक्ति ने संकल्प लेने वाली महिलाओं के संबंधियों ने भी उनका उत्साहवर्धन किया कि वह कुप्रथा से मुक्ति में उनके साथ है सभी मातृशक्ति को घूंघट से मुक्ति का संकल्प दिलाया गया। सच्चाई तो यह है महिला अपनी स्वेच्छा से घूंघट नहीं करती पुरुषों का प्रत्यक्ष परोक्ष दबाव रहता है लेकिन जब हम अपने अतीत के वैदिक कालीन इतिहास को देखते हैं तो महिलाएं घुंघट में कैद नहीं थी वह सर पर कपड़ा रखकर सभाओं में हिस्सा लेती थी लेकिन घूंघट नहीं करती थी। इस अवसर पर ग्राम इमलिया के समस्त श्रद्धालु जन सैकड़ों अतिथि उपस्थित रहे। भव्य वैदिक कलश यात्रा भी मातृशक्ति के द्वारा निकाली गई।
नौ दिवसीय ग्राम इमलिया के अनुष्ठान में अनेकों ऐसे दिव्य संकल्प अनेकों ऐसी कुप्रथा से नारी शक्ति को मुक्ति दिलाई जाएगी सुधारवादी संगठन आर्य समाज के माध्यम से ,जो आज भी नारी के गौरव उसके सम्मान को ग्रहण लगा रहे हैं, आप सभी इस अनुष्ठान में सादर आमंत्रित हैं।
आर्य सागर खारी✍✍✍✍