कृष्ण जी द्वारा ओ३म का गुणगान
तू मेरा अनुसरण कर अर्जुन- यह अर्जुन को था बतलाया।
आदर्श – उद्देश्य क्या जीवन का? -खोलकर था समझाया।।
‘मैं’ और ‘मेरा’ का गीता में जहां कहीं उल्लेख हुआ।
वहां – वहां श्री कृष्ण जी ने ईश्वर का ही उपदेश दिया।।
‘मैं’ और ‘मेरा’ के द्वारा भी कोई ‘अहं भाव’ नहीं गीता में।
शालीनता और सौम्यता का विनम्र भाव है गीता में ।।
ईश्वर नहीं कहा स्वयं को कृष्ण ने सारी गीता में।
ना स्वयं को अवतार बताते कृष्ण जी सारी गीता में।।
ना निराकार बतलाया स्वयं को ना ही कहा अंतर्यामी ।
ना कहते कहीं सर्वव्यापक ना कहते जगपालक स्वामी ।।
ना बतलाया स्वयं को परमपुरुष ना कहीं पर जगदीश्वर।
ना कहीं कहा ब्रह्म स्वयं को, ना कहीं पर अखिलेश्वर।।
ना अपनी चर्चा करी कहीं पर ना अपना गुणगान किया।
कदम – कदम पर कृष्ण जी ने ईश्वर का सम्मान किया।।
ब्रह्मचारी थे कृष्ण जी और ब्रह्म में रमण किया करते।
वह सोमरस के रसिया थे , आनंद उसी का लिया करते।।
विलक्षण शक्ति थी उनमें जिस कारण वह सम्मानित थे।
ना उनमें ऐसे दुर्गुण थे जो लोक के द्वारा निन्दित थे।।
पुजारी वह मानवता के थे और निर्भीक दुष्ट संहारी थे।
लोकराज के संस्थापक थे , शुद्ध सात्विक आहारी थे।।
भारत की सात्विक संस्कृति के वह राजदूत सुयोग्य बने।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संवाहक और सपूत सुयोग्य बने।।
वह ओ३म के जप में डूबे रहकर , सब कर्मों को करते थे।
जीवन में मिला जो दीन दुखी उसकी मन से सेवा करते थे।।
गीता का एक – एक शब्द हमें संदेश निराला देता है।
थककर नहीं बैठेंगे जग में हर शब्द उजाला देता है।।
अपने लोगों से कहा माधव ने – ‘आओ मेरे पीछे चलो।’
ऐसा कह संदेश दिया कृष्ण ने- ‘ओ३म’ जाप करते चलो।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत