अकर्मण्यता को लात मारी
थी वेदों में श्रद्धा कृष्ण की, यह गीता बतलाती हमें।
वेदों में सामवेद ‘मैं’ हूँ – कृष्ण का कथन बतलाती हमें ।।
जीवन था उनका वेदमय , सब वेद उन्हें कंठस्थ थे।
वेद के उपदेश और संदेश सब कृष्ण के ह्रदयस्थ थे।।
ना किया कोई आचरण , जो वेद के प्रतिकूल हो।
संकल्प ले जीवन बिताया , जो वेद के अनुकूल हो।।
मत मानिये संभव कभी , चलेगी उल्टी गीता वेद के।
ऋषियों ने समर्पित होके मन से गाए गीत वेद के।।
संदीपन ऋषि के पास जाकर, शिक्षा ग्रहण की कृष्ण ने।
ब्रह्मचर्य – व्रत धारकर , शिक्षा पूर्ण की थी कृष्ण ने।।
वैदिक दृष्टिकोण हमारा ही विज्ञान के अनुकूल है।
दिया ज्ञान संदीपन ने वही जो विज्ञान के अनुकूल है।।
कब विज्ञान के सिद्धांत का उपहास कृष्ण ने किया ?
कहां वेद के सिद्धांत का कहीं त्रास कृष्ण ने किया ?
जो भी किया सब वेद से आदेश लेकर ही किया।
वेद से उपदेश लेकर था संसार का कल्याण किया।।
अकर्मण्यता को लात मारी पुरुषार्थ को दी प्रधानता।
दूर किया आलस्य को , दी हमें वीरता की सभ्यता।।
जो भी किया – था वह वीरता और शौर्य के अनुकूल ही।
सिद्धांत उनके थे सभी , विज्ञान के अनुकूल भी।।
थे वेद प्रतिकूल मत जितने भी प्रचलित देश में।
खंडन किया गीता ने उनका , फूंका बिगुल देश में।।
पाखण्ड – खण्डिनी बनी और सद्विचार की प्रसारिका।
तर्क की है साधिका और विज्ञान की प्रचारिका ।।
जिसने भी समझा बोझ जीवन उसको कराती बोध है।
जिसने भी समझा तत्व -दर्शन , उसको कराती शोध है।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य