आयें ! हम हिन्दी की जगह आर्यभाषा शब्द का प्रयोग करें और आर्यभाषा दिवस मनाएं —– आचार्य अशोकपाल आर्य
महरौनी (ललितपुर)। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से अनवरत चल रहे आर्यों का महाकुंभ के संयोजक आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा
आयोजित कार्यक्रम में दिनांक १४सितम्बर ,२०२२ को विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर आचार्य अशोकपाल आर्य, प्रवक्ता आर्य महासंघ, ने कहा कि हम सभी को हिंदू ,हिंदी और हिंदुस्तान की जगह पर आर्य ,आर्य भाषा और आर्यावर्त का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि हमारे चारों वेदों ,ब्राह्मण ग्रंथों ,आरण्यकों उपनिषदों, षड्वेदांग , षट्शास्त्रों ,,रामायण, महाभारत ,गीता और प्रचलित पुराणों में कहीं भी हिंदू शब्द नहीं मिलता । हिंदू की भाषा हिंदी और हिंदुस्तान की भाषा को भी लोगों ने हिंदी कहा जबकि हम आर्य हैं तो हमारी भाषा भी आर्य भाषा होगी और इस देश का पहला नाम आर्यावर्त है ।
उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने सत्यार्थ प्रकाश , ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका , संस्कार विधि ,गोकरुणानिधि आर्याभिविनय आदि अपने ग्रंथों में कहीं भी हिंदी शब्द का प्रयोग नहीं किया है।उन्होंने वेदों के आधार पर आर्य भाषा को स्वभाषा के स्थान में प्रयोग किया और इसी भाषा के प्रयोग से हमारी देश की गरिमा और महिमा बढ़ेगी क्योंकि वेदानुसार एवं अन्य सभी धार्मिक ग्रंथों में हमारा नाम आर्य आया है इसलिए हमारी भाषा भी आर्य भाषा होगी ।
इस सन्दर्भ में महर्षि दयानंद सरस्वती ने उद्घोषणा की है —
आर्य भाषा के द्वारा ही संपूर्ण देश को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है परंतु कहीं-कहीं लोगों ने महर्षि दयानंद के इस कथन में हिंदी शब्द का प्रयोग किया परंतु उनके लेखों एवं प्रवचनों को देखने के बाद कहीं भी इस शब्द का प्रयोग नहीं मिलता इसीलिए हमें गर्व के साथ आर्य,आर्य भाषा और आर्यावर्त कहकर अपने को गौरवान्वित करना चाहिए।
अन्य वक्ताओं में प्रो.डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा महाराष्ट्र ने कहा कि हिंदी का प्रयोग हमें अवश्य करना चाहिए क्योंकि इससे हमारी राष्ट्रभाषा सुरक्षित होगी ।विदेशियों ने पहले संस्कृत पर कुठाराघात किया।तत्पश्चात् अब हिंदी पर भी यह षड्यंत्र चल रहा है इसीलिए हमलोग हिंदी में लिखने का अभ्यास करें ।प्रायः ऐसा देखा जाता है कि लोग जन्म दिवस की शुभकामना या अन्य किसी तरह की शुभकामना में हिंदी का प्रयोग नहीं करते और अंग्रेजी में शुभकामना देने में गौरव महसूस करते हैं जो देश हित में नहीं है। यदि हम अंग्रेजी बोलते हैं तो अंग्रेजी का ही प्रयोग करें और हिंदी बोलते हैं तो हिंदी का ही प्रयोग करें उसमें अंग्रेजी को नहीं घुसेड़े अन्यथा हमारी पहचान खो जाएगी ।
इसी क्रम में आर्य भाषा और देवनागरी लिपि में प्रयोग करने हेतु प्रो.डॉ.व्यास नन्दन शास्त्री वैदिक बिहार, अनिल कुमार नरूला दिल्ली, प्रो.डॉ . वेद प्रकाश शर्मा बरेली, पंडित पुरुषोत्तम मुनि वानप्रस्थ , चंद्रकांता आर्या चंडीगढ़, संतोष सचान, विमलेश कुमार सिंह आदि ने भी प्रस्तुत विषय पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम से जुड़कर सैकडों विद्वानों व सारस्वत अतिथियों सहित अनेक युवक लाभान्वित हो रहे हैं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में कमला हंस,दया आर्या, ईश्वर आर्या अदिति आर्या के भक्ति भजनों की प्रस्तुति हुई जिनसे श्रोतागण मंत्रमुग्ध हुए।
कार्यक्रम का संचालन आर्य रत्न शिक्षक लखनलाल आर्य ने किया और पुरुषोत्तम मुनि वानप्रस्थ ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया।