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आज का चिंतन

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा श्रीलंका की अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में शोधनिबंध प्रस्तुत ! संस्कृत भाषा सर्वाधिक सात्त्विक ! – शोध का निष्कर्ष  

     भाषा अभिव्यक्ति और परस्पर संवाद का प्राथमिक साधन होने के कारण हमारे द्वारा बोली जा रही भाषा हमारे जीवन का एक बडा अंग होती है । हमारी मातृभाषा कौन सी होनी चाहिए, यह हमारे हाथ में नहीं है; परंतु सात्त्विक भाषा सीखना हमारे हाथ में हैं । शिक्षा संस्थाएं अपने पाठ्यक्रम में भाषा का चयन करते समय भाषा की सात्त्विकता का प्रथम मानदंड रख सकते हैं । शोध हेतु चयनित 8 राष्ट्रीय और 11 विदेशी भाषाओं में से ‘संस्कृत’ भाषा सर्वाधिक सात्त्विक स्पंदन प्रक्षेपित करती हैं, ऐसा शोध द्वारा निकाला गया निष्कर्ष महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने प्रस्तुत किया । वे श्रीलंका में ‘दि नाइंथ इंटरनेशनल कॉन्फरेन्स ऑन सोशल साइन्सेस, 2022’ इस अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में बोल रहे थे । उन्होंने ‘विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा और उनकी लिपि के पीछे का दृष्टिकोण’, यह शोधनिबंध ऑनलाइन प्रस्तुत किया । इस परिषद का आयोजन श्रीलंका के ‘दि इंटरनेशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ नॉलेज मैनेजमेंट’ ने किया था । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले इस शोधनिबंध के लेखक तथा श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं ।

 श्री. शॉन क्लार्क ने आगे कहा कि, हम पर और ‘जिनके साथ हम संवाद करते हैं वे’ उन पर भी अपनी भाषा के स्पंदनों का परिणाम होता है । व्यापक स्तर पर किसी समाज की प्रमुख भाषा का वहां की संस्कृति पर परिणाम होता है । भाषा ‘उसके स्पंदन और उनका व्यक्तियों पर होनेवाला परिणाम’ में कैसे भिन्नता होती है, यह स्पष्ट करने के लिए श्री. क्लार्क ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा ऊर्जा एवं वलय मापक उपकरण तथा सूक्ष्म परीक्षण के माध्यम से किए गए प्रारंभिक निरीक्षणों की जानकारी दी । पहले निरीक्षण में ‘सूर्य पूर्व दिशा में ऊगता है और पश्चिम दिशा में अस्त होता है’, यह एक ही वाक्य 8 राष्ट्रीय और 11 विदेशी भाषाओं में भाषांतरित किया गया । प्रत्येक भाषा के वाक्य का अलग प्रिंट निकाला गया । उसके पश्चात प्रत्येक प्रिंट में विद्यमान सूक्ष्म ऊर्जा का अध्ययन ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ के माध्यम से किया गया । देवनागरी लिपिवाली भाषाओं में अन्य भाषाओं की तुलना में सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी । इसके विपरीत अन्य भाषाओं में नकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी । संस्कृत भाषा के वाक्य के प्रिंट में सर्वाधिक सकारात्मकता दिखाई दी । उसके पश्चात मराठी भाषा में सकारात्मकता थी । दूसरे निरीक्षण में संगणक में स्थित सामान्य अक्षरों की (फॉन्ट की) तुलना में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वार बनाए गए सात्त्विक अक्षरों में (फॉन्ट में) 146 प्रतिशत अधिक सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी ।

        तीसरे निरीक्षण में उक्त वाक्य का अंग्रेजी, मंडारिन (चीनी भाषा) और संस्कृत में ध्वनिमुद्रण किया गया । मंडारिन और अंग्रेजी भाषा का ध्वनिमुद्रण सुननेवालों पर इसका नकारात्मक परिणाम हुआ । उनमें स्थित नकारात्मक ऊर्जा बढी और सकारात्मकता नष्ट हो गई । इसके विपरीत उन्होंने संस्कृत वाक्य का ध्वनिमुद्रण सुना, तब सुननेवाले व्यक्ति की नकारात्मकता घट गई और सकारात्मक वलय निर्माण हुआ ।

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