ऋग्वेद यज्ञ एवं वेदकथा का भव्य आयोजन- ‘जो मनुष्य यज्ञ करता है उसका अगला जन्म मनुष्य का ही होता हैः शैलेशमुनि सत्यार्थी’
ओ३म्
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देहरादून में श्री प्रेमप्रकाश शर्मा, मंत्री, वैदिक साधन आश्रम तपावेन, देहरादून के निवास 22 दून विहार, जाखन पर ऋग्वेद यज्ञ एवं वेदकथा का आयोजन दिनांक 7-9-2022 से चल रहा है। आज आयोजन के चौथे दिन प्रातः 8.00 बजे से सन्ध्या से आयोजन आरम्भ किया गया। सन्ध्या के बाद आचार्य श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी के ब्रह्मत्व में ऋग्वेद-यज्ञ किया गया। यज्ञ में मंत्रोच्चार द्रोणस्थली आर्ष कन्या गुरुकुल की ब्रह्मचारिणों ने किया। यजमान श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी एवं उनके परिवार के सदस्य थे। यज्ञ के ब्रह्मा जी ने यज्ञ के मध्य में यज्ञ की भिन्न-भिन्न प्रक्रियाओं के महत्व पर प्रकाश डाला। यज्ञ के ब्रह्मा श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि दुष्कर्म को करने वाला व्यक्ति सत्य के मार्ग को नहीं तर सकता है। मनुष्य को पाप व पुण्य कर्मों का फल मिलता है। सत्य न कभी विजयी होता है और न कभी पराजित। सत्य सत्य होता है। सत्य में परमात्मा होते हैं। हार-जीत व्यक्ति की होती है। संसार में हम जो पशु एवं पक्षी आदि प्राणि योनियों को देखते हैं यह सब परमात्मा की जेलें हैं। यहां मनुष्य अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का फल भागते हैं। आचार्य जी ने लोगों को सत्य को जीवन में धारण करने की पे्ररणा की। उन्होंने कहा कि झूठ का व्यवहार न करें। उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर एक भ्रष्टाचार करने वाले परिचित व्यक्ति की बुढ़ापे में हुई दुरावस्था का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि अपने जीवन को पवित्र बनाकर रखो। अच्छे व पवित्र काम करने से हानि हो ही नहीं सकती। आचार्य जी ने कहा कि पाप करने से मनुष्य को पशु व पक्षियों आदि योनियों में जन्म मिलता है। यज्ञ करने वाले मनुष्य का अगला जन्म मनुष्य योनि में ही होता है। यज्ञ की समाप्ति पर आशीर्वाद एवं यज्ञ प्रार्थना की गई। यज्ञ प्रार्थना श्री नरेन्द्र दत्त आर्य जी ने गाकर संगीतमय प्रस्तुत किया जिससे वातावरण में भक्तिरस भर गया।
यज्ञ समाप्त होने के बाद पं. नरेन्द्र दत्त आर्य जी के भजन हुए। ढोलक पर उनकी संगति श्री विपिन गिरी युवक ने दी। श्री नरेन्द्र जी ने पहला भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘प्रभु का करो कीर्तन सुख मिलेगा। भक्ति में हो मन मगन सुख मिलेगा। प्रभु का करो कीर्तन सुख मिलेगा।’ श्री नरेन्द्र जी ने कहा कि ईश्वर सकल जगत का पालन पोषण करता है। इसलिए उसका एक नाम विश्वम्भर है। श्री नरेन्द्र जी ने दूसरा भजन प्रस्तुत किया जिसके आरम्भ के शब्द थे ‘जग के पालक सब के मालिक तेरा ढंग निराला है, बच्चा मां के गर्भ में आये मां को ये मालूम नहीं। लड़की है या लड़का है, गोरा है या काला है, जीव जहां जो पैदा किया है, उसको वहीं पर पाला है।’ पंडित जी द्वारा प्रस्तुत तीसरे भजन के बोल थे ‘तन मन धन जीवन कण-कण अर्पण सब आपको निशदिन, तब भी नहीं उतर पायेगा जीवन में मां का ऋण।।’ पंडित नरेन्द्रदत्त जी ने कहा की गाय समस्त संसार की माता है। बच्चों को माता के बाद गाय का ही दूध पिलाया जाता है। उन्होंने कहा कि गाय का दूध हल्का होता है इसके गुण माता के दूध के गुणों के समान ही होते हैं। श्री नरेन्द्र जी ने चौथा भजन गो माता पर सुनाया जिसकी पहली पंक्ति थी ‘माता गऊ माता सुख की दाता जन-जन उतारे तेरी आरती मैय्या हम सब उतारे तेरी आरती। दूध गऊ का पीकर के भी मेरी भूख नहीं मिटती, धरती माता पेट भरेगी जिसने भार सम्भाला। जीव जहां जो भी पैदा किया उसे तूने सम्भाला है।’ पंडित नरेन्द्र जी के द्वारा प्रस्तुत अन्तिम पांचवे भजन के बोल थे ‘ज्ञान का सागर चार वेद ये वाणी हैं भगवान की। इसी से मिलती सब सामग्री जीवन के कल्याण की।’ पंडित नरेन्द्र जी के भजनों को सुनकर सभी श्रोता भाव विभोर हो गये। सभा में सर्वत्र भक्ति रस बह रहा था जिसका सभी श्रोता पान कर रहे थे। पंडित नरेन्द्र जी के बाद देहरादून के श्री सत्यपाल आर्य जी ने भी एक भजन प्रस्तुत किया। उनके भजन के बोल थे ‘ओ देव दयानन्द देख लिया तेरे कारण जन जन को हम सबको मिला ये नव जीवनं। तुझे हैं सौ सौ वन्दन करें तेरा अभिनन्दन। ओ देव दयानन्द ओ देव दयानन्द।’
मुजफ्फरनगर से पधारे श्री सोम देव आर्य जी ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए आत्मा के अस्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने वैज्ञानिक न्यूटन के शब्दों में द्रव्य की चर्चा की। उन्होंने कहा कि सृष्टि वा अपौरूषेय रचनायें आत्मा से भिन्न सत्ता ईश्वर से अस्तित्व में आयी हैं। उन्होंने कहा कि जिसके लिए हम मैं या मुझे शब्दों का प्रयोग करते हैं, उस सत्ता को आत्मा कहते हैं। उन्होंने बताया कि रचना को देखकर रचयिता का ज्ञान होता है। इस सिद्धान्त से सृष्टि में अपोरूषेय रचनायें देखकर ईश्वर का ज्ञान होता है। श्री सोमदेव आर्य जी ने कहा कि जहां क्रिया होती है, कर्ता वहीं पर होता है।
यज्ञ के ब्रह्मा शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने अपना सम्बोधन आरम्भ करते हुए कहा कि एक दिन सबको संसार से जाना पड़ेगा। सबसे बड़ा सत्य यही है। उन्होंने कहा कि हम जिस सामग्री का संग्रह करते हैं उससे भय उत्पन्न होता है। उन्होंने कहा कि हम मकान बनाते हैं तो हमें चोरों के आने का भय सताता है। इसी प्रकार से अन्य वस्तुओं की चोरी होने का भी भय हमें सताता है। आचार्य जी ने कहा कि स्वाध्याय एवं चिन्तन से आत्मा अभय को प्राप्त होती है। जब आत्मा को यह ज्ञान होता है कि उसे एक दिन जाना पड़ेगा तो मनुष्य अभय होता है। आचार्य जी ने कहा कोई मनुष्य नहीं चाहता कि वह एक हजार वर्ष तक जीवित रहे। मनुष्य की मृत्यु कभी भी हो सकती है। इसके आने का समय निश्चित नहीं है। जब हम संसार से जायेंगे तो हमारे साथ कोई भौतिक पदार्थ साथ में नहीं जायेगा। इसलिए किसी पदार्थ में मोह करना व्यर्थ है। आचार्य जी ने कहा कि हमें उन पदार्थों का संग्रह करना चाहिये जो मरने पर आत्मा के साथ जाते हैं। मनुष्य के किये हुए कर्म उसके साथ जाते हैं। विद्व़ान आचार्य ने कहा कि जाने वाले का कोई साथी नहीं होता। जाने वाले के साथ व्यक्ति के शुभ अशुभ कर्म जाते हैं। आचार्य जी ने कहा कि हमारे शरीरों को बनाने वाला परमात्मा है। शरीर में आत्मा को बैठाने वाला भी परमात्मा है। परमात्मा शरीर के भीतर व बाहर रहता है। ईश्वर शरीर को चलाना भी जानता है। हमारे शरीरों को वही चला रहा है। भोजन को परमात्मा रक्त आदि अनेक पदार्थों में बदल देता है। आचार्य जी ने कहा कि परमात्मा निराकार है।
आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि पंखा विद्युत से चलता है परन्तु विद्युत किसी को दिखाई नहीं देती। तार को छूने व झटका लगने पर विद्युत का अहसास होता है। संसार में बहुत से पदार्थ हैं परन्तु सब पदार्थ दिखाई नहीं देते। हमारी जिह्वा किसी पदार्थ को चख कर उसका स्वाद बता देती है। हमारी जिह्वा परमात्मा ने बनाई है तथा सबको दी है। आचार्य जी ने कहा कि मिठास भी अनेक प्रकार के हैं। उन्होंने कहा लीची, सेव तथा सन्तरा सभी मीठे हैं परन्तु इनका स्वाद अलग अलग होता है। जिह्वा इनको चख कर इनका स्वाद बता देती है। आर्य विद्वान शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि हमारे कान आवाज को पहचानते हैं। वह हमें बता देते हैं कि आवाज युवा की है या वृद्ध की। आचार्य जी ने बताया कि चित्त हमारे कर्मों को अपने अन्दर सुरक्षित रखता है। चित्त में जन्म-जन्मान्तरों के कर्म व स्मृतियां विद्यमान रहती हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा को बाहर के आडम्बरों से कुछ लेना देना नहीं है।
वैदिक विद्वान श्री शैलेश मुनि जी ने कहा कि परमात्मा सबसे न्याय करता है। वह रत्ती भर भी अन्याय नहीं करता। उन्होंने एक उदाहरण देकर बताया कि एक दम्पत्ति के यहां वर्षों तक सन्तान नहीं हुई। उनकी करोड़ों की सम्पत्ति है। वह दम्पती वर्षों बाद एक निर्धन सन्तान को गोद ले लेते हैं। उन्होंने कहा कि गोद लेने पर वह नवजात शिशु अपने पिता व दादा की करोड़ों की सम्पत्ति का स्वामी बन जाता है। उन्होंने कहा कि हमें जन्म में जो मिलता है वह पूर्वजन्मों के कर्मों के आधार पर मिलता है। उस बालक ने पूर्वजन्म में अच्छे कर्म किये होंगे इसी कारण इस जन्म में अल्पकाल में ही वह बड़ी सम्पत्ति का स्वामी बन गया। आचार्य जी ने कहा कि यदि हम अगले जन्म में सुख व सुविधायें चाहते हैं तो हमें धर्म के काम करने चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि हम जो दान करते हैं उसका रिटर्न सैकड़ों गुणा होकर हमें प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि हम मक्का का एक बीज बोते हैं तो उसमें सैकड़ों दाने हमें मिलते हैं। सरसों के एक बीज से उत्पन्न पौधे में लगभग 900 दाने लगते हैं। इसी प्रकार से दान करने वाले को उसका दान वृद्धि होकर प्राप्त होता है। आचार्य जी ने दशरथ जी की मृत्यु का प्रकरण भी सुनाया। उन्होंने कहा कि मरते समय दशरथ जी को श्रवण पर चलाये गये शब्द भेदी बाण की याद आयी और उन्होंने कौशल्या जी को बताया की श्रवण के पिता ने उन्हें श्राप दिया था कि तुम भी उनकी तरह पुत्र वियोग में प्राण त्यागोगे।
आचार्य शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि सन्तोष के धन को आप सब अपनी तिजोरियों में रखें। उन्होंने कहा कि आज लोगों में सन्तोष कम हो रहा है। आचार्य जी ने कहा कि यदि घर में प्रचुर मात्रा में धन आये तो गृहस्थियों को यज्ञ करना चाहिये। ऐसा करने से यज्ञ करने वाले को पुण्यों की प्राप्ति होगी जिससे परजन्म में उन्हें लाभ प्राप्त होंगे। आचार्य जी ने बताया कि यज्ञ करने वाले मनुष्य का अगला जन्म पशु-पक्षी योनि में नहीं अपितु मनुष्य योनि में ही होता है। यह यज्ञ करने का बड़ा लाभ है। विद्वान आचार्य ने अपने सम्बोधन में कहा कि अन्न, धन तथा काम से मनुष्य की जीवनपर्यन्त तृप्ति नहीं होती। यह पदार्थ तृप्ति करने के लिए बने ही नहीं है। इन पदार्थों को परमात्मा ने त्यांगपूर्वक भोग करने तथा मोक्ष प्राप्ति के लिये बनाया है। धन से मनुष्य की तृप्ति नहीं होती है। धन में वृद्धि होने पर इच्छा बढ़ती जाती है जिसका कोई अन्त नहीं है। चाणक्य जी ने कहा कि मनुष्य की काम से भी कभी तृप्ति नहीं होती। मनुष्य यदि सन्तोष करता है तभी उसे सुख, चैन की प्राप्ति व तृप्ति मिलती है। आचार्य जी ने कहा कि याद रखिये एक दिन संसार से जाना पड़ेगा। संसार से सम्पत्ति साथ में नहीं जायेगी। मृत्यु के समय केवल कर्मों की पूंजी साथ में जायेगी। इसलिये सब मनुष्य अच्छे कार्य व यज्ञादि किया करें। इसी के साथ आचार्य जी ने अपनी वाणी को विराम दिया। इसके बाद द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की कन्याओं ने समवेत स्वरों में शान्तिपाठ करने के साथ जयघोष भी उच्चारित किए। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद सबने मिलकर प्रातराश लिया। कल राविवार को ऋग्वेद यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ कार्यक्रम का समापन होगा। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य