Categories
उगता भारत न्यूज़

भारत की दिव्य, भव्य और गौरवशाली धरोहर को अपनाकर ही बन सकता है भारत विश्व गुरु : डॉ राकेश कुमार आर्य

महरौनी (ललितपुर) । महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्यसमाज महरौनी जिला ललितपुर के तत्वावधान में आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य के संयोजकत्व में आयोजित “हमारा स्वर्णिम अतीत : विश्व गुरु के रूप में भारत” विषय पर लगातार दूसरे दिन बोलते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि भारत की दिव्य भव्य और गौरवशाली धरोहर को अपनाकर ही भारत को विश्व गुरु के सम्मान पूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत का चिंतन प्राणीमात्र के प्रति किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा को पैदा नहीं करता बल्कि सहयोग, सहचर्य, दया, सम्मैत्री, करुणा आदि दिव्य मानवीय भावनाओं के आधार पर विश्व को सुंदर और उत्कृष्ट व्यवस्था प्रदान करता है।
ओजस्वी विचार व्यक्त करते हुए डॉक्टर आर्य ने कहा कि भारत के लोगों ने प्राचीन काल से ही शिक्षा और चिकित्सा को कभी बेचा नहीं है । यह आज की गलत नीतियां हैं जिनके अंतर्गत शिक्षा और चिकित्सा दोनों को ही बेचा जा रहा है ।यद्यपि सरकार पहले दिन से निशुल्क शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था करने की बात कहती आई है, पर आज देश के लोग महंगी शिक्षा और महंगी चिकित्सा से टूट चुके हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान एलोपैथी ने भारत में रोगियों की संख्या कुल आबादी की 90% कर दी है। जबकि देश की आजादी के समय भारत वर्ष में कुल आबादी का केवल सातवां हिस्सा ही बीमार था। हमें शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में अपने प्राचीन मानवीय मूल्यों को अपनाने की आवश्यकता है।
डॉक्टर आर्य ने कहा कि भारत के चरक और सुश्रुत को न केवल भारत में बल्कि संसार के अन्य देशों में भी मान्यता प्राप्त थी। अरब व पर्शिया में चरक संहिता को सरक और सुश्रुत को सस्रद कहा जाता था। उन्होंने कहा कि भारत के योग दर्शन के अष्टांग योग में से प्राणायाम को भी आंशिक रूप से अपना लेने से ही संसार से अनेक प्रकार की बीमारियां समाप्त हो गई हैं। अष्टांग योग के एक अंग अर्थात प्राणायाम ने 200 से अधिक देशों को भारत को अपना आध्यात्मिक गुरु मानना आरंभ करवा दिया है। इसी से पता चल जाता है कि यदि अष्टांग योग को समग्र रूप में अपना लिया जाए तो भारत केवल ऋषि पतंजलि के योग दर्शन के आधार पर ही संसार का मार्गदर्शक बन सकता है। महर्षि कणाद व कपिल के योगदान पर भी अपने विचार व्यक्त किए।
डॉक्टर आर्य ने कहा कि भारत के आध्यात्मिक चिंतन को राजनीतिक चिंतन ने भी अपनी स्वीकृति प्रदान की । जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारी गिद्ध दल के रूप में टूट टूटकर आ रहे थे तब हमारे राजनीतिक क्षेत्र के महारथियों ने भी भारत की संस्कृति की रक्षा के लिए अपना अप्रतिम योगदान दिया। उन्होंने बताया कि पृथ्वीराज चौहान की सेना में काम करने वाली श्यामली नाम की वीरांगना ने एक ऐसे मुस्लिम महारथी का अंत किया था जो हिंदू सैनिकों के कपड़े पहन कर पृथ्वीराज चौहान को मारने के उद्देश्य से प्रेरित होकर उनके निकट तक आ गया था। अपने दरबार में जब पृथ्वीराज चौहान ने वीरांगना श्यामली से कुछ मांगने के लिए कहा तो उसने मां भारती की सेवा के प्रति समर्पण को व्यक्त करते हुए कह दिया कि मुझे अपनी देशभक्ति के बदले में कुछ नहीं चाहिए। इसी प्रकार उसी समय काम करने वाले पृथ्वीराज चौहान के सेनापति गोविंद राय ने अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हुए एक युद्ध में मोहम्मद गौरी को उसके घोड़े से मारकर गिरा दिया था । गलती केवल इतनी रही कि वह उसे देख नहीं पाए और आगे बढ़ गए ।फल स्वरुप घायल मोहम्मद गोरी रात के अंधेरे में उठकर अपने सैनिकों के साथ अपने शिविर पहुंचने में सफल हो गया। इसके बाद मोहम्मद गौरी मैदान छोड़कर भाग गया था और भागने से पहले अपने 8000 घोड़े पृथ्वीराज चौहान को इस शर्त के साथ देकर गया था कि अब वह कभी भारत की ओर नहीं आएगा।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ आर्य ने इतिहास के कई रहस्यों से पर्दा उठाते हुए स्पष्ट किया कि पृथ्वीराज चौहान सिरसा के निकट हुए एक युद्ध में मारे गए थे । उनके बारे में मोहम्मद गौरी के काजी मिनहाज उस सिराज ने लिखा है कि वह इसी युद्ध में मारे गए थे। जबकि दामोदर लाल गर्ग जैसे इतिहासकार ने प्रमाणित आधार पर यह सिद्ध किया है कि पृथ्वीराज चौहान ने इस युद्ध में आत्महत्या कर ली थी। डॉक्टर आर्य ने कहा कि भारत वर्ष में अनेक जातियों ने बिना राजकीय संरक्षण के मिलकर संयुक्त सेना बनाकर विदेशी आक्रमणकारियों का सामना किया है। ऐसी ही सेना महमूद गजनबी के द्वारा सोमनाथ पर किए गए आक्रमण के समय बनाई गई थी । आज हम उन योद्धाओं को भी स्मरण करें जिन्होंने ऐसी सेना बनाई थी। इसके अतिरिक्त राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में जिन 17 राजाओं ने राष्ट्रीय सेना बना कर विदेशी आक्रमणकारी को हराया था उनके प्रति भी सम्मान व्यक्त करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।
डॉ आर्य ने कहा कि 812 ईसवी से लेकर 836 ईसवी तक मेवाड़ पर शासन करने वाले राणा खुमान को भी हम स्मरण करें जिन्होंने लगभग एक दर्जन राजाओं के सहयोग से राष्ट्रीय सेना का गठन कर विदेशी आक्रमणकारियों की सेना को 24 बार भारत से खदेड़ने में सफलता प्राप्त की थी। यह और भी प्रसन्नता का विषय है कि उस समय कश्मीर और गजनी तक के हिंदू शासकों ने राणा खुमान का साथ दिया था। ध्यान रखना चाहिए कि हमारे यह वीर राजा भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने के संकल्प के साथ ही मैदान में उतर कर भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे। इनके इस प्रकार के संस्कृति रक्षक कार्यों को इसी भावना के साथ इतिहास में सम्मान दिया जाना समय की आवश्यकता है।
विशेष रूप से आयोजित की गई इस वेबिनार में पंडित पुरुषोत्तम मुनि जी द्वारा भी अपने विचार व्यक्त किए गए। इसके अतिरिक्त वेद प्रकाश शर्मा, डॉ व्यास नंदन ,श्रीमती दया आर्या, सत्यपाल वत्स, श्रीमती संतोष सचान व श्री अनिल नरूला ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का सफल संचालन कर रहे हैं आयोजक आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य के द्वारा मांग की गई कि भारत के गौरवपूर्ण इतिहास को यथाशीघ्र लिखवा कर भारत के विद्यालयों में पाठ्यक्रम में समायोजित किया जाए।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version