इस बंधन को अटूट करें
तू देख नहीं सकता मुझको अपने भौतिक संसाधन से।
आंखें कुछ दूरी तक काम करें अपने सीमित साधन से।।
मैं दिव्य चक्षु तुझको देता, पार्थ !देख सके तो देख जरा।
क्या है मेरा योग -ऐश्वर्य ? तू ध्यान लगा कर देख जरा।।
मेरी दिव्य दृष्टि पाकर अर्जुन ! अपने सारे संशय शूल मिटा।
जो भी इसको पा लेता है वह संसार में बता कब कहां गिरा ?
आध्यात्मिक अनुभव होती है यह दिव्य दृष्टि कुछ और नहीं।
इसके अनुभव से ना बच सकता बिन देखे कुछ और नहीं।।
मैं अग्निमय शक्ति बनकर जीवन की चिंगारी विकसाता हूँ।
पास मेरे जो भी आते, पथ -प्रदर्शक उनका बन जाता हूँ।।
मुझमें मृत्यु का अंश नहीं, नियामक फिर भी मैं ही उसका।
संसार- चक्र मुझसे चलता, पथ निर्धारक मैं ही उसका ।।
मैं दिव्य तत्व का प्राण हूँ अर्जुन! अग्निमय सार भी मैं हूँ।
मैं ही विधायक और नियामक जीवन का आधार भी मैं हूँ।।
मत मानो मिथ्या मत पन्थों को जो वेदों का निंदन करते।
सच समझो सन्मार्गी शास्त्रों को जो वेदों का वंदन करते।।
चला-चली का खेल चराचर में चंगुल में चौपाये दोपाये भी।
मृत्यु बनी शिकारी फिरती , संग साथ शिकंजा लाई भी।।
हैं अगणित सूर्य – मंडल उस सत्यस्वरुप सृष्टि – कर्ता के।
ना दिखला सकता कोई रूप हमें सृष्टि के पालन कर्त्ता के।।
वह देवाधिदेव हिरण्यगर्भ हमारा जनिता और विधाता है।
सृष्टि उसकी रचना है, कहता वेदों का हर कोई ज्ञाता है।।
है सुदर्शन चक्र घूम रहा, सारी सृष्टि का उसी की कृपा से।
सृष्टि में जो भी शुभ होता, सब होता उसी की कृपा से।।
जिस के बंधन से बंधे हुए हम , वह बंधु जगत विधाता है।
बस बंधन में उसके बंधने से, हर कोई मोक्ष पा जाता है।।
उस जनिता और विधाता से, हम प्रेम करें और बंधे रहें।
इस बंधन को अटूट करें, निर्भय ओर लक्ष्य की बढ़ते रहें।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य