कर्म की कुशलता और पवित्रता ही मनुष्य को महान बनाती है

ऋषि राज नागर एडवोकेट

किसी भी कर्म के करने का सही दृष्टिकोण होना जरूरी है , और मनुष्य को समाज में प्रगति हेतु उद्यम या रचनात्मक कार्य करने की सही सोच बनानी भी अति आवश्यक है । कर्म शब्द संस्कृत के ‘ कृ ‘ धातु से बना है । जिसके अर्थ हैं ‘ करना ‘ | करना , तीन प्रकार का माना गया है – मन से वचन से तथा कर्म से , कोई कार्य करना । सफलता के लिए कार्य करने से पूर्व उस कार्य की , सही ‘ रूपरेखा ‘ तथा कार्य करने से पूर्व उसकी तैयारी होनी आवश्यक है ।
आज के आधुनिक युग में किसी भी कार्य की पूर्णता के लिए मनुष्य को अपने मस्तिष्क उस कार्य की रूप – रेखा का सही अनुपालन करना जरूरी है । जैसे कि – व्यवसाय के अनुसार वकील जब अपने , किसी मुकदमे के लिए बहस की तैयारी करता है तो कोर्ट में बहस करने से पूर्व वह उस मुकदमे से सम्बन्धित रुलिंग पढ़ता है। फाईल में आवश्यक तथ्य ‘ जो अपने हक में हैं , उन्हें ‘ नोट करता है । दूसरे पक्ष की कमजोरी जो फाईल में साक्ष्य या सबूत में मिलती हैं , उनको भी नोट करता है तब जाकर वह कोर्ट में अपने पक्ष को समय पर मजबूती से रख पाता है ।
बहस करने से पूर्व उसे और उसके मुवक्किल ( वादकारी) को समय से पूर्व अपने ऑफिस पर एवं अदालत में आवश्यक पत्रावली के साथ तैयारी सहित जाना होता है,जब वकील मेहनत से सब कार्य कुशलता से करता है तो मुवक्किल ,वादकारी प्रसन्न होता है और बाहर आकर व अपने घर जाकर वकील की तारीफ करता है । ऐसे में वकील सहाब को मुवक्किल फीस देता है , जिससे वकील का इस महंगाई के योग वे आर्थिक विकास ठीक प्रकार से होता है इस सब का कारण वकील द्वारा पूर्व में पत्रावली की अच्छी प्रकार से तैयारी होती है ।
इसी प्रकार डाक्टर अपने व्यवसाय को चलाने के लिए पहले ही डाक्टरी हेतु ,उपयुक्त ‘ उपकरण अच्छी दवाईयाँ और अपने पेशेंट को अच्छी तरह से सन्तुष्ट करता है और बिमारी से डराता नही बल्कि विमारी से उभारने की कोशिश करता है । वह अपने मरीज या पेसेन्ट को दर्शाता है कि उसका डाक्टर उसकी बीमारी को जानता है और उसका ईलाज भली प्रकार से कर रहा है । इस प्रकार डाक्टर यदि सही तैयारी करके उपचार करता है तो उसका व्यवसाय फलीभूत अर्थात फलता फूलता है और डॉक्टर आर्थिक और व्यवसायिक प्रगति करता है ।
किसान भी यदि अपने खेत से अच्छी उपज या पैदावार चाहता है तो उसको अपने खेत की पहले तैयारी करनी होती है , जैसे खेत की समय पर , जुताई , सिंचाई करना तथा वह खेत बोने से पहले ही अच्छी किस्म का बीज , खाद , उर्वरक आदि तैयार रखता है ,खेत बोने के लिए अच्छी ट्रेक्टर या मशीनरीतैयार रखता है आदि-आदि। तभी किसान भी अच्छी उपज तैयार करता है। अन्यथा ‘अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत’ । वैसे किसान समय रहते कार्य करता है, जब आसपास के किसान भी समय अनुसार कार्य करते हैं तो काफी अच्छा रहता है ।
किसान अपने किसी कार्य की सफलता के लिए एक दिन पहले यानी कि शाम को ही अपने बच्चों या परिवार के लोगों को अगले दिन के कार्य की रूपरेखा समझाता रहता है, कि हमें कल क्या करना है ,किस समय सुबह उठना है अपने कृषि उपकरण सही करके रखने हैं, किस खेत में क्या बना है, कितना खाद बीज तैयार करके रखना है तथा परिवार के लोगों को किस प्रकार मिलकर कार्य करना है आदि-आदि , लेकिन जिन परिवारों के मुखिया या जिम्मेवार व्यक्ति शाम को नशा कर लेते हैं वह अगले दिन की रूपरेखा भविष्य में कभी भी ठीक प्रकार से नहीं कर पाते हैं, क्योंकि जब तैयारी करने या समझने या परिवार को समझाने का समय होता है तब वे लोग नशा करके बेकार हो जाते हैं और सुबह को काफी लेट जगते हैं। तब तक अच्छा समाज या कार्य कुशल लोग अपना कार्य पूर्ण होने की स्थिति में होते हैं ।

मांस मछरिया खात है सुरा पान से हेत ।
सो नर जड़ से जाएंगे ज्यों मूली का खेत॥
कबीर भांग माछुली सुरापानि जो जो प्रानी खांहि।
तीरथ वरत नेम कीट ते सभें रसातलि जाहिं॥

अब पछतावे क्या होता है जब चिडिया चुग गई खेत । कहने का अभिप्राय है कि कार्य के प्रति कुशलता का होना बहुत आवश्यक है। यदि कार्य के प्रति कुशलता का अभाव है तो जीवन में कर्म की खेती व्यर्थ जा रही है, ऐसा मानना चाहिए। जब कर्म में कुशलता आ जाती है तो पवित्रता अपने आप आ जाती है। कर्म की कुशलता से आई यह पवित्रता ही मनुष्य को महान बनाती है।

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