क्या कभी कोहिनूर हीरा वापस भी लाया जा सकता है ?
दीपक वर्मा
कोहिनूर हीरा तो अभी ब्रिटेन में हैं मगर उसपर दावा भारत के साथ-साथ पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी करते हैं। दुनिया का सबसे मशहूर हीरा ब्रिटेन पहुंचने से पहले भारत के कई शाही खानदानों से होकर गुजरा। मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक, कोहिनूर जिसके हाथ लगा उसके लिए बदकिस्मती ही लेकर आया। इसे पाने के लिए न जाने कितनों का खून बहाया गया। ब्रिटिश इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल और पत्रकार अनिता आनंद की किताब Kohinoor: The Story of the World’s Most Infamous Diamond इस हीरे के स्याह पहलू पर रोशनी डालती है।
कोहिनूर के लिए किसी का सिर ईंटों से कूच दिया गया, किसी की आंखों में गर्म सुईं चुभो दी गई। एक पर्शियन राजकुमार से हीरे का पता उगलवाले के लिए उसके ताज में पिघला लेड डालने का भी जिक्र किताब में है। कोहिनूर की कहानी भी उसी तरह तराशी गई है जैसे यह हीरा। कहते हैं कि जब कोहिनूर ब्रिटेन पहुंचा तो यह अंडे जैसा दिखता था।
सदियों पहले खदान से निकाला गया था कोहिनूर!
इतिहासकार मानते हैं कि कोहिनूर हीरा कई सदी पहले कृष्णा नदी के किनारे मौजूद कोल्लूर खदान से निकला था। मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने एक मशहूर हीरे का जिक्र किया है जो 187 कैरट्स का था। बाबर की डायरी के हिसाब से जब अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिणी राज्यों पर आक्रमण किया, तब यह उसके हाथ लगा। बाबर को यह हीरा पानीपत की लड़ाई में दिल्ली और आगरा जीतने के बाद मिला। हालांकि, कोहिनूर के शुरुआती इतिहास को लेकर अलग-अलग दावे हैं।
मुगल काल से शुरू होता है कोहिनूर का इतिहास
मुगल काल से पहले कोहिनूर हीरे के बारे में पुख्ता जानकारी नहीं मिलती। लिखित में पहला रिकॉर्ड 1750 के आसपास मिलता है जब फारसी शासक नादिर शाह ने मुगलों की राजधानी दिल्ली पर धावा बोला था। नादिर शाह पूरी दिल्ली लूटकर अफगानिस्तान ले गया। कीमती रत्नों से जड़ा राजमुकुट भी जिसमें कोहिनूर भी शामिल था। डेलरिम्पल के अनुसार, उस राजमुकुट की कीमत ताजमहल से चार गुना ज्यादा थी। उस मुकुट में कई पीढ़ियों से जमा किए गए हीरे मुगलों ने जड़वाए थे। जब 1747 में नादिर शाह मारा गया तो कोहिनूर उसके पोते के पास आ गया। उसने 1751 में इसे अफगान साम्राज्य के संस्थापक, अहमद शाह दुर्रानी को दे दिया।
शाह शुजा से सिख साम्राज्य के हाथों में चला गया कोहिनूर
1809 में दुर्रानी का पड़पोता शाह शुजा अफगानिस्तान पर राज कर रहा था। रूस ने उसके इलाके पर नजर डाली तो शुजा ने ब्रिटेन से हाथ मिला लिया। वह बात अलग है कि कुछ ही दिन में शाह शुजा की गद्दी छिन गई और उसे भागने पर मजबूर होना पड़ा, मगर कोहिनूर हीरा लिए बिना नहीं। यहां से कोहिनूर का अगला सफर शुरू होता है।
सिख साम्राज्य की नींव रखने वाले ‘शेर-ए-पंजाब’ महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर में शाह शुजा की मेहमाननवाजी के बदले कोहिनूर मांग लिया।
शुजा ने जब कोहिनूर उनके हवाले किया तो महाराजा रणजीत सिंह ने दो दिन तक लाहौर के जौहरियों से उसकी परख करवाई। महाराजा रणजीत सिंह ने कोहिनूर को अपनी पगड़ी के आगे लगा रखा था।
जून 1839 आते-आते यह लगने लगा कि महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु नजदीक है। उन्होंने सबसे बड़े बेटे खड़क सिंह को उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
महाराजा रणजीत सिंह की मौत से एक दिन पहले, 26 जून 1839 को दरबारियों में कोहिनूर को लेकर जंग छिड़ गई। महाराजा बेहद कमजोर थे और इशारों में बात कर रहे थे। आखिर में यह तय हुआ कि खड़क सिंह को ही कोहिनूर दिया जाएगा।
खड़क सिंह ने अक्टूबर 1839 में गद्दी संभाली मगर प्रधानमंत्री धियान सिंह ने बगावत कर दी। कोहिनूर अब धियान सिंह के भाई और जम्मू के राजा गुलाब सिंह के पास आ चुका था। जनवरी 1841 में गुलाब सिंह ने कोहिनूर को तोहफे के रूप में महाराजा शेर सिंह को दे दिया। यानी कोहिनूर वापस सिख साम्राज्य के पास आ चुका था मगर अभी इस हीरे के लिए और खून बहना था।
डेलरिम्पल और आनंद की किताब के अनुसार, 15 सितंबर 1843 को शेर सिंह और प्रधानमंत्री धियान सिंह की तख्तापलट में हत्या कर दी गई। अगले दिन धियान के बेटे, हीरा सिंह की अगुवाई में हत्या का बदला ले लिया गया। 24 साल की उम्र में हीरा सिंह प्रधानमंत्री बने और 5 साल के दलीप सिंह को सम्राट के पद पर बिठाया। कोहिनूर अब एक नन्हे सम्राट की बांह से बंधा था।
अंग्रेजों के हाथ कैसे लगा कोहिनूर हीरा?
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का दायरा बढ़ा रहे लॉर्ड डलहौजी की नजर कोहिनूर पर थी। सिखों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ाई छिड़ी। सिख साम्राज्य पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया और 1849 की लाहौर संधि हुई। इसी संधि के तहत, महाराजा दलीप सिंह ने कोहिनूर हीरा ‘तोहफे’ के रूप में महारानी विक्टोरिया को दिया। फरवरी 1850 में कोहिनूर हीरे को एक तिजोरी में बंद करके HMS मेदेआ पर लादा गया और इंग्लैंड पहुंचाया गया।
ईस्ट इंडिया कंपनी के डिप्टी चेयरमैन ने औपचारिक रूप से 3 जुलाई 1850 को बकिंगम पैलेस में महारानी विक्टोरिया के सामने कोहिनूर हीरा पेश किया। 1851 में लंदन के हाइड पार्क में कोहिनूर को आम जनता के देखने के लिए रखा गया। महारानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट ने तय किया कि कोहिनूर को और तराशे जाने की जरूरत है।
अब ब्रिटिश राजमुकुट की शान बढ़ाता है कोहिनूर
महारानी विक्टोरिया के निधन के बाद कोहिनूर को एडवर्ड सप्तम की पत्नी महारानी एलेक्जांड्रा के ताज में लगवा दिया गया। 1911 में कोहिनूर महारानी मैरी के ताज में लगा और फिर क्वीन मदर के ताज में। 2002 में जब क्वीन मदर की मौत हुई तो उनके ताबूत पर ताज को रखा गया था। ये सारे ताज टावर औफ लंदन के ज्यूल हाउस में प्रदर्शनी के लिए रखे हैं।
भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान… सबको चाहिए कोहिनूर
1947 में आजादी मिलते ही भारत ने अंग्रेजों से कोहिनूर वापस मांगा था। कांग्रेस की ओर से एक दावा यह भी था कि इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भेज दिया जाए। मृत्यु-शैय्या पर महाराजा रणजीत सिंह ने भी यही संकेत दिया था। हालांकि उनके कोषाध्यक्ष मिश्र बेली राम ने कोहिनूर को सिख साम्राज्य के पास ही रहने दिया। भारत की मांग पर ब्रिटिश सरकार ने कहा कि हीरा उसके असली मालिक, लाहौर के महाराजा की ओर से औपचारिक रूप से तत्कालीन संप्रभु महारानी विक्टोरिया को दिया गया था। ब्रिटिश सरकार ने कहा कि कोहिनूर का मामला ‘नॉन-नेगोशिएबल’ हैं यानी इसपर कोइ मोलभाव नहीं हो सकता।
पाकिस्तान ने भी 1976 में कोहिनूर पर दावा जताया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने ब्रिटिश समकक्ष को लिखा था कि ‘मुझे आपको यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि हीरा पिछली दो सदियों में जिने हाथों से गुजरा है। 1849 में लाहौर के महाराजा संग शांति संधि में इसे ब्रिटिश राजघराने को देने का स्पष्ट जिक्र नहीं है।’
अफगानिस्तान ने 2000 में कोहिनूर पर दावा ठोका था। तब तालिबान के विदेश मामलों के प्रवक्ता फैज अहमद फैल ने कहा था कि ‘हीरे का इतिहास बताता है कि यह हमसे (अफगानिस्तान) छीनकर भारत को दिया गया और फिर वहां से ब्रिटेन को। हमारा दावा भारतीयों से ज्यादा मजबूत है।’
क्या कभी भारत वापस आ सकता है कोहिनूर?
2016 में एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर कर कोहिनूर को वापस लाने की मांग रखी। तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने भारत सरकार की ओर से अदालत को बताया कि कोहिनूर हीरा ‘रणजीत सिंह ने अंग्रेजों को सिख युद्धों में मदद के लिए दिया था। कोहिनूर चोरी की गई वस्तु नहीं है।’ हालांकि, फौरन तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अध्यक्षता में बैठक बुलाई गई। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) ने दावा किया कि सरकार कोहिनूर को वापस लाने की सारी कोशिशें कर रही है। हालांकि ASI ने यह भी कहा था कि हीरे को वापस लाने का कोई कानूनी आधार नहीं है।
अगर भारत का सुप्रीम कोर्ट आदेश दे भी दे या फिर सरकार ही कूटनीतिक रास्ते से कोहिनूर को वापस करने की मांग रखे तो ब्रिटेन नहीं मानेगा। 170 से भी ज्यादा सालों से कोहिनूर अंग्रेजों के पास हैं। 2013 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भारत आए थे। उन्होंने कोहिनूर को वापस करने के सवाल पर कहा था कि ‘अगर हम ऐसी मांगें पूरी करने लगे तो पूरा ब्रिटिश म्यूजियम खाली हो जाएगा।’