ब्रह्म क्या, अध्यात्म क्या ?
‘योग – माया’ से मैं ढक रहा, जान सके ना कोय।
‘अज’ – ‘अव्यय’ उस ईश को पहचान सके ना कोय।।
मैं उन सब को जानता , जो होकर नहीं रहे आज।
जो होंगे उन्हें जानता और जो बने हुए हैं आज।।
मेरा ध्यान करते नहीं बस करते रहें उत्पात।
विषय – भोग उन्हें खा रहे , ना दिन देखें ना रात।।
जीवन – चक्र चलता रहे, यह इच्छा सबकी होय।
मेरी इच्छाएं सब पूर्ण हों , और बाधा बने न कोय।।
‘इच्छा’ से सुख उत्पन्न हो, :द्वेष’ से दुख का होत विकास।
यदि निकल सका नहीं द्वन्द्व से तो निश्चय जान विनाश।।
ब्रह्म क्या ? अध्यात्म क्या ? और कर्म का क्या सार।
मधुसूदन ! मुझको बता , तू अधिभूत का राज ।।
ब्रह्म रहता भूमि में और धरती उसका रूप।
जाने ना धरती उसे वह तो भूपों का है भूप।।
श्री कृष्ण जी दे रहे सही वेदों का उपदेश।
समझ रहा है पार्थ भी , क्या उनका संदेश।।
मेरे आश्रय से टिके , सब धरती और आकाश।
जो मुझ को सही जानता मैं हूँ उसके पास ।।
ब्रह्म के नियम चलें चाहे धरती हो द्युलोक ।
उसके नियम सत्य को भला कौन सका है रोक ।।
भजन करे से ब्रह्म मिलें , है यही जगत की रीत।
जगत झमेला छोड़ कर बस करो प्रभु से प्रीत।।
ध्यान – योग से ही मिले , प्रभु का रूप अनंत।
अनंत उसकी है गति ,पाये साधु या संत।।
माया – प्रेमी जीव के हैं स्वामी दयानिधान ।
करुणामय प्रभु करें सबकी नैया पार ।।
चार वेद छह शास्त्र में एक ही मिली आवाज।
परमपिता ही बजा रहे ,भीतर बैठे साज।।
ईश्वर के गुणगान से मिटें , कष्ट और क्लेश।
जीवन नैया पार हो और पहुंचे अपने देश।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य