अपने “कर्तव्य पथ” का निर्धारण करता भारत : उदीयमान भारत अर्थात “उगता भारत”……
डॉ राकेश कुमार आर्य
गाजियाबाद। कांग्रेस का जन्म अंग्रेजों के लिए एक सहायक संस्था ( safety valve ) के रूप में किया गया था। यही कारण था कि इस संस्था का जनक एक अंग्रेज अधिकारी ए0ओ0 ह्युम था। इस संस्था ने अपने जन्म से ही अंग्रेजों का कभी तीखा विरोध नहीं किया। इसके नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू को पुस्तक लिखने के लिए यदि जेल में वे सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती थीं जो एक लेखक को कराई जानी चाहिए तो क्रांति के माध्यम से देश से अंग्रेजों को भगाने का संकल्प लेने वाले महान लेखक सावरकर को ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जाती थी। इसका कारण केवल एक था कि नेहरू जी जहां अंग्रेजों की चाटुकारिता करते हुए उन्हीं की शैली में डिस्कवरी ऑफ इंडिया जैसी निराशाजनक पुस्तक लिख रहे थे
वहीं क्रांति वीर सावरकर जी ब्रिटेन की छाती पर बैठकर 1857 की क्रांति को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम घोषित कर रहे थे या फिर इसी प्रकार का साहित्य सृजन कर देश को क्रांति के मार्ग पर बढ़ाने का ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कार्य कर रहे थे।
इसी प्रकार अंग्रेजों की चाटुकारिता करने वाले गांधीजी की बकरी तक को भी बादाम खाने को उपलब्ध कराए जाते थे, जबकि अंग्रेजों का क्रांति के माध्यम से विरोध करने वाले क्रांतिकारियों को जेल में डाल कर उनसे कोल्हू चलवाया जाता था। बीमार होने पर कोई दवाई नहीं दी जाती थी, प्यास लगने पर पानी के स्थान पर पेशाब दिया जाता था।
कांग्रेस ने अपने परंपरागत संस्कार के कारण भारत में जॉर्ज पंचम के आने पर 1911 में उनका “जन गण मन अधिनायक जय हे …. ” गीत गाकर भव्य स्वागत किया था। इस गीत में कांग्रेस द्वारा जॉर्ज पंचम की की गई चाटुकारिता को देखकर जॉर्ज पंचम को भी शर्म आ गई थी।
हमारे देश के आज के राष्ट्रपति भवन को उस साम्य वायसराय हाउस कहा जाता था। ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने उस समय भारत की नई राजधानी नई दिल्ली का उद्घाटन किया था। उसके लिए हिंदुस्तान भर के राजे रजवाड़ों को भी बुलाया गया था। उस समय के वायसराय हाउस से निकलकर राजा की सवारी इंडिया गेट तक पहुंची थी। राजपथ उस समय राजा की सवारी का रास्ता बना था , इसलिए इसे “किंग्स वे” कहा जाने लगा। इंग्लिश के शब्द “किंग्स वे” का हिंदी में शाब्दिक अर्थ राजपथ कर लिया गया। कांग्रेस ने उस समय ब्रिटेन के राजा के स्वागत में पलक पावडे बिछाए थे, इसलिए उसने आजादी के बाद भी राजपथ को विशेष सम्मान की दृष्टि से देखने के लिए और हमारी गुलामी की प्रतीक उस ऐतिहासिक घटना को जीवंत बनाए रखने के लिए इसका नाम राजपथ कर दिया । इतना ही नहीं चार्ज पंचम की प्रतीकात्मक मूर्ति भी वहां पर लगी रही।
कुल मिलाकर राजपथ के मूल में हमारे नेताओं की चाटुकारिता के चलते ब्रिटिश साम्राज्य के खून के दाग लगे हुए दिखाई दे रहे थे। इतना ही नहीं, राजपथ पर उन लोगों के शांति के कबूतर भी उड़ते रहे ,जिन्होंने तथाकथित अहिंसा के आधार पर देश को आजाद कराने के गीत गाकर और सारा क्रांतिकारी आंदोलन दबाकर आजादी का इतिहास अपने नाम कर लिया। राजपथ से उन लोगों की आरती उतारी जाती रही जिनकी बकरी भी जेल में बादाम खाती थी और जिन्हें जेल में डाल कर भी हर सुविधा उपलब्ध कराई जाती थी । जिन लोगों ने अनेक प्रकार के कष्ट उठाकर मां भारती के समुज्ज्वल इतिहास को नई दिशा देकर अपना जीवन बलिदान कर दिया, उन बलिदानियों के बलिदान का सम्मान करने का एक शब्द भी इस राजपथ से कभी सुना नहीं गया। यही कारण रहा कि सावरकर और सुभाष जैसे लोगों को राजपथ से बहुत दूर फेंक दिया गया।
प्रधानमंत्री श्री मोदी का इस बात के लिए हृदय से अभिनंदन करना राष्ट्र के प्रत्येक राष्ट्रवादी का कर्तव्य है कि उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को क्रांतिकारी निर्णय लेते हुए राजपथ पर सम्मान दिया। नेता जी के यहां विराजमान होते ही आज देश को आजादी के एक नए अर्थ का बोध हुआ है। हमें पता चला है कि हम किन लोगों के बलिदान और क्रांति की भावना के कारण आजाद हुए थे? हमें अपने इतिहास पुरुषों का सम्मान करने का शुभ अवसर उपलब्ध हुआ है और इतिहास की उस विकृति को धोने में भी किसी सीमा तक कृतज्ञ राष्ट्र आज सफल हुआ है जिसके कारण हमारे इतिहास नायकों और क्रांतिकारियों के साथ भयंकर छल किया गया था।
यह कैसा संयोग है कि जब हम अपने राजपथ को “कर्तव्य पथ” के नाम से दोबारा सजा रहे हैं और अपने क्रांतिकारी आंदोलन के महानायकों को यहां स्थापित कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे हैं, तभी भारत उस ब्रिटेन को पीछे छोड़कर पांचवी विष्व अर्थव्यवस्था बनने में सफल हो गया है जिसने कभी भारत के 3000 लाख करोड़ लूट कर अपनी तिजौरियां भर ली थीं। आज डाकू – लुटेरा पीछे रह गया है और जिसे लूटा गया था वह आगे आ गया है। काल की इस नियति को भी हमें नमन करना चाहिए। बिल्कुल ऐसे ही राजपथ पर भी जिन लुटेरों ने अपने डेरे डाल दिए थे, उनके डेरे भी आज उजड़ गए हैं और जिनको लूटा गया था वे वहां स्थापित हो गए हैं। परमपिता परमेश्वर की लीला सचमुच अपरंपार है। सचमुच सदा दिन एक से नहीं रहते।
इसी समय ब्रिटेन के लुटेरे राजवंश की एक रानी भी संसार से चली गई है। भारत का सूर्योदय हो रहा है जिसे देखने की क्षमता हर किसी के भीतर नहीं है। “उगता – भारत” को देख कर बहुत सारी आंखें बंद होना चाहती हैं।
बहुत सारे शिखंडियों के डेरे उजड़ गए हैं, बहुत सारों के चेहरे उतर गए हैं और बहुत सारे शिखंडी वैसे ही समान उठाकर भागने को तैयार हो रहे हैं जैसे सूर्योदय होने पर अंधकार अपना बोरिया बिस्तर लेकर भागता है। हमें नई सुबह का नए जोश के साथ अभिनंदन करना चाहिए। मेरा भारत जाग रहा है …. जाग नहीं रहा है, भाग रहा है ….भाग नहीं रहा है विश्व गुरु के पद पर आसीन हो रहा है …. आसीन नहीं हो रहा है ,कर्तव्य पथ का निर्धारण कर रहा है।
सचमुच “कर्तव्य पथ” और “उगता भारत” दोनों का अन्योन्याश्रित संबंध है। इसी संबंध की आज विश्व को आवश्यकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत