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उगता भारत न्यूज़

चेतन देवों का सत्कार व श्रद्धापूर्वक सेवा-शुश्रूषा करना सच्चा श्राद्ध –तर्पण —– प्रो.डॉ.निष्ठा विद्यालंकार

यज्ञमय जीवन ही विशेष सुख का आधार — प्रो. डॉ व्यास नंदन शास्त्री वैदिक, बिहार

महरौनी ,ललितपुर। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्त्वावधान में विगत 2 वर्षों से अनवरत संचालित और मंत्री शिक्षक आर्य रत्न लखन लाल आर्य के द्वारा आयोजित आर्यों का महाकुंभ में दिनांक 23 सितंबर, 2022 दिन शुक्रवार को “”देवपूजा, संगतिकरण और दान “” विषय पर सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान् प्रो.डॉ .व्यास नंदन शास्त्री बिहार ने कहा कि भारतीय वैदिक संस्कृति का प्राण यज्ञ है , इसीलिए हमारे सभी कार्य यज्ञ द्वारा संपादित होते हैं। युग प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती ने यज्ञ के प्रसंग को लेकर अपने वेद भाष्यों, सत्यार्थ प्रकाश, संस्कार विधि, पंचमहायज्ञ विधि आदि पुस्तकों में विशेष स्थान दिया है। महर्षि दयानंद की डिण्डिम उद्घोषणा है,-होन करना अत्यावश्यक है, आर्य वर ऋषि महर्षि ,राजे महाराजे बड़े-बड़े यज्ञ करते थे तब हमारा देश सुखों से पूरित और रोगों से रहित था ,अभी हो तो वैसा ही हो जाए।
विषय प्रवेश करते हुए डॉक्टर शास्त्री ने कहा कि यज्ञ शब्द यज् धातु से बना है, जिसका अर्थ है देवपूजा ,संगतिकरण और दान।
जो देते हैं ,सत्योपदेश करते हैंऔर द्यु लोक में रहते हैं वे देव कहाते हैं। ये 33 कोटि अर्थात् 33 प्रकार के हैं जिनमें 8 वसु, 11 रुद्र 12 आदित्य इंद्र -बिजली ‌ और प्रजापति-यज्ञ । इनका एक साथ सत्कार आहुतियों के द्वारा किया जाता है। संगति करण में सुगंधित ,पुष्टिकारक , मिष्ट और रोगनाशक सामग्रियों को मिलाया जाता है और यज्ञशाला में आबालवृद्ध बैठकर दान के रूप में स्वाहा के साथ आहुति देते हैं।
आर्य जगत् की सुप्रसिद्ध विदुषी डॉ .निष्ठा विद्यालंकार ने इसी विषय को लेकर चेतन देवताओं में माता ,पिता , आचार्य, अतिथि ,विद्वान आदि का श्रद्धा पूर्वक सेवा द्वारा उन्हें तृप्त करने को श्राद्ध -तर्पण बताया। उन्होंने समाज में चल रही रूढ़िवादिता पर विशेष प्रहार करते हुए इन्हें निषेध बताया। विशेषकर पितृ यज्ञ को चेतन देवताओं के सत्कार का आधार बताया। तथा ,अपने जीवित पितरों अपने माता-पिता , नाना-नानी,दादा-दादीआदि बड़े -बुजुर्गो का प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक सेवा करते हुए श्राद्धर्पण और पिंडदान करने की सलाह दी।
संगतिकरण पर कहा कि जीवन में हमेशा उत्तम संगति करनी चाहिए क्योंकि यही हमें सद्गुणों के मार्ग को प्रशस्त करता है। सत्संगति ही मानव जीवन को महान् बनाता है।
कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करने वालों में प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. कपिल देव शर्मा, दिल्ली, पंडित पुरुषोत्तम मुनि वानप्रस्थ महरौनी, वेद प्रकाश शर्मा बरेली, अनिल कुमार नरूला, दिल्ली —+
कार्यक्रम की शुरुआत ,कमला हंस,ईश्वर देवी और अदिति आर्या के सुमधुर भजनों से हुई जिन्हें सुनकर श्रोता गण मंत्रमुग्ध हो गए।
कार्यक्रम का संचालन मंत्री आर्य रत्न शिक्षक लखनलाल आर्य ने किया वहीं प्रधान पुरुषोत्तम मुनि वानप्रस्थ ने सबके प्रति धन्यवाद व आभार जताया।

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