प्रायः लोगों को पता है 1875 में महाराष्ट्र प्रांत मुंबई गिरगांव मोहल्ला में डॉ. मणिकराव के घर ऋषि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की थी | आखिर आर्य समाज नाम ऋषि दयानंद ने क्यों रखा ? जवाब बड़ा सीधा है, ऋषि ने अपने गुरु विरजानंद के शरण में रहकर जाना | वेद, वैदिक धर्म तथा परमात्मा को,जो अब तक लोग भूल चुके थे, वैदिक धर्म व परमात्मा को जानने की बात कहाँ थी ।
ऋषि दयानंद का मात्र उद्देश्य था आर्य समाज नामी संस्था के माध्यम से धरती पर मानव मात्र को वेद की सच्चाई को बताना, विशेषकर भारत के लोग जिस सत्य से विमुख हो चुके थे | मिट्टी के खिलौनों को ईश्वर मान रहे थे, रामायण, महाभारत, गीता, पुराणों तथा कुरान, बाईबिल आदि ग्रंथों को धर्मग्रंथ और उस पर अमल करने वालों को धार्मिक या धर्मात्मा मानने लगे थे
| ऋषि दयानंद ने अपने काल में डंके की चोट से कहा, इन ग्रंथों को जाली ग्रंथ कहना चाहिए | इसपर चलने वाले कभी धार्मिक नहीं बन सकते और न ही यह अपने आप में कोई धर्म है, धर्म अगर है तो सत्य सनातन वैदिक धर्म है और धर्म ग्रंथ अगर है तो मात्र वेद ही है | इसी के ही प्रचार-प्रसार के लिए आर्य समाजियों को जिम्मेदारी ऋषि दयानंद ने सौंपी, अब समाजियों में से अपनी जिम्मेदारी को कौन कितना निभा रहे हैं वह तो दुनिया देख रही है |
आर्य समाज ऋषि दयानंद का सच्चा स्मारक है, क्योंकि इसकी रीति-नीति, पूजा-पद्धति, सिद्धांत, दार्शनिक मान्यताएं आदि सभी मत-मतान्तरों की विचारधाराओं से बिल्कुल अलग है | क्योंकि इसका मूल आधार ही सत्य है, यथार्थ है, तर्कपूर्ण है, अंधविश्वास, ढोंग, पाखंड आदि के लिए आर्य समाज में कोई भी जगह नहीं | सही पूछिए तो आर्य समाज सत्य सनातन वैदिक धर्म का उद्धारक व प्रचारक है, इसी कारण यह संगठन, मत, पंथ, मजहब या कोई संप्रदाय नहीं है |
यह समाज वैचारिक चिंतन और वैचारिक क्रांति का अग्रदूत है, इसमें पीर, पैगंबर, देवदूत, अवतारवाद तथा मूर्ति पूजा के लिए कोई स्थान नहीं है | किंतु परमात्मा की बनाई मूर्ति तथा चेतन की पूजा करने की अनुमति है, साथ ही वैदिक विचार, चिंतन, धर्म, भक्ति और परमात्मा का सीधा और सच्चा मार्ग मात्र आर्य समाज के माध्यम से धरती पर रहने वाले मानव मात्र को बताया जाता है | संसार की सर्वोत्तम विचारधारा केवल आर्य समाज के पास है, इसके सिद्धांत, आदर्श एवं मंतव्य सदैव प्रासंगिक रहे हैं और रहेंगे |
आर्य समाज की स्थापना दिवस के पावन पर्व पर आर्य लोगों को ऋषि ऋण से उऋण होने के लिए ऋषि दयानंद का अनुगामी बनने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए | पहले अपने को बनाए फिर “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” | वेद के अनुसार अपने को आर्य एवं अपने परिवार को आर्य बनाना पड़ेगा, फिर कहीं आर्य समाज स्थापना दिवस मनाना सफल हो सकता है | क्योंकि स्वयं अपने परिवार को आर्य बनाए- बिना औरों को बनाना या कहना अपने आप में धोखा है, परिवार को आर्य बनने को कहना या आर्य समाज स्थापना दिवस मनाना अपने आप में धोखा है |
आर्य समाज स्थापना दिवस हम लोगों के लिए जागृति का हेतु बने, सब आर्यजनों को आत्मचिंतन कर परस्पर मतभेदों को, विवादों को, स्वार्थपरता और अधिकारियों की दौड़ को तिलांजलि देकर ऋषि मिशन के लिए सेवक बन उठ खड़ा होनाचाहिए, जिस उद्देश्य के लिए ऋषि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की थी |
वैदिक सिद्धांतों की रक्षा करना, उन्हें प्रचारित व प्रसारित करना हम सबका पुनीत कर्तव्य है, क्योंकि आज संसार को इस विचारधारा की बड़ी जरूरत है |
आज प्रगति के नाम से ढोंग, पाखंड, अंधविश्वास, अश्लीलता, अनैतिकता और धर्म के नाम से हिंसा आदि कुकृत्य निरंतर बढ़ते ही जा रहा हैं | अगर इसे रोकने की क्षमता है तो मात्र ऋषि दयानंद की ही विचारधारा के प्रचार-प्रसार के माध्यम से रोकना संभव है ।
आज नाना पंथ, संप्रदाय, मजहब बढ़ते जा रहे हैं, संत, महंत, महाराजा, ज्ञानी और गुरुओं की भीड़ फैल रही है | धर्म, भक्ति और परमात्मा के नाम पर व्यापार हो रहा है | भक्ति के नाम तथा योग के नाम पर ढोंग व प्रदर्शन बढ़ रहा है और सच्ची भक्ति घट रही है, धर्म के नाम पर संप्रदाय हावी हो रहे हैं | शब्दों से तो धर्म का प्रचार खूब हो रहा है परंतु आचरण व्यवहारिक जीवन से धर्म घट रहा है और देश की जो अपनी विशिष्ट पहचान थी उसे तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और उसमें विकृत किया जा रहा है | वैचारिक प्रदूषण का जहर समूची भारतीय जीवन पद्धति को विषाक्त और विकृत करता जा रहा है शायद दयानंद के कार्यकाल में इतनी भयावह स्थिति न रही हो जितनी कि आज है ।
ऐसी दशा में अगर समाधान है तो केवल आर्य समाज के पास ही है, क्योंकि आर्य समाज मानवतावादी, राष्ट्रीय एकता और अखंडता का प्रचार आर्य समाज के जन्म काल से ऋषि दयानंद ने किया है और यही जिम्मेदारी आर्य समाजियों पर देव दयानंद ने दी है | क्योंकि इसके जो सिद्धांत है और आदर्श है इनमें तर्क है,सृष्टि क्रम के अनुकूल है | आज विश्व में देश, धर्म, संस्कृति, परंपराओं का सही स्वरूप कोई दे सकता है तो मात्र आर्य समाज ही है |
किंतु दुख के साथ हमें लिखना पड़ रहा है कि दयानंद के अनुयायी ही वैदिक सिद्धांतों को अपने अमल में नहीं लाते | आज यत्र-तत्र दलगत राजनीति आर्य समाज में भी होने लगी है, आर्य समाज में अब योग्यता के बल पर नहीं किंतु रुपयों के बल पर अधिकारी बनाए जा रहे हैं | भले ही उन्हें वैदिक सिद्धांतों का एक अक्षर भी न आता हो, मात्र वोट की राजनीति है नोटों के वल पर | किसी ने खूब कहा है:-
“बड़े शौक से सुन रहाथा जमाना,
हम ही सो गए दास्तां कहते कहते ||”
आज आर्य कहलाने वाले अपने उद्देश्य तथा कर्तव्य से भटक रहे हैं, मात्र विवाद व स्वार्थ में आर्य समाज की शाख को मिट्टी में मिलाया जा रहा है ।
आर्य समाज का जो मुख्य कार्य वेद प्रचार तथा पाखंड के खिलाफ आवाज उठाना था, अज्ञान और अंधकार को लोगों से दूर करने के लिए शास्त्रार्थ के माध्यम से सत्यासत्य का निर्णय करना था | राष्ट्रीयता का प्रचार प्रसार करना था, इस्लाम मत,ईसाई मतों से लोहा लेने का था, वह सब गौण हो गए और जो गौण कार्य था उसे ही अपनाया गया है | जैसे दवाखाना चलाना, स्कूल खोलना, शादी विवाह में बारात टिकाना, अनैतिक तरीके से आर्य समाज भवन को किराए पर चलाना आदि ही मुख्य कार्य हो गया है | शायद ही कोई समाज हो जहां विवाह के बाराती शराब न पीते हो, आर्य समाज में अगर यह काम बंद होता तो मेरे विचार से शराबबंदी कार्य को बल मिलता |
पद लोलुपता एवं परिवारवाद के कारण प्राय: आर्य समाज में झगड़ा और विवाद बना रहता है | शायद ही कोई आर्य समाज ऐसा हो जहां विवाद न हो, कुछ प्रांतीय सभाओं की ओर दृष्टिपात करने से पता चल सकता है | कुछ प्रांतों में सभा की संपत्ति का ही विवाद चल रहा है, कहीं-कहीं नोटों के बल पर प्रांतीय सभाओं पर लोग काजिब है |
बड़े अधिकारियों को प्रचार-प्रसार की कोई चिंता ही नहीं,वे तो मात्र बने बनाये मंच पर फूलमाला पहनने के लिए पहुंचना ही अपना कर्तव्य मानते हैं | कुछ ही लोग हैं जो वैदिक धर्म प्रचार को या आर्य समाज के उद्देश्य को पूरा करने के लिए आर्य समाज के प्रचारकों, उपदेशकों को पाल रहे हैं, जो आर्य समाज के छोटे-छोटे कार्यकर्ता है | लोगों से संपर्क बनाकर कुछ संग्रह करते हैं और आर्य समाज के उपदेशकों व प्रचारकों को बुलाते हैं, सिर पर कफन बांधकर प्रचारक, उपदेशक होली, दिवाली का भी ख्याल न रखकर कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु चल पड़ते हैं |
आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में वृद्धि हो तभी लोग आर्य समाज को जान पाएंगे, भारत में अभी ऐसे भी प्रांत है जहां के लोग आर्य समाज को जानते तक नहीं | जहां आर्य समाज को लोग नहीं जानते वहां जाकर आर्य समाज का प्रचार करने से ही देव दयानंद का सपना साकार हो सकता है, एवं “कृण्वंतो विश्वमार्यम्” उद्घोष साकार हो सकता है | इसी उद्देश्य से ऋषि ने आर्य समाज की स्थापना की थी | इन उद्देश्यों की पूर्ति हम लोग उस समय कर सकेंगे जब मिल बैठकर ऋषि की भावना को हृदय में रखकर अपने स्वार्थ,अहंकार एवं पद लोलुपता को छोड़ निष्काम भाव से प्रचार-प्रसार में संलग्न हो जाएंगे |
हम सबके सामने इस समय बड़ी चुनौती है, आर्य समाज की विचारधारा, आदर्श, सिद्धांत तथा अस्तित्व की रक्षा करना । यह लेख भी ऋषि सिद्धांत रक्षक मासिक पत्रिका में मेरे द्वारा सम्पादकीय लेख निकल चूका है | आज आप लोगों को याद दिलाने के लिए अपनी पुस्तक से उठाकर दिया | महेन्द्र पाल आर्य 20/9/22
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