मनुष्य जीवन में उड़ने के लिए आध्यात्मिक सामाजिक और पारिवारिक तीन पंख.. डॉ अजय आर्य

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“वैदिक जीवन जीने का ढंग,”
द्विदिवसीय व्याख्यानमाला

नन्हे बच्चों ने किया शांति पाठ

माता-पिता को जीते जी तृप्त करें

महरौनी (ललितपुर) । महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्यसमाज महरौनी जिला ललितपुर के तत्वावधान में आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य के संयोजकत्व में आयोजित “वैदिक जीवन जीने का ढंग” विषय पर दिनांक 16 सितंबर 2022 को गुरुकुल प्रभात आश्रम के यशस्वी स्नातक आचार्य डॉ अजय आर्य ने कहा-उड़ने के लिए पंख की जरूरत होती है। पंखों में संतुलन आवश्यक होता है। मनुष्य के जीवन में भी आध्यात्मिक सामाजिक और पारिवारिक तीन पंख है। जीवन को अध्यात्म रस से भरते रहना चाहिए। इसके लिए प्रतिदिन संध्या जाप सत्संग सहयोग आदि का नियम बनाना चाहिए। आचार्य ने चुटकी लेते हुए कहा “जीवित पिता से दंगा दंगा मरने बात पहुंचाए गंगा”,
जो सत्य तक ले जाए उसे श्रद्धा कहते हैं श्रद्धा से किए जाने वाले कार्य को श्राद्ध कहा जाता है। तर्पण शब्द तृप्ति से बना है। जो कृत्य माता-पिता या बुजुर्गों को तृप्त करें वह तर्पण है। माता पिता की सेवा करना उनका सहयोग करना उनकी अपेक्षाओं को पूरा करना तर्पण है। सत्यार्थ प्रकाश के अनुसार श्राद्ध और तर्पण पितृ यज्ञ के भाग हैं। अगर आप किसी बड़े बुजुर्ग की सेवा करते हैं तो अच्छी बात है। सेवा के साथ सुश्रुशा जुड़ी हुई है। उसका अर्थ होता है सुनने की इच्छा करना। अगर आप माता-पिता या गुरु की सेवा करते हैं और उन्हें सुनते नहीं हैं तो आपकी सेवा फलदाई नहीं होगी। हमारे देश में राम और कृष्ण को खूब मानते हैं। किंतु राम और कृष्ण की बातों या उपदेश को नहीं सुनते हैं । यही गड़बड़झाला है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है मेरा भक्त मुझे जानकर मेरे जैसे बनने का प्रयास करता है पूर्णिमा कृष्ण ने कहा है कि जो अपने लिए भोजन बनाते हैं या अपने भोग की चिंता करते हैं वह पाप खाते हैं। पाप से दूर रहने का अर्थ है दूसरों के लिए सोचा जाए। दूसरों को सुख पहुंचाने का प्रयास करें। एक बार एक राजा ने सड़क के मध्य में एक बड़ा पत्थर चट्टान रखवा दिया। लुभाते उस से कूद कर चले जाते झाड़ियों में से सड़क के किनारे उतर कर निकल जाते पर किसी ने उसे हटाने की चिंता नहीं की अंत में किसान आया उसने बड़ी ताकत लगाई मेहनत किया पसीना बहाया और कई घंटे की मेहनत के बाद उस पत्थर को उस रास्ते से हटा दिया जब उसने पत्थर हटाया तो देखा कि पत्थर के नीचे स्वर्ण मुद्राएं रखी हुई थी जिसमें लिखा हुआ था यह पत्थर हटाने वाले दयालु व्यक्ति का पुरस्कार है। परमात्मा उनकी सहायता अवश्य करता है जो दूसरों की सहायता करने का प्रयास करते हैं। हम परमात्मा से सबका भला करने की प्रार्थना करते हैं। सर्वे भवंतु सुखिनः। इस उपनिषद का सूत्र कहता है कि परमात्मा सृष्टि के कण-कण में बसा हुआ है इसलिए त्याग पूर्वक उपयोग करें और किसी और के धन को देखकर ललचाए नहीं। आज व्यक्ति के पास स्वयं को देखने का वक्त नहीं है। हम दुनिया को देखते हैं संसार के 100 करोड़ लोगों को देखने की कोशिश करते हैं। फिल्में देखते हैं नाटक देखते हैं पहाड़ देखते हैं नदी नाले देखते हैं सागर देखते हैं बस अपने आप को नहीं देखते। आत्म चिंतन आत्म निरीक्षण स्वयं को देखने का उपाय है। इसीलिए कहा जाता है कि संसार में हम खुद के दुख से कम दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी हैं।

कार्यक्रम का संयोजन लखन लाल आर्य जी ने किया। उन्होंने कहा वेद सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वैदिक चिंतन ही विश्व को शांति के मार्ग पर ला सकता है।

कार्यक्रम के अंत में पुरुषोत्तम मुनि ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा विद्वानों के संग से ईश्वर और वेद के प्रति अनुराग दृढ़ होता है। कार्यक्रम के अंत में नन्हे बच्चों ने शांति पाठ एवं जयघोष किया।

कार्यक्रम में रामभज,संतोष सचान, सुशीला सेठी, एसके मल्होत्रा, सुनीता सुशील कुमार, वेद प्रकाश शर्मा, विमलेश कुमार, वेद शर्मा, विनोद मित्तल, विवेक शिक्षक गाजीपुर, युद्धवीर, दया आर्य,दयानंद आर्य, नरेंद्र सिंह, भंवर सिंह, सर्वेश, नीरज वर्मा आईटीआई लखनऊ, रामसेवक निरंजन शिक्षक, चंद्रकांता आर्या,शेर सिंह,भोगी प्रसाद म्यामार,चंद्रशेखर शर्मा,माधव प्रसाद, देव शर्मा, डॉ व्यास नंदन शास्त्री बिहार, डॉक्टर दिनेश शर्मा, हेमांगी टकवाल, ईश्वर देवी, कमला हंस, कार्तिकेय, लक्ष्मी चौहान, परमानंद सोनी आर्य भोपाल,आर एस वर्मा,आराधना सिंह शिक्षिका, शिक्षिका,सुमन लता सेन शिक्षिका,अदिति सेन आर्या ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का सफल संचालन आयोजक आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।

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