गीता मेरे गीतों में , गीत 50 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

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तर्ज :– कह रहा है आसमाँ …….

मैं सभी में रम रहा हूँ और सबमें मेरा वास है।
नजर ना आता हर किसी को , ज्ञानी ही मेरा खास है ।।

जिनके जीवन में मुझे अनुराग खुद से है दीखता।
सच बताऊं तुझको अर्जुन ! उस भक्त में मेरा भाव है।।

कपिल मुनि सिद्धों में मैं हूँ , उच्चै:श्रवा घोड़ों में हूँ।
‘ऐरावत’ मैं इंद्र का , सब सुख – संपदा मेरे पास है।।

देव ऋषि नारद भी मैं हूँ , रखता खबर हर – लोक की।
गंधर्वों में मैं चित्ररथ हूँ , मेरी यही पहचान है ।।

कामधेनु गाय मैं हूँ, मैं ही ‘वासुकि’ और ‘वज्र’ हूँ।
काम का मैं देवता हूँ , सुन ! मेरा यही पैगाम है ।।

नागों में मैं ही ‘शेष’ हूँ , और दैत्यों में प्रहलाद हूँ ।
‘अर्यमा’, ‘नियम’ , ‘वरुण’, और ‘यम’ भी मेरा नाम है।।

‘काल’ भी मुझको ही समझो ,’ सिंह’ और मैं ही ‘गरुड़’ ।
‘पवन’ मेरा नाम प्यारा , देता सभी को प्राण है ।।

ब्रह्म होता यज्ञ का और ब्रह्म ही खुद यज्ञ है।
जिसने समझा राज गहरा उस पर पिता का हाथ है।।

जो भी चराचर इस जगत में हम सभी को दीखता।
उन सभी का बीज मैं हूँ , मेरा यही तुझे सार है ।।

जो त्याग करता पाप का और पुण्यों में रत होकर रहे।
प्रभु शरण देते उसे जो मन से अपने साफ है।।

देखते संसार को जो अनुराग से हटकर सदा।
कृपा उन पर मेरी होती, और मिलता मेरा प्यार है।।

दीन- बंधु दु:ख का हर्त्ता , दुष्टों का करता दलन ।
जिसका कोई आज तक, ना पा सका कोई पार है।।

उपकार करते हैं जो अर्जुन ! सीधे चलें संसार में।
सत्कर्म करते रहते जग में , वही पाते मेरा पार हैं।।

मूल गीता में कहीं भी , ना दिया यह खोल कर ।
बाद में ही दे दिया , इसको कहीं विस्तार है ।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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